गणपति को कला, ज्ञान-बुद्धिमता सुख-समृद्धि एवं साहित्य का देवता माना जाता है. उन्हें कृषि एवं उपज का देवता भी माना जाता है. आप इस बात से भी अवगत होंगे कि श्रीगणेश को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं, मगर दूर्वा सबसे अधिक प्रिय है. दूः+अवम्, इन शब्दों से बना है दूर्वा. ‘दूः’ यानी दूरस्थ व ‘अवम्’ यानी वह जो पास लाता है. अर्थात दूर्वा वह है, जो गणेश के दूरस्थ पवित्रकों को पास लाती है.
इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता है कि श्रीगणेश ने जब अनलासुर को निगल लिया था तब श्रीकश्यप ऋषि ने उनके पेट की जलन को शांत करने हेतु उन्हें इक्कीस गांठों की दूर्वा खिलायी थी और तभी से उन्हें इक्कीस गांठों वाली दूर्वा चढ़ाई जाने लगी. गणपति को अर्पित की जानेवाली दूर्वा कोमल होनी चाहिए. ऐसी दूर्वा को ‘बालतृणम्’ कहते हैं. पुराणों में श्रीगणेश के इक्कीस नामों एवं इक्कीस स्वरूप के पूजन का विधान है, जिसके आधार पर उन्हें इक्कीस प्रकार के पते, दूर्वा, अक्षत, श्रीफल एवं मोदक आदि पूजा में अर्पित किये जाते हैं.
उनके मंत्र- ‘ॐ गण गणपतये नमः’ में ॐ शब्द ब्रह्मा का रूप माना जाता है और ब्रह्मा के स्वरूप में ॐ स्वयं भगवान श्री गणेश हैं. ॐ का चंद्र बिंदु श्री गणेश का सबसे प्रिय मोदक है और मात्रा विनायक का सूंड माना जाता है. भगवान श्रीगणेश में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर तीनों की शक्तियां विद्धमान हैं, इसलिए उन्हें परमब्रह्म भी कहते हैं.
विनायक को मोदक एवं श्रीफल अत्यंत ही प्रिय हैं, इसलिए उनको उनके प्रिय वस्तु का भोग लगाया जाता है. श्रीगणेश गणों के मुखिया माने जाते हैं, इसलिए वे मोदक और श्रीफल के समान ही बाहर से सख्त एवं भीतर से अत्यंत ही नर्म हैं.
गणपति के कई नाम हैं- सूर्य विनायक, चंद्रविनायक, कार्य विनायक, जल विनायक, लंबोदर, गजानन, अष्ट विनायक, सिद्धि विनायक, गणेशा, एकदंत इत्यादि. गणेश चतुर्थी भारत में ही नहीं, अपितु जापान, नेपाल, कंबोडिया, थाइलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका आदि देशों में भी बड़े धूम-धाम से मनायी जाती है.
– विनीता चैल