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सिनेमा में सकारात्मक बदलाव हो

भारतीय सिनेमा का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक संदेश देना भी है. एक जमाने में फिल्म का मुख्य किरदार गरीबी, लाचारी और अन्याय के खिलाफ संघर्ष से जीत हासिल करता था. उन किरदारों को सामाजिक दृष्टि से देखा जाता था और उसका प्रभाव देश-समाज के युवा मानस पर सकारात्मक रूप में पड़ता था, लेकिन अब […]

भारतीय सिनेमा का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक संदेश देना भी है. एक जमाने में फिल्म का मुख्य किरदार गरीबी, लाचारी और अन्याय के खिलाफ संघर्ष से जीत हासिल करता था. उन किरदारों को सामाजिक दृष्टि से देखा जाता था और उसका प्रभाव देश-समाज के युवा मानस पर सकारात्मक रूप में पड़ता था, लेकिन अब जो फिल्में बन रही हैं, उनमें सामाजिक पहलू गायब हो चुका है.
फिल्म की कहानी से लेकर उसके दृश्य भी बदल चुके हैं. ये फिल्में अश्लीलता से शुरू होकर हिंसा पर खत्म हो जाती हैं. जाहिर है कि ऐसी फिल्में समाज के लिए उपयोगी कम, नकारात्मक प्रभवा डालने वाली ज्यादा हो गयी हैं. इन फिल्मों में हिंसा और क्रूरता से युवा वर्ग भ्रमित हो रहा है, जिसका समाज पर गहरा नकारात्मक असर पड़ रहा है. ऐसे में जरूरी है कि सिनेमा में सकारात्मक बदलाव हो.
महेश कुमार, सिद्धमुख (राजस्थान)

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