विष्णु गिरि/दिवाकर सिंह
सिल्ली/रांची : जकार्ता में हो रहे एशियन गेम्स की तीरंदाजी प्रतियोगिता के फाइनल में पहुंच चुकी मधुमिता का कहना है कि देश के लिए गोल्ड मेडल जीत कर लाऊंगी. इससे कम कुछ भी नहीं. इसके लिए जान लगा दूंगी. रामगढ़ जिले के वेस्ट बोकारो (घाटो) की रहनेवाली मधुमिता ने कंपाउंड टीम इवेंट के फाइनल में जगह बनायी है. मंगलवार को फाइनल मुकाबला दक्षिण कोरिया की टीम से होगा. अपने प्रैक्टिस के व्यस्त क्षणों के बीच समय निकाल कर प्रभात खबर से विशेष बातचीत में मधुमिता ने कहा कि मान लो तो हार है, ठान लो तो जीत. इस बात को हमेशा अपने दिमाग में रखती हूं और परिणाम दुनिया के सामने है. उन्होंने कहा कि इस साल चार अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हुई हार से वह विचलित नहीं हुई. इसी का परिणाम है कि एशियन गेम्स के फाइनल में पहुंची. मंगलवार को होनेवाले फाइनल के लिए उन्होंने अपनी टीम के साथ सोमवार को दो घंटे अभ्यास किया. उन्होंने अपने सफर और फाइनल मुकाबले को लेकर विशेष बातचीत की.
यहां तक का सफर कैसा रहा
हम सिर्फ एकाग्रता के साथ खेलते गये और मेरे मन में विश्वास था कि हम कुछ बेहतर करेंगे. इस साल चार इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में असफलता से निराशा जरूर हुई, पर हताश नहीं हुई. पूरा ध्यान एशियन गेम्स में लगा दिया. सेमीफाइनल के दो सेट में हमारी टीम पीछे चल रही थी, लेकिन इसके बाद हमने वापसी की और लगातार दो सेट जीत कर फाइनल का रास्ता बनाया.
फाइनल की क्या तैयारी है
जकार्ता में जहां तीरंदाजी का अभ्यास किया जाता है, वहां सभी देशों के लिए एक-एक घंटे का समय प्रैक्टिस के लिए निर्धारित है. मेरे प्रैक्टिस का समय सुबह 10 से 11 बजे निर्धारित था, लेकिन कोच हमें ग्राउंड में सुबह नौ बजे ही ले गये और हमने दो घंटे अभ्यास किया. हमने सोमवार को बेहतर निशाना साधा और फाइनल की तैयारी की.
मौसम का कितना असर पड़ता है
मौसम का असर पड़ता है. प्रतियोगिता में भाग ले रही सभी टीमों पर इसका असर पड़ता है. सबसे अधिक हवा प्रभावित करती है. हमें टारगेट पर तीर छोड़ने के लिए 20 सेकेंड का समय मिलता है. अगर इस दौरान हवा बहती है, तो भी तीर छोड़ना पड़ता है. उस समय परेशानी होती है. इसकी तैयारी भी हम लोगों ने कर रखी है.
आप अपनी सफलता को कैसे देखती हैं
सिल्ली की बिरसा मुंडा आर्चरी एकेडमी से तीरंदाजी की ट्रेनिंग ले चुकी मधुमिता ने कहा कि उसकी सफलता के पीछे केंद्र के संरक्षक सुदेश कुमार महतो एवं उनकी पत्नी नेहा महतो का अहम योगदान है. कोच प्रकाश राम व शिशिर महतो के मार्गदर्शन के कारण ही आज इस मुकाम पर पहुंची हूं. उन्होंने कहा कि सेंटर के तीरंदाजों और मम्मी-पापा के सपोर्ट के बगैर कुछ भी संभव नहीं था.
वर्ष 2009 से बिरसा मुंडा आर्चरी अकादमी में है मधुमिता
वर्ष 2009 में मधुमिता ने बिरसा मुंडा आर्चरी एकेडमी में प्रवेश लिया था. उस वक्त एकेडमी में कुल 10 तीरंदाज ही थे. कोच प्रकाश राम की देखरेख में मधुमिता ने कड़ी मेहनत की. वह राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में 50 से अधिक पदक जीत चुकी है. वहीं, नौ वर्षों में 12 अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी भाग ले चुकी है. हालांकि पहली सफलता उसे जकार्ता में ही मिली. मधुमिता के पापा जितेंद्र नारायण सिंह टाटा स्टील वेस्ट बोकारो में डोजर अॉपरेटर हैं. वहीं माता सुमन देवी गृहिणी हैं. साधारण परिस्थितियों में भी बेटी को दोनों ने काफी सपोर्ट किया.
कोच प्रकाश राम ने कहा : बिरसा मुंडा तीरंदाजी केंद्र के मुख्य कोच ने कहा कि मधुमिता देश को गोल्ड दिलाने में जरूर सफल होगी, इसमें संदेह नहीं है. सीमित संसाधन व अभाव के बीच मधुमिता इस मुकाम तक पहुंची है. उसकी नियमित प्रैक्टिस व लगनशीलता के कारण यह संभव हो पाया है.
क्या कहते हैं मधुमिता के पिता : पिता जितेंद्र नारायण सिंह ने बताया कि मधुमिता बचपन से ही मेहनती और स्वभाव से जिद्दी है. वह जब कुछ ठान लेती है, उसे पूरा कर के ही दम लेती है. मेरी बेटी देश के लिए पदक जीते, देश का गर्व बने, इससे बड़ी खुशी मेरे लिए कुछ भी नहीं है.
सूत्र वाक्य : मान लो तो हार है, ठान लो तो जीत
रामगढ़ के वेस्ट बोकारो की रहनेवाली है मधुमिता
पिता जितेंद्र नारायण सिंह डोजर ऑपरेटर है, मां सुमन देवी गृहिणी है
सिल्ली में आर्चरी की ट्रेनिंग ली
कोच प्रकाश राम ने कहा : गोल्ड जीतेगी, कोई संदेह नहीं
पिता ने कहा: बेटी जब कुछ ठान लेती है, उसे पूरा कर ही दम लेती है
फाइनल में आज दक्षिण कोरिया से मुकाबला दिन के 11.15 बजे से
झारखंड की शान, बेटी मधुमिता को तीरंदाजी में महिला कंपाउंड टीम स्पर्धा के फाइनल के लिए हार्दिक शुभकामनाएं. देश को आप पर गर्व है.- रघुवर दास, मुख्यमंत्री