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फार्मासिस्ट के नहीं होने से दुकानदारों की बढ़ीं मुश्किलें.. बंद हो जायेंगी 90% दवा दुकानें
गया : आने वाले समय में दवा व्यवसाय को भारी नुकसान होने की संभावनाएं दिख रही हैं. दुकानों के लाइसेंस निबंधन व रिन्युअल को लेकर जो आॅनलाइन व्यवस्था हुई है, उसके बाद से दवा दुकानदारों की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं.पहले से राज्य में फार्मासिस्ट की कमी अब आॅनलाइन व्यवस्था हो जाने पर मुसीबत […]
गया : आने वाले समय में दवा व्यवसाय को भारी नुकसान होने की संभावनाएं दिख रही हैं. दुकानों के लाइसेंस निबंधन व रिन्युअल को लेकर जो आॅनलाइन व्यवस्था हुई है, उसके बाद से दवा दुकानदारों की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं.पहले से राज्य में फार्मासिस्ट की कमी अब आॅनलाइन व्यवस्था हो जाने पर मुसीबत बन गयी है. दवा बाजार के जानकारों की मानें, तो इस व्यवस्था में आने वाले समय में 90 प्रतिशत दवा दुकानें बंद हो जायेंगी. या फिर अवैध रूप से चलेंगी.
इस बात पर ड्रग विभाग के एक अधिकारी ने भी सहमति दी है. फार्मासिस्ट की कमी को दूर करने के लिए अभी तक सरकार के स्तर से कोई प्रयास होता दिख नहीं रहा है. ऊपर से आॅनलाइन निबंधन के नियम ने इस व्यवसाय पर नकेल कस कर गलत ढंग से चल रही दवा दुकानों को बंद कराने की पूरी गारंटी कर दी है. अॉनलाइन सिस्टम में कोई भी व्यक्ति जब दवा की दुकान के लिए लाइसेंस लेने या रिन्युअल की प्रक्रिया में जाता है, तो उसे प्रतिष्ठान से जुड़े सभी कागजात जमा करने होते हैं.
इसमें एक काॅलम फार्मासिस्ट का भी है. दुकान के लिए किस फार्मासिस्ट को रखा गया है,उसकी पूरी जानकारी दुकानदार को उक्त कॉलम में देनी होगी. इसमें फार्मासिस्ट का आधार नंबर भी लिंक हो जायेगा. यह प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही निबंधन होगा. ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट है कि बिना फार्मासिस्ट वाली दुकानें बंद करनी होगी.
अब तक की स्थिति
अब तक मैनुअल रजिस्ट्रेशन में यह समस्या नहीं आ रही थी, क्योंकि एक फार्मासिस्ट अपने जिले के अलावा दूसरे कई जिलों में भी दुकानों में काम कर रहा था. मैनुअल व्यवस्था में जांच मुश्किल थी. अब आॅनलाइन होने के बाद फार्मासिस्ट का आधार नंबर लिंक हो जायेगा. ऐसे में वह किसी दूसरे जिले में किसी दुकान के साथ नहीं जुड़ सकता. धांधली को रोकने के लिए सरकार की आॅनलाइन व्यवस्था तो ठीक है, लेकिन सवाल वही है कि फार्मासिस्ट आयेंगे कहां से.
बढ़ रही दुकानों की जरूरत, पर नहीं हैं फार्मासिस्ट
ड्रग विभाग के एक पदाधिकारी ने बातचीत के दौरान कहा कि यह वाकई एक बड़ी समस्या है. सरकारी कर्मचारी होने के नाते उन लोगों की ड्यूटी है कि वह सरकार द्वारा तय नियमों को लागू करायें. लेकिन समस्या तो है. बिना फार्मासिस्ट के लाइसेंस मिल ही नहीं सकता है. उन्होंने बातचीत के दौरान तथ्यों के साथ अपनी बातें रखी. उन्होंने कहा कि यह मान लिया जाये कि प्रत्येक दो हजार की आबादी पर एक दवा की दुकान होनी चाहिए, तो जिले व राज्य की जनसंख्या के मुताबिक कितनी दुकानें चाहिए यह स्पष्ट हो जायेगा. सवाल यह है कि क्या उन दुकानों की तुलना में राज्य में फार्मासिस्ट हैं? नहीं. यह तो मौजूदा स्थिति का हिसाब है.
अब जनसंख्या के रेट आॅफ ग्रोथ को भी जोड़ लें, तो हर साल बढ़ती अाबादी के साथ नयी दवा दुकानों की जरूरत है, लेकिन फार्मासिस्ट हैं ही नहीं. राज्य के प्राइवेट व सरकारी स्तर पर जितने फार्मेसी काॅलेज हैं, वह पूरे साल में लगभग 300 फार्मासिस्ट ही तैयार कर पाते हैं. जमीनी हकीकत यह भी है कि इनमें में से 50 प्रतिशत अपने आगे के कैरियर को लेकर राज्य के बाहर चले जाते हैं.
शेष जो बचते हैं उनमें से 10 प्रतिशत सरकारी व प्राइवेट नौकरी में लग जाते हैं. अब सवाल है कि 40 प्रतिशत फार्मासिस्ट को लेकर व्यवसाय कैसे आगे बढ़ सकता है.
सरकार तक कई बार पहुंची बात
दवा विक्रेताओं के मुताबिक वर्षों से ड्रगिस्ट व केमिस्ट संगठन राज्य सरकार को इस समस्या से अवगत कराता रहा है. लेकिन इस विषय पर कभी विचार ही नहीं किया गया. ऐसे में दवा व्यवसायी मांग कर रहे हैं कि औषधि नियंत्रण प्रशासन द्वारा दिसंबर 2017 तक खुदरा दवा दुकानों के लिए निर्गत लाइसेंस के अनुपात में फार्मासिस्ट की कमी को पूरा करने की व्यवस्था की जाये, तब तक इस नियम का हवाला देकर दवा व्यवसायियों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए. दवा व्यवसायियों के मुताबिक सरकार द्वारा यदि कोई पहल नहीं की गयी, तो राज्य की लगभग 90 प्रतिशत खुदरा दुकानें स्वत: बंद हो जायेंगी. ऐसे में दूर-दराज के क्षेत्रों में दवा की समस्या हो जायेगी. ऐसी स्थिति में यह भी संभव है कि दवा का अवैध व्यापार शुरू हो जायेगा. इस स्थिति के विरोध में आगामी 28 सितंबर को दवा व्यवसायी एक दिन का हड़ताल करने की भी तैयारी में हैं.
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