हरीश तिवारी@लखनऊ
योगी सरकार ने निजी स्कूलों की फीस को लेकर की जाने वाली मनमानी रोकने के विधेयक को विधानमंडल के दोनों सदनों में रख दिया है. अभी तक सरकार इस विधेयक से संबंधित अध्यादेश लाकर इसके जरिए निजी स्कूलों की फीस पर नियंत्रण कर रही थी. लेकिन दोनों सदनों से पास होने के बाद अब निजी स्कूल मन मुताबिक फीस में इजाफा नहीं कर पायेंगे.
असल में इस साल के शुरूआत में अभिभावकों की संस्थाओं और स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा निजी स्कूलों में लिए जाने वाले फीस तय किये जाने के लिए सरकार से मांग की गयी थी. इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी निजी स्कूलों पर लगाम लगाये जाने के पक्ष में था. इसके लिए संघ ने प्रदेश में गुजरात मॉडल को शुरू करने की वकालत राज्य सरकार से की थी. संघ द्वारा इस मामले मे हस्तक्षेप करने के बाद सरकार पर इस बात को लेकर दबाव बन गया था कि निजी स्कूलों में लिए जाने वाले फीस को तय किया जाए. साथ स्कूलों में किताब और ड्रेस के लिए जाने नियम कानून बनाये जाए.
आमतौर पर स्कूल या तो किताबें बेंचते हैं या फिर किसी पुस्तक विक्रेता के साथ मिलकर पुस्तकों को स्कूलों में बिकवाते हैं. लिहाजा इसकी रोकथाम के लिए सरकार ने कुछ महीने पहले इसके लिए अध्यादेश लाकर अभिभावकों को राहत देने की सोची. अब राज्य सरकार ने इस विधेयक को सदन में पेश किया है. अब दोनों सदनों से इसके पास होने के बाद इसे पूरे राज्य में लागू कर दिया जायेगा.
सरकार द्वारा उप्र स्ववित्त पोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क निर्धारण) विधेयक 2018 को पेश किया गया. निजी कॉलेजों की फीस निर्धारण के अध्यादेश को विधेयक में लाकर सरकार की ओर से कहा गया है कि प्रदेश के छात्र-छात्राओं को सस्ती एवं गुणवत्तापरक शिक्षा सुलभ कराने के लक्ष्य व निजी स्कूलों द्वारा छात्रों से वसूल किये जा रहे मनमाने शुल्क को विनियमित करने के लिए एक विधि बनाने की जरूरत हो रही है.
सरकार ने 9 अप्रैल को अध्यादेश के माध्यम से इसको प्रख्यापित कर दिया था, अब अध्यादेश की जगह सरकार विधेयक लेकर आयी है. अध्यादेश में पहले ही विद्यालयों के शुल्क को पंजीकरण शुल्क, प्रवेश, परीक्षा शुल्क, संयुक्त वार्षिक शुल्क श्रेणी में रखा गया था. प्रवेश शुल्क सिर्फ प्रथम बार दाखिला लेते समय देय होगा. विद्यालयों में शुल्क संग्रहण की प्रक्रिया खुली, पारदर्शी व उत्तरदायी होगी.