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इमरान की बौखलाहट

अच्छा हुआ जो न्यूयार्क में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच होनेवाली वार्ता रद्द हो गयी. वार्ता का प्रस्ताव देकर दरअसल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी तरफ से ‘बाउंसर’ फेंका था. भारत ने भांप लिया कि बाउंसर पर ‘छक्का’ लगाने के लालच में फंसकर अपनी क्रीज छोड़कर आगे बढ़ना ठीक नहीं. […]

अच्छा हुआ जो न्यूयार्क में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच होनेवाली वार्ता रद्द हो गयी. वार्ता का प्रस्ताव देकर दरअसल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी तरफ से ‘बाउंसर’ फेंका था.
भारत ने भांप लिया कि बाउंसर पर ‘छक्का’ लगाने के लालच में फंसकर अपनी क्रीज छोड़कर आगे बढ़ना ठीक नहीं. सो, भारत के विदेश मंत्रालय ने क्रीज पर पैर टिकाये दोहराया है कि कश्मीर में भड़काया जा रहा अलगाववाद और सीमा-पार से होनेवाली घुसपैठ तथा गोलीबारी की पुरानी आदत से पाकिस्तान बाज नहीं आता, उसके साथ सुलह और अमन की कोई भी बातचीत बेमानी है.
अपने ‘सियासी बाउंसर’ को बेअसर होता देख इमरान ने बौखलाहटभरा ट्वीट कर दिया. ‘ट्वीट’ की बौखलाट में वे यह भूल गये कि दो पड़ोसी देशों के रिश्ते ‘ट्वीट’ के जरिये नहीं सुलझाते. यही नहीं, पंजाब (पाकिस्तान) की एक सभा में उन्होंने कहा कि ‘दोस्ती के हमारे पैगाम को हमारी कमजोरी ना समझे भारत, और दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने हैं, तो भारत को अपना अहंकार छोड़ना होगा.’ ऐसा कहकर इमरान ने दोनों देशों के रिश्ते में कड़वाहट को और ज्यादा बढ़ाने का ही काम किया है. अब बातचीत से पहले भारत ज्यादा सतर्कता बरतेगा.
इमरान चाहते हैं कि भारत जमीनी हकीकत भूलकर पाकिस्तानी नेतृत्व के साथ गलबहियां डालने के लिए रजामंद हो जाये और इस तरह वे अपने देश और देश से बाहर यह साबित कर सकें कि उनके बनाये ‘नये पाकिस्तान’ में सचमुच लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता का कहा और किया होता है, सेना की एकदम नहीं चलती. वार्ता रद्द करके भारत ने इमरान को उनकी सियासी जिंदगी का एक अहम सबक सिखाया है कि पड़ोसी देश से रिश्ते सुधारने से पहले पाकिस्तान की घरेलू राजनीति को उसके फौजी जनरलों के चंगुल से निकालना कहीं ज्यादा जरूरी है.
इमरान को याद होना चाहिए कि दोनों देशों के बीच बातचीत में खलल तो 2016 की शुरुआत से ही पड़ी हुई है जब पाकिस्तान में पनाह पाये आतंकियों ने भारत के फौजी ठिकानों को निशाना बनाने के नये सिलसिले की शुरुआत की. भारत ने तब स्पष्ट कर दिया था कि भारत की जमीन पर पाक-प्रेरित आतंकवाद और इस्लामाबाद से बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकती. अमन की किसी बातचीत के लिए भारत किस आधार पर राजी हो? पाकिस्तान की शह पाये आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में पुलिसकर्मियों की हत्या कर रहे हैं.
कश्मीर में पंचायत चुनावों से पहले आतंकवाद की घटनाएं बढ़ रही हैं. जले पर नमक यह कि पाकिस्तान ने कश्मीरी आतंकवादियों की याद में डाक टिकट जारी किया. क्या ऐसे माहौल में दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने की दिशा में किसी सार्थक बातचीत की उम्मीद की जा सकती है?
इमरान को चाहिए कि भारत को नसीहत देने के बजाय पहले अपने घरेलू मैदान पर स्थिति संभालें और तय करें कि उनके ‘टीम पाकिस्तान’ की कप्तानी ‘वजीर-ए-आजम’ के हाथ में है या फिर फौजी जनरल की कमान में.

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