नेशनल कंटेंट सेल
-छह साल की उम्र में बिछड़ा बेटा, मिलने की नाउम्मीदी के बीच मां-बाप तक पहुंचा
परिवार से मिलने की आस खो चुके हसन (15) के चेहरे पर नौ साल बाद मुस्कान लौटी है. मंगलवार को बाल कल्याण कमेटी ने हसन को उसके परिवार से मिलवा दिया. हसन मदरसे में मच्छरों के काटने से परेशान होकर 2009 में दिल्ली से भाग आया था और अपना घर भूल गया था. इसके बाद से वह शेल्टर होम में रह रहा था.
जुलाई में शेल्टर होम से गये एक टूर के दौरान हसन ने सुल्तानपुर दिल्ली क्षेत्र को जाना पहचाना क्षेत्र बताया जिस पर कमेटी के कॉर्डिनेटर ने अच्छे की उम्मीद में उसके परिवार को ढूंढना शुरू कर दिया. आशिफ अली ने बताया कि जुलाई में हसन के बताने के बाद वह उसे लेकर सुल्तानपुर में उसका घर तलाशने लगे और मदरसों में पूछताछ की. इसी दौरान उन्हें छतरपुर क्षेत्र के मदरसे से हसन के परिजनों के बारे में पता लगा और हसन के नाना-नानी से मुलाकात हुई जहां से उसके माता-पिता का पता लगा.
बाल कल्याण कमेटी की चेयरमैन शकुंतला ढुल ने बताया कि 2009 में हसन को सेक्टर-चार स्थित उज्जवल निकेतन में लाया गया था. उज्जवल निकेतन में खामियां पाये जाने के बाद उसे 2017 में बंद कर दिया गया. यहां रहने वाले बच्चों को दूसरे शेल्टर होम उद्यान केयर में स्थानांतरित कर दिया गया था. यहां कॉर्डिनेटर आशिफ अली शेल्टर होम के बच्चों को 22 जुलाई को घुमाने के लिए सोनीपत के जुरासिक पार्क ले गये थे. जाते वक्त हसन ने दिल्ली के सुल्तानपुर को पहचाना था.
शेल्टर होम कॉर्डिनेटर ने निभायी अहम भूमिका
हसन को परिजनों से मिलवाने में शेल्टर होम कॉर्डिनेटर ने अहम भूमिका निभायी. हसन के परिवार से मिलने के बाद कुछ अन्य बच्चे भी अपने परिवार के बारे में बताने के लिए आगे आ रहे हैं. कमेटी इसे अपने लिए बड़ी उपलब्धि बता रही है.
मिलने के लिए शेल्टर होम के बाहर ही बैठे रहे परिजन
हसन के सकुशल मिलने से परिवार खुश है. उसे देखते ही परिजनों की आंखें छलक उठी. सोमवार को सूचना मिलते ही वह अपने आपको घर पर रोक ही नहीं पाये और नरसिंहपुर स्थित शेल्टर होम पहुंच गये. हालांकि, देर शाम होने के चलते किसी को मिलने की अनुमति नहीं थी, लेकिन एक झलक पाकर परिजन शेल्टर होम के बाहर ही बैठे रहे.
काफी तलाश के बाद भी नहीं मिला था कोई सुराग
हसन के पिता मोहम्मद सलीम ने बताया कि वह मजदूरी करते हैं. 2009 में वह हसन से बिछड़ गये थे. हसन को पढ़ने के लिए मदरसे में भेजने के बाद वह छतरपुर से कन्हई नौकरी के लिए आ गये. कन्हई में आने के बाद उन्हें फोन आया कि हसन मदरसे से भाग गया. काफी तलाश के बाद भी उसका कोई सुराग नहीं लगा था. अब वह काम के लिए राजस्थान के अलवर के गांव जवाना में रह रहे हैं.