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देश बड़ा या पारिवारिक सामंतशाही

तरुण विजय वरिष्ठ नेता, भाजपा tarun.vijay@gmail.com रारामेश्वरम (तमिलनाडु) का निकटतम हवाईअड्डा तिरुअनंतपुरम है. रामेश्वरम विश्व के हिंदुओं का अप्रतिम तीर्थ है- यहीं से रामसेतु जाते हैं. यहां लंका विजय से पूर्व श्रीराम ने शक्ति पूजा की थी. बारह सौ स्तंभों का प्राचीन रामेश्वर शिव मंदिर यहीं है, जो विश्व का आश्चर्य एवं अत्यंत दर्शनीय हिंदू […]

तरुण विजय

वरिष्ठ नेता, भाजपा
tarun.vijay@gmail.com
रारामेश्वरम (तमिलनाडु) का निकटतम हवाईअड्डा तिरुअनंतपुरम है. रामेश्वरम विश्व के हिंदुओं का अप्रतिम तीर्थ है- यहीं से रामसेतु जाते हैं. यहां लंका विजय से पूर्व श्रीराम ने शक्ति पूजा की थी. बारह सौ स्तंभों का प्राचीन रामेश्वर शिव मंदिर यहीं है, जो विश्व का आश्चर्य एवं अत्यंत दर्शनीय हिंदू श्रद्धाकेंद्र है. पर विडंबना यह है कि आज तक रामेश्वरम में हवाईअड्डा नहीं बना. कांग्रेस-द्रविड़ राजनीति ने इसे महत्व नहीं दिया. जब तक मोदी सरकार यहां हवाईअड्डा बनाये, उसने तिरुअनंतपुरम से रामेश्वर जोड़ने का मार्ग दो नये सेतु निर्माण कर इतना सुगम कर दिया कि तीन घंटे से ज्यादा की यात्रा अब डेढ़ घंटे में होगी.
यानी तिरुअनंतपुरम अब रामेश्वरम के हवाईअड्डे जैसा हो गया. ऐसे हजारों काम हैं, जो नरेंद्र मोदी की कल्पना से हुए हैं, पर कार्यकर्ता और सांसद या तो विपक्षी हमलों के जवाब में जुटे रहते हैं या अपने चुनाव क्षेत्र की देखभाल में. दिल्ली से गढ़मुक्तेश्वर, केदार-बद्री राजमार्ग, अरुणाचल प्रदेश को दिल्ली और गुजरात से जोड़ना, हर दिन 27 किमी राजमार्ग-जलमार्गों की नयी क्रांतिकारी सागरमाला योजना, हवाई जहाजों में 25 प्रतिशत ईंधन एथेनाॅल से मिलाकर दुनिया में मिसाल ऐसी कायम करना कि गन्ना किसानों की आय भी बढ़ेगी और पेट्रोल-डीजल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार के उतार-चढ़ाव से बढ़ने-घटने का तनाव खत्म होगा. साल 2022 तक इलेक्ट्रॉनिक वाहनों से देश का सड़क-नक्शा ही बदल जायेगा.
क्या इस सबका, देश और हम सबकी जिंदगी से कोई सरोकार नहीं? पर यह कैसा खंड-खंड राष्ट्रीय विपक्ष है, जो देश की भलाई के हर काम को देखने से इनकार करता है और भ्रष्ट, अस्वीकृत जनादेश से घायल परस्पर विरोधी ध्रुवों को सिर्फ मोदी-हटाओ की गोंद से जोड़ ‘सब कुछ खराब हो रहा है’ की धुन अलापता है? क्या देशहित, दलहित से छोटा हो गया है?
एक सज्जन जहां जाते, सिर्फ बुराई देखते. लोग तंग आ गये और शुभ कामों में बुलाना बंद कर दिया. पर कुछ सेकुलर लोग इन बातों को मानते नहीं. एक नये गृहस्वामी ने उन्हें गृह-प्रवेश में न्योता. खा-पीकर वे सेकुलर सज्जन भली-भली बातें कर मुख्य द्वार तक आ गये, पर कदम बाहर रखते हुए बोले, ‘भाई मकान तो अच्छा बना, लेकिन…’ अब गृहस्वामी डर गया, बोला- ‘आप अब जायें, फिर मिलेंगे.’ पर वे सज्जन बोले- ‘मकान अच्छा है, शानदार डिजाइन, पर यह मुख्य दरवाजा थोड़ा छोटा है.’
गृहस्वामी घबराया, बोला- ‘सर आप जाइए, हम भी छोटे हैं. सब ठीक है.’ इस पर वे सज्जन बोले- ‘कल को यदि कोई मर जायेगा, तो इस दरवाजे से अर्थी निकालने में दिक्कत होगी.’
आज का सेकुलर विपक्ष उस सज्जन की तरह ही है. सब कुछ ठीक करो, भव्य करो, ईमानदारी से करो, तो भी देश के सारे सिद्ध-भ्रष्ट इकट्ठा होकर शोर मचायेंगे कि सब कुछ गलत हो रहा है.
इस तमाम शाेर के बीच केरल ने एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया. प्राकृतिक आपदा के समय वहां आरएसएस के कार्यकर्ताओं पर माकपा के हमलों और हत्याओं के दौर की कटु यादें भुलाकर संघ परिवार से 59 से ज्यादा संगठन पूरी ताकत से सेवा कार्यों में जुटे. घोर संघ विरोधी भी इस दृश्य को देखकर चकित रह गये. स्वयंसेवकों ने राहत सामग्री के सैकड़ों ट्रक भेजे. चेन्नई से सेवा भारती ही नहीं, जनजातियों के बीच सक्रिय वनवासी कल्याण आश्रम के सैकड़ों कार्यकर्ता सेवा में जुटे. हिंदू, मुस्लिम, ईसाई- सब संघ के सेवा अभियान से लाभान्वित हुए. यह देश एक है, सब जन एक हैं, हमारे सुख-दुख हमारी साझी जिम्मेदारी है. यह भावना ही भारत को जिंदा रखती है. विचार, आस्था के आधार पर मतभेद विदेशी-कम्युनिस्ट, मिलावट का परिणाम है.
वरना भारत में जहां हर कोस पर पानी और बोली बदल जाती है, सैकड़ों जातियां, करोड़ों देवता, आस्थाएं, पंथ और रीति-रिवाज हैं, आसेतु हिमाचल एकता के सूत्र इतने सशक्त न होते. यही देखकर विदेशी कितना अचंभित होते हैं- यह मुझे ईरान यात्रा के दौरान महसूस हुआ. जुलाई में मैं ईरान के प्राचीन नगरों- शीराज, इस्फाहान, पर्सपोलिस और फिर तेहरान गया, जहां ईरान की इस्लामिक क्रांति के सशक्त नेता और वहां की राष्ट्रीय कला अकादमी के अध्यक्ष मोहम्मद अली मोअल्लम दमगानी से मेरी भेंट हुई. वे बोले- ‘आपने इतनी भाषाओं और मजहबों के बावजूद जैसे सारे हिंदुस्तान को एक रखा है. मैं कामना करता हूं कि ऐसी ही हिंदुस्तान की भावना सारी दुनिया में फैले, आप दुनिया को हिंदुस्तान जैस बना दो.’
एकता और सद्भावना का यह सूत्र छोटी लाइन को मिटाने से नहीं, बल्कि छोटी-छोटी लाइनों, यानी मतभेदों के सामने बड़े महान उद्देश्यों की बड़ी लाइनें खींचने से मिलता है.
आज भी देश में हजारों-लाखों लोग फुटपाथ पर सोते हैं. उन फुटपाथों पर जीते-मरते भारतीयों का दर्द किसी ने उठाया? प्रधानमंत्री आवाज योजना में जब ऐसे ही लोगों को घर मिलता है, तो उसे कौन देखता है? हर शहर के चौराहों पर भीख मांगते लोग और बच्चे, गंदे नालों की सड़ांध के बीच रह रहे मजदूर, दाल-दूध के बिना कसमसाता करोड़ों बच्चों का जीवन- इस भारत के लिए क्या कभी किसी ने संसद में बहस की या भारत बंद किया? नहीं. क्योंकि ये वोट बैंक नहीं हैं.
जो राजनीति अपनी और अपने परिवार की राजनीतिक जमींदारी को देश से बड़ा माने, उसे जमींदोज करने का वक्त यही है.
एकता और सद्भावना का यह सूत्र छोटी लाइन को मिटाने से नहीं, बल्कि छोटी-छोटी लाइनों, यानी मतभेदों के सामने बड़े महान उद्देश्यों की बड़ी लाइनें खींचने से मिलता है.

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