मेरे बाल्यकाल से अटल बिहारी वाजपेयी जैसा व्यक्तित्व मेरे मनाेमस्तिष्क काे प्रभावित करता रहा. एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने राष्ट्रसेवा के निमित फकीरी की साधना सिद्ध की. निज माेक्ष के स्वार्थ भावना काे अलग रखकर राष्ट्रनिष्ठा, राष्ट्रभक्ति एवं राष्ट्राेद्धार के लिए उन्हाेंने अाजीवन वैराग्य की राजनीतिक सन्यास मार्ग का अवलंबन किया. यह भारत की कराेड़ाें जनता काे आह्लादित एवं प्रेरित करता है.
मैं 1989 में पहली बार झारखंड मुक्ति माेर्चा का सांसद बनकर लाेकसभा पहुंचा, ताे अटलजी काे सामने से देखने का अवसर मिला. लाेकसभा में जब अटलजी से भेंट हाेती, ताे सभी सांसद नतमस्तक हाे जाते थे. 1996 में मैं भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुआ, ताे वे रांची आये आैर एक विशाल जनसभा काे संबाेधित किया. समय था 12वीं लाेकसभा के चुनाव का. जमशेदपुर लाेकसभा से पार्टी के टिकट के बारे में जब अटलजी से बात की, ताे उन्हाेंने पूछा कि आपकी पत्नी कितनी पढ़ी-लिखी है?. मैंने कहा कि वह ताे राजनीति शास्त्र में स्नातक (अॉनर्स) हैं. तब उन्होंने कहा- बहुत अच्छा. जब मैं राजनीति के भीष्म पितामाह की तरह विराट व्यक्तित्व वाले अटलजी की तरफ देखता हूं, ताे अनायास ही उनके प्रति श्रद्धा का भाव उमड़ पड़ता है. वह व्यक्ति, जिन्हाेंने राष्ट्र सेवा के लिए अपनी सारी जिंदगी काे समर्पण के जीवांत रूप का प्रकटीकरण किया, भारतीयता एवं राष्ट्रीयता के समग्र चिंतन काे एक व्यावहारिक रूप दिया, वह इस देश का साैभाग्य है. जब तक वे प्रतिपक्ष में रहे, उन्हाेंने राजनीतिक मर्यादाआें एवं सैद्धांतिक मूल्याें का अवलंबन नहीं छाेड़ा. विपक्ष सहित सभी राजनीतिक दलाें काे अटलजी द्वारा स्थापित मर्यादाअाें से सीखना चाहिए.
जब वाजपेयीजी काे देश का नेतृत्व करने का दायित्व मिला, ताे मात्र 13 महीने के कार्यकाल में उन्हाेंने विश्व में संकल्प एवं कुशलता से अपना लाेहा मनवाया. जिस तरीके से लाहाैर बस यात्रा कर पाकिस्तान के साथ मैत्री, सद्भाव एवं साैहार्द का हाथ बढ़ाकर शांति एवं समृद्धि के प्रति अपनी प्रतिबद्धता काे प्रकट किया आैर साथ ही कारगिल में पाकिस्तान की शत्रुता, दुस्साहस के प्रयास काे शाैर्य, पराक्रम एवं वीरता के साथ पराजित किया. यह उस अटल व्यक्तित्व की अनंत गहराइयाें काे प्रकट करता है. यह वह साधु हैं, जाे प्रेम दया, सहानुभूति एवं सहिष्णुता की अाराधना करते हैं, किंतु मातृभूमि पर किसी शत्रु द्वारा नापाक इरादे रखनेवाले का सिर कुचलने में परशुराम की भांति शस्त्र उठाने में भी अटलजी आगे रहे. कारगिल के संदर्भ में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की हरकताें पर दुनिया के सभी देशाें ने फटकार लगायी, वहीं भारत काे सामरिक, राजनायिक एवं कूटनीतिक सफलता मिली, वह अटलजी की राजनीति दूरदृष्टि, कूटनीतिक परिपक्वता एवं कुशलतम नेतृत्व का परिचायक थी.
अटलजी के नेतृत्व में पाेखरण में परमाणु अस्त्राें का परीक्षण कर न केवल अमेरिका काे, बल्कि उसके इशारे पर कूदने वाले हमारे पड़ाेसी राष्ट्र काे यह संदेश भेजा गया कि हम क्षमाशील हैं, विनयशील हैं, किंतु हमारी विनम्रता एवं मानवतावादी दृष्टिकाेण काे हमारी कमजाेरी एवं शक्तिहीनता न समझा जाये. एक-एक भारतवासी का उस दिन सीना चाैड़ा हाे गया, क्या संयाेग था 11 मई एवं 13 मई 1998, जिस दिन गर्व से सिर ऊंचा हाे गया. पाेखरण में विस्फाेट कर विश्व काे यह संदेश भेजा गया कि भारत के सपूत अपने देश की रक्षा स्वयं कर सकते हैं. अटलजी ने दुश्मनाें की नींद हराम कर दी. अटलजी का यह दार्शनिक कथन है कि इतिहास काे ताे बदला जा सकता है, किंतु भूगाेल काे कैसे बदलेंगे, हम पड़ाेसी राष्ट्र हैं, चाहे शत्रुतापूर्वक रहें, चाहे मित्रता से, हम दाेनाें काे साथ ही रहना है. हमने तीन युद्ध लड़े. परिणाम में रक्तपात आैर लाशें ही मिलीं. अत: विवेक इस बात में है कि हम ऐसा काेई कार्य नहीं करें कि पुन: युद्ध की विभीषिका में हम ग्रसित हाें.
अटल बिहारी वाजपेयी ने 1996, 1998 आैर 1999 की लाेकसभा में जाेर देकर कहा था कि तुम मुझे वाेट दाे, मैं तुम्हें झारखंड दूंगा. केंद्र में जैसे ही भाजपा की सरकार आयी, उन्होंने कहा कि हम वनांचल राज्य का मार्ग प्रशस्त करेंगे. यह भी साफ किया कि हमारा झारखंड नाम से काेई विराेध नहीं है. वाजपेयी जी के इस आह्वान से झारखंड के मतदाताआें ने लाेकसभा चुनाव में भाजपा काे आंख मूंदकर समर्थन किया, जिसमें 14 लाेकसभा सीटों में 11 पर भाजपा की जीत हुई.
13वीं लाेकसभा 1999 में अटलजी के नेतृत्व में पुन: उनकी सरकार बनी आैर वर्षाें से विकास, प्रगति के निमित प्रशासनिक दृष्टि से एक अलग झारखंड राज्य की मांग काे स्वीकार कर उस पर मुहर लगा दी. अटलजी ने अपने लंबे संसदीय जीवन में प्रतिपक्ष हाे या सरकार की भूमिका में एक मर्यादापूर्वक की तरह निभायी है. उन्हाेंने राष्ट्रीय हिताें काे राजनीतिक हिताें से हमेशा ऊंचा रखा, चाहे 1962, 1965 आैर 1971 का युद्ध रहा हाे या 1974 में इंदिरा गांधी द्वारा पाेखरण में परमाणु अस्त्राें का प्रथम परीक्षण का अवसर रहा हाे, अटलजी ने हमेशा राजनीतिक मर्यादा का परिचय देते हुए राष्ट्रहित में सरकार के निर्णयाें का समर्थन किया. अटलजी के छह साल के प्रधानमंत्री कार्यकाल में जाे भी उपलब्धियां हैं, वे सभी देश काे गाैरवान्वित, शक्तिसंपन्न एवं विकासपथ के साेपान हैं, ताे आइये हम उनके जीवन से शिक्षा लेकर संकल्प करें, शपथ लें आैर अटलजी के शब्दाें में ही भारत माता के सामने आ रही चुनाैतियाें काे साहस, बल एवं धैर्य के साथ मुकाबला करने का आह्वान करता हूं-
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं मानूंगा
काल के कपाल पर, लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं.
(पूर्व सांसद सह आंदाेलनकारी शैलेंद्र महताे ने जैसा संजीव भारद्वाज काे बताया)