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सांकतोड़िया : रेवेन्यू बजट में कटौती की सीआइएल ने

लाभ बढ़ाने के लिए खर्च में कटौती शुरू की कंपनी प्रबंधन ने बीएमएस के प्रदेश सचिव जयनाथ चौबे ने किया इसका विरोध सांकतोड़िया : कोयला खदान में उत्पादन लागत को कम करने के लिए कोल इंडिया ने रेवेन्यू बजट में कटौती कर दी है. मैनपावर कम होने के बाद भी रविवार को ड्यूटी तथा ओवरटाइम […]

लाभ बढ़ाने के लिए खर्च में कटौती शुरू की कंपनी प्रबंधन ने
बीएमएस के प्रदेश सचिव जयनाथ चौबे ने किया इसका विरोध
सांकतोड़िया : कोयला खदान में उत्पादन लागत को कम करने के लिए कोल इंडिया ने रेवेन्यू बजट में कटौती कर दी है. मैनपावर कम होने के बाद भी रविवार को ड्यूटी तथा ओवरटाइम पर प्रतिबंध लगा दी गई है.
खदान का संचालन भी अब 365 दिन नहीं हो रहा है- यह आरोप श्रमिक संघ प्रतिनिधियों ने लगाते हुए कहा है कि सीआइएल ने प्रॉफिट बढ़ाने के लिए कई प्रकार के खर्च में कटौती शुरू कर दी है, ताकि उत्पादन लागत में कमी लाई जा सके. प्रबंधन की इस नीति का विरोध होना शुरू हो गया है. खास तौर पर अब तक प्रबंधन के साथ कदम मिला कर चल रहे श्रम संगठन बीएमएस ने विरोध करना शुरू कर दिया है.
संघ के प्रदेश सचिव जयनाथ चौबे ने कहा कि प्रबंधन मजदूर विरोधी नीति के तहत कार्य कर रहा है. इसका खामियाजा भविष्य में कोलकर्मियों को भुगतना पड़ेगा. प्रबंधन की नीति से खदान का संचालन 365 से 300 दिन किए जाने से कोल इंडिया का उत्पादन 25 फीसदी से ज्यादा प्रभावित होगा. सभी खदान में मैनपावर की कमी पहले से बनी हुई है और अब कर्मियों की ओटी तथा संडे ड्यूटी भी बंद कर दी गई है.
उन्होंने कहा कि उत्पादन प्रभावित होने का ठीकरा मजदूरों पर फोड़ा जाएगा. प्रबंधन से कमर्शियल माइनिंग दिये जाने का सभी श्रमिक संगठन प्रतिनिधियों ने विरोध जताया. प्रबंधन ने विरोध से बचने के लिए मंत्रालय स्तर पर वार्ता कर कमेटी का गठन अवश्य कर दिया, पर इस कमेटी की बैठक नहीं हो सकी. प्रबंधन इस मामले में चुप्पी साधे बैठा हुआ है. इसके साथ ही अब फिक्स्ड टर्म इम्प्लायमेंट की नीति को मजदूरों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. संघ ने स पर आपत्ति जताते हुए दोनों प्रस्ताव तत्काल वापस लेने कहा है अन्यथा कोल उद्योग में एक बार फिर आंदोलन की चेतावनी दी है.
उन्होंने कहा कि कोल प्रबंधन ने उत्पादन लागत कम करने के नाम पर रेवेन्यू बजट में कटौती कर दी और मैनपावर कम होने के बाद भी संडे तथा ओटी बंद कर दिया गया. इससे उत्पादन प्रभावित होने से मजदूरों पर ठीकरा फोड़ते हुए निजीकरण को बढ़ावा दिया जायेगा. कंपनी को अपना निर्णय वापस लेना चाहिए. इसके साथ ही प्रबंधन से भूमिगत खदान को बंद करने के प्रस्ताव पर विराम लगाने के साथ ही आधुनिकीकरण एवं मेकेनाइजेशन करने पर जोर दिया जाना चाहिए.

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