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टूरिज्म: विश्व प्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थली है मंदारगिरी

सुबोध कुमार नन्दन पटना : जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए और उन्हीं में 12 वे तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य स्वामी है, जिनका पांचों कल्याणक चम्पानगरी (भागलपुर) में है. पांच कल्याणक में गर्भ और जन्म भागलपुर के चंपापुरी में हुआ, जिसे स्थानीय लोग चंपापुर को नाथनगर भी कहते है. प्राचीनकाल में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर […]

सुबोध कुमार नन्दन

पटना : जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए और उन्हीं में 12 वे तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य स्वामी है, जिनका पांचों कल्याणक चम्पानगरी (भागलपुर) में है. पांच कल्याणक में गर्भ और जन्म भागलपुर के चंपापुरी में हुआ, जिसे स्थानीय लोग चंपापुर को नाथनगर भी कहते है. प्राचीनकाल में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव) के समय विभाजित 52 जनपद में से यह चंपा नगरी क्षेत्र अंग जनपद के नाम से प्रसिद्ध रहा है. इसलिए मंदारगिरी को अंग क्षेत्र का प्रसिद्ध पर्यटन स्थली कहा जाता है. यह चंपा नगरी प्राचीन समय में एक विराट नगर था, जो वर्तमान में विभिन्न जिलो में विभाजित हैं जिसमें भगवान वासुपूज्य स्वामी के नगरी में प्रमुख चंपापुरी और मंदारगिरी है.

भगवान वासुपूज्य स्वामी जन्म से ही वैरागी थे, जिन्होंने वैराग्य अवस्था में भ्रमण के क्रम में चंपापुरी से मंदारगिरी पहुुंचे थे, जहां उन्होंने तप, केवल ज्ञान और मोक्ष को प्राप्त किया. और ये तीन कल्याणक बांका जिला मंदारगिरी में हुआ. जिसे जैन धर्मावलंबी भगवान वासुपूज्य के क्रमश: तप कल्याणक, ज्ञान कल्याणक और मोक्ष कल्याणक मंदारगिरी को कहते हैं.

भगवान वासुपूज्य का जन्म चंपापुरी के इक्ष्वाकु वंश के महान राजा वसुपूज्य की पत्नी जया देवी के गर्भ से फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ था. भगवान वासुपूज्य ने फाल्गुन अमवस्या तिथि को ही दीक्षा प्राप्त की थी. दीक्षा प्राप्त के पश्चात माघ शुक्ल द्वितीया के एक माह की छदमस्थ साधना कठिन तप करने के बाद पाटल वृक्ष के नीचे वासुपूज्य स्वामी को ‘कैवल्य ज्ञान ‘ की प्राप्ति हुई थी. वासुपूज्य जन्म से ही वैरागी थे, इसलिए इन्होंने वैवाहिक प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया. राजपद से इनकार कर साधारण जीवन व्यतीत किया. फाल्गुण कृष्ण अमावस्या को वासुपूज्य भगवान ने प्रवज्या में प्रवेश किया.

भगवान वासुपूज्य जी ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी के दिन मनोहर उद्यान में 94 वे मुनियों के साथ मंदारगिरी से मोक्ष को प्राप्त किया. पौराणिक कथा के अनुसार वर्तमान में पापहरणी कहा जाने वाला मंदारगिरी तलहटी मनोहर सरोवर के नाम से जाना जाता था, उसी के नाम से वासुपूज्य के निर्वाण भूमि मनोहर उद्यान कहलायी. भगवान वासुपूज्य स्वामी ने दीक्षा के पश्चात प्रथम आहार मंदारगिरी में ही लिया था, जो आज मंदारगिरी में मनोहर उद्यान के रूप में बारामती मंदिर के नाम से अवस्थित है.

मंदारगिरी के बौंसी बाजार स्थित एक विशाल ऊंचे शिखर का दिगंबर जैन मंदिर है, जो तीर्थयात्रियों को काफी आकर्षित करती है. यह मंदिर का शिखर लगभग 2 किलोमीटर मेन रोड से ही नजर आता है. मंदिर के बाहरी ओर कांच की नक्काशी की गयी जो बहुत ही आकर्षक लगती है. इसी मंदिर से 500 मीटर की दूरी पर पूर्ण पत्थर से निर्मित मंदिर बारामति मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, पूर्ण पत्थर से निर्मित होने के कारण इसे लोग पत्थर मंदिर के नाम से भी जानते हैं.

मंदार पर्वत शिखर स्थित भगवान वासुपूज्य की कल्याणक स्थली पर बना दिगंबर जैन मंदिर का शिखर पर्वत की शोभा बढ़ाती है जो कई किलोमीटर दूर से ही प्रतीत होता है. मंदारगिरी के सुरम्य वादियों का लुफ्त उठाने तथा जैन तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य स्वामी की निर्वाण भूमि पर हर जैन धर्मावलंबी अपने जीवन में शीश टेकने एकबार जरूर यहां आते है और उनकी मनोकामना पूर्ण भी होती है. साथ ही साथ यह पवित्र पावन स्थली जैन मतावलंबियों के लिये सिद्ध क्षेत्र होने के कारण विशेष तौर पर आस्था का केंद्र है.

कैसे पहुंचें

कैसे पहुंचे : भागलपुर से मंदारहिल लगभग 50 किलो मीटर दूर है. जहां रेल और सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता हैं. जबकि जसीडीह से लगभग 75 किलोमीटर.

कहां ठहरे : बाजार में हर बजट का होटल हैं. इसके अलावा यहां कई धर्मशालाएं हैं.

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