बीजिंग : वर्ष 1998 में परमाणु परीक्षण से लेकर 2003 में नयी सीमा वार्ता प्रक्रिया शुरू करने तक अटल बिहारी वाजपेयी को भारत की चीन नीति का वास्तुकार माना जाता है. चाईना रिफॉर्म फोरम में सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक स्टडीज के निदेशक मा जियाली ने कहा कि भारत द्वारा पोखरण परमाणु परीक्षण को लेकर जहां चीन में चिंता जतायी जाने लगी, वहीं तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधि (एसआर) प्रणाली का गठन किया.
चीन-भारत संबंधों पर चीन के पूर्व प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के साथ काम कर चुके मा ने कहा कि वर्ष 2003 में वाजपेयी की चीन यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों में काफी स्थिरता आयी. उन्होंने कहा कि वाजपेयी के शासनकाल के दौरान भारत-चीन संबंधों में काफी सुधार आया. वर्ष 2003 के दौरे के बाद भारत-चीन के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में काफी सुधार हुआ.
भारत के साथ सीमा विवाद में लंबे समय तक वार्ताकार रहे दाई बिंगुओ ने 2016 में अपने संस्मरण में लिखा कि वाजपेयी चीन-भारत सीमा विवाद को जल्द सुलझाने के लिए इच्छुक थे, लेकिन 2004 के आम चुनावों में हारने के कारण यह अवसर खत्म हो गया. दाई ने अपने संस्मरण ‘स्ट्रैटजिक डायलॉग्स’ में लिखा है कि वर्ष 2003 में अपने समकक्ष वेन के साथ रात्रि भोज के दौरान वाजपेयी ने एसआर व्यवस्था बनाने का विचार सुझाया.
दाई ने अपनी किताब में लिखा कि वाजपेयी चाहते थे कि वर्तमान सीमा समझौते से एसआर खुद को अलग कर ले और अपने प्रधानमंत्री को प्रगति के बारे में सीधा रिपोर्ट दे ताकि राजनीतिक स्तर पर इसका समाधान निकाला जा सके. दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की अध्यक्षता में सीमा प्रणाली की अब तक 20 बार बैठक हो चुकी है और भविष्य के समझौते के तौर-तरीकों पर अब तक काम हुआ है. पहले दौर की बैठक वाजपेयी सरकार में एनएसए रहे ब्रजेश मिश्रा और चीन के शीर्ष राजनयिक पद पर स्टेट काउंसिलर पर आसीन दाई के बीच हुई थी.