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पूरे शरीर को प्रभावित करता है ऑटोइम्यून डिसऑर्डर

स्वप्रतिरक्षित रोग या ऑटोइम्यून डिजीज का नाम भारत में शायद अधिकतर लोगों ने सुना तक नहीं. कई बार यह समस्या काफी लंबे समय से शरीर में बनी रहती है और रोगी को इसकी जानकारी भी नहीं हो पाती. हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) हमें बीमारी और संक्रमण से बचाती है, लेकिन यदि ऑटोइम्यून […]

स्वप्रतिरक्षित रोग या ऑटोइम्यून डिजीज का नाम भारत में शायद अधिकतर लोगों ने सुना तक नहीं. कई बार यह समस्या काफी लंबे समय से शरीर में बनी रहती है और रोगी को इसकी जानकारी भी नहीं हो पाती.

हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) हमें बीमारी और संक्रमण से बचाती है, लेकिन यदि ऑटोइम्यून डिजीज हो, तो यही इम्यून सिस्टम गलती से हमारी स्वस्थ कोशिकाओं पर ही हमला करने लगती है. यह डिसऑर्डर शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित कर सकता है.

इस बारे में भाटिया हॉस्पिटल, मुंबई के फिजीशियन डॉ अभिषेक सुभाष बताते हैं, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर के कारणों के बारे में अभी तक ठीक से पता नहीं चल पाया है.

कुछ रिसर्च जो हालांकि अभी प्रमाणित नहीं हुए हैं, की मानें तो यह बीमारी प्रचुर मात्रा में कार्बोहाईड्रेट और फैट से युक्त भोजन खाने से होती है. साथ ही हाइजीन हाइपोथिसिस भी एक वजह मानी जाती है. जहां लोग खासकर बच्चे, बहुत ही साफ-सुथरे वातावरण में रहने के कारण बाहरी एंटीजन के संपर्क में नहीं आते, वे इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं. कुछ कारण जेनेटिक भी माने जाते हैं. इसके अलावा सिस्टेमिक ल्यूपूस एरीथेमेटोसस (एसएलई) रोग भी इसकी वजह हो सकता है.

महिलाओं में यह समस्या अधिक पायी जाती है. यह एक क्रॉनिक आटोइम्यून बीमारी है. ल्यूपस रोग में हृदय, फेफड़े, गुर्दे और मस्तिष्क प्रभावित होते हैं और जीवन को खतरा पैदा हो जाता है. ल्यूपस पीड़ितों को अवसाद या डिप्रेशन होने का खतरा बना रहता है.

प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रामक एजेंटों, बैक्टीरिया और विदेशी रोगाणुओं से लड़ने के लिए बनी है. इसके काम करने का तरीका है एंटीबॉडीज बनाकर संक्रामक रोगाणुओं से मुकाबला करना. ल्यूपस वाले लोगों के खून में ऑटोएंटीबॉडीज बनने लगती हैं, जो बाहरी संक्रामक एजेंटों के बजाय शरीर के स्वस्थ ऊतकों और अंगों पर ही हमला करने लगती हैं. माना जाता है कि यह डिसऑर्डर जीन्स और पर्यावरणीय कारकों का मिश्रण हो सकता है. सूरज की रोशनी, संक्रमण और कुछ दवाएं जैसे कि मिर्गी की दवाएं इस रोग में ट्रिगर की भूमिका निभा सकती हैं.

दवाओं से किया जा सकता है कंट्रोल

इस बीमारी के कारण आपको रूमेटाइड अर्थराइटिस, टाइप-1 डायबिटीज, थायरॉइड समस्या, ल्‍यूपस, सोराइसिस आदि कई बीमारियां हो सकती हैं. यह बीमारी तब होती है जब शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों, संक्रमणों और खाने में मौजूद विशुद्धिओं को दूर करने के लिए हमारी प्रतिरोधक क्षमता संघर्ष करती है. इस बीमारी के होने के बाद शरीर के ऊतक ही शरीर को बीमार और कमजोर बनाते हैं.

यह डिसऑर्डर लंबे समय तक कायम रहता है. इसका पूरी तरह से इलाज तो संभव नहीं है, पर इम्योनो सप्रेसिव दवाइयों की सहायता से से कंट्रोल किया जा सकता है. शरीर के कौन-से हिस्से पर इसका असर हुआ है, उसके अनुसार स्पेशलिस्ट डॉक्टर इलाज करते हैं, जैसे- किडनी रोग विशेषज्ञ, ह्मेटोलॉजिस्ट, एंडोक्राइनोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, स्किन स्पेशलिस्ट, फिजीशियन, ऑडियोलॉजिस्ट आदि.

80 से ज्यादा हैं प्रकार

ऑटोइम्यून डिजीज के 80 से ज्यादा प्रकार हैं और इनमे से कुछ के लक्षण समान होते हैं. इसकी वजह से डॉक्टर के लिए यह जानना कठिन हो जाता है कि आपको यह रोग है या नहीं. और यदि है तो कौन-सा रोग है.

अक्सर, शुरुआती लक्षण थकान, मांसपेशी में दर्द और हल्का बुखार होता है. हाथ-पैरों में झुनझुनी होना या सुन्‍न हो जाना, रक्त के थक्के जमना और जोड़ों में दर्द होना भी लक्षण हैं. शरीर पर फफोले और लाल चकत्ते पड़ने लगते हैं. मुख्य लक्षण प्रदाह है, जिसकी वजह से लाली, जलन, दर्द और सूजन हो सकती है. अनिद्रा की शिकायत होना, दिल की धड़कन अनियंत्रित होना, स्किन अधिक सेंसिटिव हो जाना, जिसकी वजह से यह बीमारी त्वचा रोगों और संक्रमण के रूप में भी सामने आती है. त्वचा के इस संक्रमण पर बाहरी दवाओं का कोई असर नहीं होता. मुंह में बार-बार अल्सर, सोरायसिस व बालों का झड़ना भी प्रमुख उदाहरण हैं.

यह डिसऑर्डर अचानक तीव्रता से बढ़ जाता है और अचानक ही हल्का भी पड़ जाता है. सिर से पांव तक, शरीर के किसी भी हिस्से पर यह असर कर सकता है.

लंबे समय तक कायम रहनेवाली यह बीमारी पुरुषों के बजाय महिलाओं में ज्यादा होती है. इसके होने की आशंका लगभग 13 से 45 वर्ष की स्त्रियों में अधिक होती है. ऐसा उनके हार्मोंस की वजह से होता है. विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ानेवाले साबूत अनाज का सेवन अधिक करें, इसमें मौजूद लेक्टिन प्रतिरोधक क्षमता को तुरंत बढ़ायेगा. खाने में ताजे फल-सब्जियों को शामिल करें. नियमित व्यायाम को अपनी दिनचर्या बनाइए.

बातचीत

डॉक्टर से पूरी जांच कराएं

डॉ अभिषेक सुभाष

एमडी फिजीशियन, भाटिया हॉस्पिटल, मुंबई

हमारे इम्यून सिस्टम का काम होता है शरीर के बाहरी, हानिकारक और विषैले तत्वों से शरीर की रक्षा करना. यदि किसी के शरीर में यही एंटीबॉडीज़ हानिकारक तत्वों और शरीर की कोशिकाओं और उत्तकों में फर्क करना भूल जाये, तो वह गलती से शरीर की कोशिकाओं और उत्तकों पर ही आक्रमण कर उन्हें नष्ट करना शुरू कर देती है.

यही स्थिति ऑटोइम्यून डिसऑर्डर या प्रतिरक्षा विकार कहलाता है. अगर प्रमुख लक्षणों की खुद में पहचान हो, तो तुरंत डॉक्टर से पूरी जांच कराएं, ताकि समय रहते उपचार के लिए आवश्यक कदम उठाये जा सकें. खुद को सक्रिय रखें.

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