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मातृभूमि की रक्षा के लिए परमात्मा ने 19 गोली लगने के बाद भी मुझे जीवित रखा : परमवीर चक्र विजेता मेजर योगेंद्र सिंह यादव

रांची : कारगिल युद्ध के महानायक परमवीर चक्र विजेता सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव ने कहा कि यह परमात्मा की कृपा है कि 19 गोली लगने के बाद भी मुझे मातृभूमि की सेवा करने के लिए जीवित रखा़ उस समय मेरी उम्र भी 19 वर्ष थी़ पांच जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान आठ […]

रांची : कारगिल युद्ध के महानायक परमवीर चक्र विजेता सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव ने कहा कि यह परमात्मा की कृपा है कि 19 गोली लगने के बाद भी मुझे मातृभूमि की सेवा करने के लिए जीवित रखा़ उस समय मेरी उम्र भी 19 वर्ष थी़ पांच जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान आठ पाकिस्तानी सैनिकोें को मार गिराया था, मुझे भी गोलियां लगी थी.
ग्रेनेड के छर्रे लगे थे. सरकार की ओर से मुझे रात में मरणोपरांत परमवीर चक्र देने की घोषणा की गयी थी. उस समय मैं अस्पताल मेें था, सुबह में होश आया तो किसी को यकीन न हुआ. मुझे जानकारी मिली कि सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से मुझे नवाजा गया है. गर्व से मेरा सीना चौड़ा हो गया. परम पिता परमेश्वर ने मुझे मातृभूमि की सेवा के लिए जीवित रखा़ कहा जाये तो मेरा पुर्नजन्म हुआ था़
रविवार को रांची प्रेस क्लब में आयोजित मीडिया संवाद में परमवीर चक्र विजेता ने कारगिल युद्ध का संस्मरण सुनाया. उन्होंने कहा कि उस समय मेरी शादी को दो माह ही बीते थे. उन्होंने कहा कि 19 साल में सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र मिला. यह मेरे लिए गर्व की बात है.
टाइगर हिल कैप्चर करने की मिली जिम्मेवारी : परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव ने कहा कि कारगिल युद्ध 22 दिनों तक चला था. इस युद्ध में चार अधिकारी और 21 जवान शहीद हो गये थे़ उन्होंने कहा कि छुट्टी के बाद जब मैं अपने रेजीमेंट पहुंचा तो हमें टाइगर हिल को कैप्चर करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी. इस प्लाटून में कुल 15 फौजी थे.
तीन जवानों को प्लाटून को राशन पहुंचाने की जिम्मेवारी सौंपी गयी. उनमें से एक मैं भी था. 16, 500 फीट ऊंचाई पर स्थित टाइगर हिल पर जवानों को राशन पहुंचाने कई बार गये. हम तीनों की हिम्मत देख कर टाइगर हिल कैप्चर करनेवाले कमांडो ग्रुप में शामिल कर लिया गया.
दुश्मनों की योजना बतायी:
योगेंद्र सिंह यादव ने कहा कि टाइगर हिल पर हम लोगों ने दुश्मन से जम कर लोहा लिया़ हम तीन को छोड़ कर हमारे प्लाटून के 12 जवान शहीद हो गये थे़ पत्थर की ओट में छिप कर हम दुश्मनों से लोहा ले रहे थे़ इसी दौरान हम लोगों का गोला बारूद भी खत्म होने लगा. हमने दुश्मन के एक बंकर को ध्वस्त कर लाइट मशीन गन और गोला-बारूद कैप्चर कर लिया़ दोबारा दुश्मनों के दूसरे बंकर पर हमला कर दिया़
दुश्मनों की संख्या अधिक देख हम लोग जमीन पर दम साध कर करीब अाधे घंटे तक पड़े रहे़ दुश्मनों को लगा कि भारतीय सेना के जवान शहीद हो गये है़ं लेकिन अचानक दुश्मन को हमारी लाइट मशीनगन ( एलएमजी) दिख गयी.
उन्होंने हमारे ऊपर ग्रेनेड फेंका जो हम दो जवानों के बीच आकर गिरा़ हम लोगों ने फायरिंग शुरू कर दी़ उधर से भी अंधाधुंध फायरिंग होने लगी. मेरे दो साथी गंभीर रूप से घायल हो गये़ इसी बीच मेरे एक साथी को दो गोली लगी और वह मेरे गोद में शहीद हो गया. मेरे पैर व हाथ में गोलियां लगी थी. मैं शहीद साथी के शवों के साथ पड़ा था. उस समय दुश्मनों की टुकड़ी आयी और मैं जीवित हूं या नहीं जांचने के लिए तीन गोली मार दी. कुल 19 गोलियां मुझे लग चुकी थी.
कई घंटे बाद किसी तरह घिसटता हुआ मैं नीचे अपने कैंप की ओर आया. इसके बाद अपने अफसरों को दुश्मनों की योजना के बारे में बतायी. इससे पहले मैं आठ पाक सैनिकों को मार चुका था. 22 दिनों के युद्ध के बाद हमारे जवानों ने टाइगर हिल पर तिरंगा फहरा दिया और टाइगर हिल पर भारतीय सेना का कब्जा हो गया़
भाई और पिता से सेना में जाने की प्रेरणा मिली
परमवीर चक्र विजेता सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 में बुलंदशहर के औरंगाबाद अहीर गांव में हुआ था़ उन्होंने बताया कि उनके पिता करण सिंह यादव (कुमायूं रेजीमेंट) सैनिक थे, जिन्होंने 1965 और 1971 का युद्ध लड़ा था. उनके भाई भी फौज में थे़ पिता और भाई से उन्हें सेना में जाने की प्रेरणा मिली़ 10वी पास योगेंद्र सिंह यादव साढ़े 16 वर्ष की उम्र में सेना में बहाल हुए.

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