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तेल के बढ़ते दाम और अर्थनीति
योगेंद्र यादव अध्यक्ष, स्वराज इंडिया yyopinion@gmail.com क्या पेट्रोल और डीजल के दाम में बेतहाशा बढ़ोत्तरी के लिए मोदी सरकार और बीजेपी को जिम्मेदार ठहराना उचित है? जब विपक्षी दल मोदी सरकार की आलोचना करते हैं, तो समझ नहीं आता कि उनके तर्क में दम है या यह सिर्फ उनकी आदत है. उधर सरकार कहती है […]
योगेंद्र यादव
अध्यक्ष, स्वराज इंडिया
yyopinion@gmail.com
क्या पेट्रोल और डीजल के दाम में बेतहाशा बढ़ोत्तरी के लिए मोदी सरकार और बीजेपी को जिम्मेदार ठहराना उचित है? जब विपक्षी दल मोदी सरकार की आलोचना करते हैं, तो समझ नहीं आता कि उनके तर्क में दम है या यह सिर्फ उनकी आदत है. उधर सरकार कहती है कि हमें अधिकांश कच्चा तेल विदेश से आयात करना पड़ता है. पिछले कुछ महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे हैं, तो हमारे देश में भी बढ़ेंगे. सरकार का इसमें क्या कसूर? यूं भी सरकार ने अब पेट्रोल और डीजल के दाम तय करने बंद कर दिये हैं. इसके लिए सरकार को दोष देना तो बेतुकी बात है.
पहली नजर में यह बात सही लगती है. देश-दुनिया की हर बात के लिए सरकार को दोष देना सही नहीं है, और ऐसा काम अक्सर विपक्षी दल करते रहते हैं. लेकिन, अगर पेट्रोल-डीजल के दाम के अर्थशास्त्र का बारीकी से विश्लेषण करें, तो सरकार दरअसल बेगुनाह नहीं है. बीजेपी और सरकार के बचाव में दिये जा रहे तर्कों में बड़े छेद हैं. इसमें सरकार के कम-से-कम चार अपराध हैं.
पहला अपराध. जब यूपीए सरकार के दौरान 2013 में पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़े थे, तब भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम में उछाल की वजह बतायी गयी थी. बीजेपी नेताओं ने सीधे प्रधानमंत्री को इसके लिए जिम्मेदार बताया था. स्वयं नरेंद्र मोदी ने इसे ‘केंद्र सरकार की शासन चलाने की नाकामयाबी का जीता जागता सबूत’ बताते हुए दाम घटने की मांग की थी. उत्तर के हिसाब से आज पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराना चाहिए. लेकिन यह छोटा अपराध है, चूंकि विपक्ष में रहते हुए गैर जिम्मेदाराना बातें हर कोई करता है.
दूसरा अपराध डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट से संबंधित है. क्योंकि कच्चा तेल आयात किया जाता है, इसलिए जैसे-जैसे डॉलर महंगा होता जायेगा, वैसे-वैसे कच्चे तेल के दाम भी बढ़ते जायेंगे. जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली तब एक डॉलर 60 रुपये में आता था, आज उसकी कीमत 71 रुपये से ज्यादा हो गयी है. पिछले एक महीने में डॉलर की कीमत ढाई रुपये बढ़ गयी है.
इसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम बढ़ने की मार दोगुनी हो गयी है. आज सरकार कहती है कि डॉलर का महंगा होना अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव का परिणाम है. लेकिन जब बीजेपी विपक्ष में थी, तो उसने रुपये के दाम गिरने पर हाय-तौबा मचायी थी और सीधे डाॅ मनमोहन सिंह को निकम्मा ठहराया था. फिर भी सच यह है कि मोदी सरकार इसके लिए अप्रत्यक्ष रूप से ही जिम्मेदार है.
तीसरा और कहीं ज्यादा गंभीर अपराध है सरकार द्वारा इस सवाल पर अर्धसत्य बोलना. सरकार देश के सामने पेट्रोल और डीजल की महंगाई का पूरा सच नहीं रख रही है.
यह कहना तो सही है कि पिछले कुछ महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़े, लेकिन यह हमारे देश में पेट्रोल-डीजल की वर्तमान कीमत का सबसे महत्वपूर्ण कारण नहीं है. जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली उस वक्त अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक बैरल कच्चे तेल की कीमत 101 डॉलर थी. उस समय दिल्ली में पेट्रोल₹ 71 और डीजल ₹57 के भाव से बिक रहा था. आज कच्चे तेल का दाम 76 डॉलर है, लेकिन दिल्ली में पेट्रोल का दाम 79 रुपये और डीजल का दाम₹ 71 हो चुका है. यानी अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल का दाम एक-चौथाई कम हुआ है. लेकिन पेट्रोल का दाम कोई 10 प्रतिशत और डीजल का दाम 20 प्रतिशत बढ़ गया है.
यहीं छुपी है पेट्रोल और डीजल के दाम में बढ़ोतरी की सच्ची कहानी. सच यह है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद संयोगवश अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में भारी गिरावट आयी. एक समय तो कच्चे तेल का दाम गिर कर सिर्फ 33 डॉलर पर पहुंच गया. अगर उस वक्त देश के पेट्रोल और डीजल के दाम को उसी हिसाब से घटने दिया जाता, तो पेट्रोल ₹24 और डीजल ₹19 रुपये लीटर हो सकता था. लेकिन सरकार ने ऐसा होने नहीं दिया.
पेट्रोल और डीजल के दाम में मामूली सी कटौती हुई और सरकार ने अपना टैक्स बढ़ा दिया. तेल की रिफाइनरी और डीलर का कमीशन बढ़ा दिया. देखादेखी राज्य सरकारों ने भी वैट बढ़ा दिया. लेकिन जब कच्चे तेल के दाम बढ़ने शुरू हुए, तब सरकार ने उसका बोझ सीधे उपभोक्ता पर डाल दिया. तेल के दाम गिरने का फायदा सरकार को हुआ, लेकिन दाम बढ़ने का नुकसान उपभोक्ता को हुआ. यहां गौर कीजिए कि पेट्रोल का दाम कम तेजी से बढ़ा, लेकिन डीजल का दाम ज्यादा तेजी से बढ़ा, जिसकी मार किसानों और मछुआरों पर पड़ी है.
सरकार के समर्थक बात को घुमाने के लिए कहते हैं कि सिर्फ केंद्र सरकार दोषी नहीं है.
राज्य सरकारों ने भी अपने टैक्स बढ़ाया है. बात सही है, लेकिन अधिकतर राज्य सरकारें भी तो बीजेपी की ही हैं. अगर राज्य सरकारों की तुलना की जाये, तो दिल्ली और कोलकाता की तुलना में बीजेपी की महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई में टैक्स में ज्यादा बढ़ोतरी की है. जैसे भी देखें, बीजेपी पेट्रोल-डीजल की कीमतों की बढ़ोतरी की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकती.
अब बीजेपी समर्थक कहेंगे कि ठीक है, सरकार ने पेट्रोल और डीजल को सस्ता करने के बजाय सरकारी खजाने में पैसा डाला, लेकिन कोई चोरी और भ्रष्टाचार तो नहीं किया. एक बार इसे मान लेते हैं कि अगर सरकार पेट्रोल और डीजल को बहुत सस्ता होने देती, तो उससे फिजूलखर्ची और प्रदूषण बढ़ सकता था. तो सवाल उठता है कि सरकार ने उस पैसे का क्या किया?
मोटा अनुमान लगायें, तो मोदी सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर अतिरिक्त टैक्स और सरकार के अपने पेट्रोल-डीजल खर्चे में हुई बचत से कोई छ: लाख करोड़ रुपया अतिरिक्त कमाया.
कोई समझदार या दूरदर्शी सरकार होती, तो वह इस आय को आनेवाली पीढ़ी के लिए भविष्य निधि में डालती. या फिर भविष्य में तेल के दाम बढ़ने से बचाने का कोई फंड बनाती. या फिर ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत विकसित करने की कोई बड़ी योजना बनाती. लेकिन मोदी सरकार ने इस सारे पैसे को सरकार के रोजमर्रा के खर्चे में उड़ा दिया. इस पैसे का उपयोग अरुण जेटली ने अपनी अर्थनीति की दूसरी नाकामियों को ढकने के लिए किया.
आनेवाली पीढ़ियों के लिए कुछ दूरगामी काम करने का ऐसा अवसर 10 या 20 साल में एक बार ही आता है, लेकिन बीजेपी सरकार ने इसे गंवा दिया. राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी मोदी सरकार का सबसे बड़ा अपराध है.
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