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साहसिक यात्रा के वो 39 दिन

-रिवर राफ्टिंग: महिलाओं के साहसिक दल ने की थी हरिद्वार से कोलकाता तक गंगा यात्रा-बंछेद्री पाल ने महिला राफ्टिंग टीम को इस यात्रा के लिए कड़ी ट्रेनिंग करवायी थी. महिलाओं को 39 दिनों तक लगातार गंगा नदी में रहते, राफ्टिंग करते सुना है? बात वर्ष 1994 की है. महिला राफ्टिंग टीम ने मैदान में उतरी […]

-रिवर राफ्टिंग: महिलाओं के साहसिक दल ने की थी हरिद्वार से कोलकाता तक गंगा यात्रा
-बंछेद्री पाल ने महिला राफ्टिंग टीम को इस यात्रा के लिए कड़ी ट्रेनिंग करवायी थी.

महिलाओं को 39 दिनों तक लगातार गंगा नदी में रहते, राफ्टिंग करते सुना है? बात वर्ष 1994 की है. महिला राफ्टिंग टीम ने मैदान में उतरी गंगा को हरिद्वार से कोलकाता तक मापा. लहरों की रफ्तार के साथ बहना, तैरना, राफ्टिंग सबकुछ. इसका नेतृत्व कोई और नहीं एवरेस्ट फतह करने वाली भारत की पहली महिला बछेंद्री पाल कर रही थीं. 16 सदस्यीय महिलाओं की टीम सात सितंबर को हरिद्वार से रवाना हुई थी और 19 अक्तूबर को कोलकाता पहुंची. यूथ अफेयर एंड स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री और टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की संयुक्त पहल से यात्रा पूरी हो सकी. लाइफ@जमशेदपुर की विशेष रिपोर्ट.

घर की याद आने पर रोते थे सब
बछेंद्री बताती हैं कि राफ्टिंग की वजह से लड़कियों के हाथों में ठेले हो गये थे. लड़कियां रोने लगती थी. सभी को घर की भी याद आती थी. सोने का ठिकाना रेत पर ही होता था. अंधेरा होने पर गंगा किनारे सुरक्षित जगह पर टेंट गाड़ा जाता था. वहीं पर रसोई पकती थी. सोना होता था. वह बताती हैं कि भोजन में रेत के अंश भी आ जाते थे. वहां पर कुछ उपाय नहीं था. रितु के मुताबिक दिन का खाना भी रात में ही बनाना पड़ता था. क्योंकि दिन में फुर्सत नहीं मिलती थी. दिन में खाने के लिए फास्ट फुड भी होते थे. यात्रा में तकनीकी अधिकारी निर्मल पांडेय, रवींद्र, राजू गुप्ता, कुलवीर, रणवीर सिंह थे. दो अधिकारी जिप्सी से सड़क मार्ग से चल रहे थे. टीम को जमशेदपुर से जेजे ईरानी ने रवाना किया था.

महिलाएं क्यों नहीं कर सकती?
तब के खेल मंत्री मार्टिन अल्वा और सर एडमंड हिलेरी ने दिल्ली से टीम को रवाना किया. सड़क मार्ग से टीम हरिद्वार पहुंची. यहां से जल यात्रा शुरू हुई. बछेंद्री बताती हैं कि इससे पहले पुरुषों की टीम यह कारनामा कर चुकी थी. उन्हें देखकर लगा कि ह्वाइ नॉट वीमेन? वर्ष 1984 में एवरेस्ट फतह करने का उनके पास अनुभव था. वह बताती हैं कि टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के सहयोग से कई चोटियों पर चढ़ने का नेतृत्व कर चुकी थी. हिमालय की कई दुर्गम चोटियों पर चढ़ने का अनुभव भी उनके पास था. इसलिए नयी-नयी चुनौतियों को स्वीकार करने का उनमें साहस और आत्मविश्वास था. शायद इसलिए वह जल यात्रा करने का साहस जुटा पायीं. वह बताती हैं कि एक बार लक्ष्य निर्धारित हो जाने के बाद वह कभी पीछे हटने वाली नहीं थी.

स्वीमिंग क्लब में गया सर्कुलर
वह बताती हैं कि फैसला तो हो गया लेकिन महिलाओं की टीम खड़ी करना किसी चुनौती से कम नहीं था. स्वीमिंग से संबंधी सभी क्लब में सर्कुलर भेजा गया. लेकिन काफी कम रिस्पांस आया. माउंटेरिंग बैकग्राउंड वाली लड़कियां ही सामने आयीं. जिसमें उत्तराखंड की सीमा टोलिया, कोलकाता की अनीता सरकार, बेंगलुरु की सुधा, अनीता राव, जमशेदपुर की रितु सबलोक, पश्चिम बंगाल की शिप्रा दत्ता, रूमा राय, हिमाचल प्रदेश की भवानी ठाकुर व अन्य शामिल थी.

डिमना में एक महीने की ट्रेनिंग
बछेंद्री बताती हैं कि टीम बन जाने के बाद डिमना लेक में एक महीने की ट्रेनिंग हुई. ट्रेनर थे निर्मल पांडेय. अधिकतर महिलाएं माउंटेनिंग बैकग्राउंड की थी इसलिए सबसे पहले स्वीमिंग की ट्रेनिंग दी गयी. शुरू में लाइफ जैकेट से स्वीमिंग की प्रैक्टिस हुई. बाद में बिना जैकेट की तैराकी होने लगी. वह बताती हैं कि लड़कियां एक सांस में वाटर स्पोर्ट्स सेंटर से आइसलैंड (भथुरिया गांव) तक तैरने लगी. पानी में राफ्टिंग कंपीटीशन होती थी. कयाक (सिंगल सीटर) की ट्रेनिंग हुई.

डेड बॉडी मिलने पर दफना देती थी
बछेंद्री पाल बताती हैं कि यात्रा के दौरान गंगा में उनलोगों को कई डेड बॉडी मिली. उन्हें लगा कि बॉडी की वजह से गंगा मैली हो जायेगी. इसलिए वेलोग रास्ते में आने वाली बॉडी को दफनाते चल रही थी. इसके अलावा गंगा की यथासंभव सफाई भी करती जा रही थी. साथ ही जगह-जगह रुककर ग्रामीणों से गंगा साफ रखने की अपील भी की. लड़कियों को पढ़ाने और स्ट्रांग बनाने का संदेश भी देती थी. वह बताती हैं कि गंगा घाटियों में काफी पिछड़ापन है. ग्रामीणों को शिक्षित करना बहुत जरूरी है.

ऋतु सबलोक, टीम की सदस्य: सुबह पांच बजे शुरू हो जाती थी यात्रा
टीम की सदस्य और न्यू बाराद्वारी निवासी ऋतु सबलोक बेसिक रॉक क्लाइंबिंग, एडवांस रॉक क्लाइंबिंग, बेसिक माउंटेनियरिंग (मनाली), एडवांस माउंटेनियरिंग (दार्जिलिंग), उत्तरकाशी में पंद्रह दिनों का कोर्स कर चुकी थीं. उन्हें जमशेदपुर से मुजफ्फरपुर और जमशेदपुर से पुरी साइकिल एक्सपीडिशन (जाना-आना) का अनुभव भी था. वह बताती हैं कि यात्रा के दौरान हरेक दिन सुबह तीन बजे सभी उठ जाते थे. राफ्ट में हवा भरते थे और पांच बजे यात्रा पर निकल पड़ते थे.

डैम में जाते-जाते बचे
वह बताती हैं कि यात्रा खतरे से खाली नहीं रही. वे लोग दो बार डैम में घुसते-घुसते बचे. डैम में पानी के थाह का पता नहीं चलता है. बैक टीम ने बताया कि आपलोग डैम की तरफ जा रही हैं. जहां-जहां गंगा विशाल हो गयी है वहां दिशा का पता नहीं चलता था. वह बताती हैं कि इसलिए वे लोग साथ ही रहती थी. आपस में मिलकर डिस्कश कर लिया करती थी. गंगा, यमुना, सरस्वती राफ्ट का नाम था. हरिद्वार में तो राफ्ट लगभग पलट गयी थी. सुरक्षा के लिए उनलोगों ने हेलमेट पहना था.

दर्द इतनी हुई कि इलाज करना पड़ा
ऋतु का हाथ पहले से टूटा हुआ था. प्लास्टर के जरिये हड्डी जुड़ गयी थी. लेकिन लेकिन लगातार राफ्टिंग की वजह से इलाहाबाद आते-आते हाथ में दर्द तेज हो गया. यहां पर डॉक्टर को दिखाना पड़ा. दवा और आयोडेक्स वगैरह साथ लेकर चलने लगी. वह बताती हैं कि रास्ते में बछेंद्री पाल की डांट भी खानी पड़ती थी. एक बार राफ्ट पंक्चर हो गया था. इसके कारण उन्होंने खूब डांट लगायी थी.

मस्ती भी खूब हुई
ऋतु बताती हैं कि हर जगह खतरा ही नहीं होता था. रास्ते में मस्ती भी खूब हुई. मुर्शिदाबाद में गंगा छोटी हो जाती है. यहां पर उनलोगों ने राफ्ट से उतरकर पानी में मस्ती किया. खूब गंगा नहाया. राफ्ट भर जाने पर पानी निकालना होता था. वह बताती हैं कि रास्ते में डॉल्फिन खूब मिलती थी. भागलपुर एरिया में डॉफ्लिन खूब मिला. जो पानी में छलांग लगाती रहती थी.

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