बेंगलुरु : पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने बुधवार को आरोप लगाया कि देश में मौजूदा सरकार के तहत आपातकाल जैसे हालात हैं और माओवादी संबंधों के संदेह में पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी दिखाती है कि विरोध की कोई भी आवाज सुरक्षित नहीं है. उन्होंने यहां संवाददाताओं को बताया कि मंगलवार को जो हुआ, वह बोलने और प्रेस की आजादी पर हमले का अहम उदाहरण है.
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पुणे पुलिस ने मंगलवार को विभिन्न राज्यों में कुछ प्रमुख कार्यकर्ताओं के घरों पर छापे मारे और माओवादी संबंधों के शक में उनमें से कम से कम पांच लोगों को गिरफ्तार किया था. यह छापे पिछले साल 31 दिसंबर को ‘एलगार परिषद’ कार्यक्रम के दौरान पुणे के निकट कोरेगांव-भीमा गांव में दलितों और ऊंची जाति के पेशवाओं के बीच हुए संघर्ष की जांच के तहत मारे गये.
पूर्ववर्ती एनडीए सरकार में मंत्री रहे सिन्हा मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार के कटु आलोचक हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि आलोचना और विरोध के सुर को दबाने के लिए एक ‘साजिश’ की जा रही है. उन्होंने कहा कि यह गिरफ्तारियां दिखाती हैं कि विरोध की आवाज उठाने वाले लोग सुरक्षित नहीं हैं और विरोधी आवाज को दबाने के कई तरीके हैं.
सिन्हा ने कहा कि पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी स्पष्ट रूप से यह दिखाती है कि देश में मौजूदा केंद्र सरकार के तहत भारत में आपातकाल जैसे हालात हैं. उन्होंने कहा कि पूर्व में अदालतों द्वारा कई ‘दुर्भाग्यपूर्ण फैसले’ पारित हुए हैं, उनमें से सबसे नया है मीडिया को विरोध की खबरों के प्रकाशन से रोकना. उन्होंने कहा कि कई तरीके हैं, जिससे किसी को चुप कराया जा सकता है.
उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि मैं मानहानि के मामलों के बारे में जिक्र किया. यह मेरे खिलाफ भी दायर किया जा सकता है. सरकार के द्वारा नहीं, बल्कि किसी निजी पक्ष द्वारा जो इस मामले में शामिल हो और फिर मैं अपने बचाव के लिए अदालतों के चक्कर लगाता रहूंगा.