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अच्छे नेता, अच्छे इंसान व अच्छे अभिभावक
सैयद शाहनवाज हुसैन पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अटलजी से मेरी पहली और निजी मुलाकात 1987 में हुई थी. तब से तकरीबन 30 सालों में उनसे जुड़ी मेरी तमाम यादें इस वक्त मेरी आंखों के सामने तैर रही हैं. अटलजी का जाना न सिर्फ देश के लिए, बल्कि मेरी निजी जिंदगी के […]
सैयद शाहनवाज हुसैन
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता
अटलजी से मेरी पहली और निजी मुलाकात 1987 में हुई थी. तब से तकरीबन 30 सालों में उनसे जुड़ी मेरी तमाम यादें इस वक्त मेरी आंखों के सामने तैर रही हैं. अटलजी का जाना न सिर्फ देश के लिए, बल्कि मेरी निजी जिंदगी के लिए भी बहुत बड़ी क्षति है. निकट भविष्य में उनके जैसा महान नेता, उनके जैसा बेहतरीन कवि, लेखक और वक्ता मिलना बेहद मुश्किल है. वह अच्छे नेता, अच्छे इंसान और मेरे लिए सबसे अच्छे अभिभावक थे.
साल 1987 की बात है…पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता आरिफ बेग साहब ने एक मंच पर अटलजी से मेरी मुलाकात करायी थी. उसके बाद जल्द ही अटलजी से आमने-सामने मुलाकात का मौका मिला. उसी मुक्कमल मुलाकात में अटल जी की आत्मीयता मुझे छू गयी. उस मुलाकात के बाद से जो अटलजी से रिश्ता बना, वह गहरा ही होता गया, कभी खत्म नहीं हुआ. उनका जाना मेरे लिए मेरे गुरु, मेरे आदर्श, मेरी ऊर्जा का चले जाना है.
यह 4 दिसंबर 1997 की बात है… सुश्री उमा भारती जी के नेतृत्व में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में भारतीय जनता युवा मोर्चा का एक मुस्लिम सम्मेलन था. उस कार्यक्रम में मुझे अटलजी के सामने भाषण देने का मौका मिला.
बाद में उमा भारती जी ने बताया कि अटलजी हमारे भाषण से काफी खुश थे. उसी के बाद मुझे किशनगंज से लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका मिला. साल 1998 में सिर्फ 6000 वोटों से हार गया, लेकिन 1999 में मेरी जीत हुई. वर्ष 1999 में जब अटलजी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, तो उन्होंने पहले मुझे राज्य मंत्री बनाया और फिर हिंदुस्तान का सबसे कम उम्र का कैबिनेट मंत्री बनाया और पूरा विश्वास किया. साल 2001 में जब मैं मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री था, तो एक दिन सुबह-सुबह उनका फोन आया और कहा कि स्वतंत्र प्रभार के साथ कोयला मंत्री बनाने जा रहे हैं.
मेरे लिए यह किसी अचरज से कम नहीं था. मैं 8 फरवरी, 2001 से एक सितंबर, 2001 तक स्वतंत्र प्रभार के साथ कोयला मंत्री रहा. बतौर कोयला मंत्री अटलजी को मेरा काम अच्छा लगा और उन्होंने एक सितंबर, 2001 को मुझे नागरिक उड्यन मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री बना दिया.
अटल जी के बारे में मैं जितना बयां करूं, कम है. उनकी शख्सियत इतनी बड़ी थी, उनका रुतबा इतना बड़ा था कि विरोधी भी उनके सामने आने के बाद उन्हीं के हो जाते थे. केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद बतौर प्रधानमंत्री अटलजी की पहली इफ्तार पार्टी उन्हीं के आवास पर हुई, लेकिन बाद में उन्होंने मुझसे कहा- रमजान का रोजा आप रखते हैं, तो इफ्तार पार्टी भी आप ही के यहां होगी.
उसके बाद जब तक केंद्र में अटलजी की सरकार रही, इफ्तार की पार्टी मेरे यहां ही हुई और उसमें अटलजी दिल से शिरकत करते रहे. मेरे यहां इफ्तार की एक दावत में ही पत्रकारों के पूछने पर अटलजी ने अयोध्या पर एक बयान दिया था और उस बयान ने इतना तूल पकड़ा कि 13 दिन तक संसद में गतिरोध रहा.
अटलजी के साथ मेरी इतनी यादें जुड़ी हैं कि जितना बयां करुं कम है. एक बार दिल्ली के ही एक मस्जिद में मैं नमाज के लिए गया था. वहां कुछ लोगों के साथ हल्की कहासुनी हुई, लेकिन इसे अखबार में काफी घुमा फिराकर और बढ़ाकर-चढ़ाकर लिखा गया. अटलजी चिंतित हो गये, उन्होंने मुझे फोन किया. अगले दिन शनिवार को उन्होंने संसद में बुलाकर मुझसे मुलाकात की और हालचाल पूछा. इसी दौरान उन्होंने कहा कि – आपको संसद में बोलना है.
इसी के बाद संसद में मेरी मेडेन स्पीच हुई थी, जो अयोध्या मसले पर थी. जब मैं संसद में बोल रहा था, अटलजी अपने कमरे में मेरा भाषण सुन रहे थे. अपनी मेडेन स्पीच पूरी करते ही मेरे पास उनकी एक पर्ची आयी. मैं संसद में उनके कमरे में गया. अटलजी काफी खुश लग रहे थे, उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई और गले से लगा लिया.
इतनी आत्मीयता, इतने स्नेह के बावजूद अटलजी की शख्सियत इतनी बड़ी थी कि उनके सामने जाते ही मैं सब कुछ भूल जाता था. इसलिए मंत्री रहने के बावजूद मैं सबकुछ हाथ पर लिख कर जाता था, ताकि उनसे बात करते वक्त कुछ छूट न जाये.
अटलजी का प्रभाव इतना जबर्दस्त था कि कुछ विवाद तो सिर्फ उनके बयान से खत्म हो जाते थे. मुझे याद आता है कि मदरसे को लेकर एक रिपोर्ट आयी थी. मैं कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ अटलजी से मिलने गया. अटलजी ने इतना कहा कि ‘मदरसे तो इल्म का सर-चश्मा हैं’ और इसी पर सारा विवाद खत्म हो गया.
एक बार यूपी के चुनाव के दौरान मैं क्षेत्र में था. प्राइवेट कोटा से जाने वाले कुछ हाजियों के लिए जहाज का इंतजाम नहीं हो पाया था. मैंने अटजी के सामने हज यात्रा पर जाने वाले हाजियों की मुश्किलें बयां की और अटलजी ने तपाक से कह दिया– जरूरत है, तो मेरे जहाज से हाजियों को भिजवाओ. लेकिन, 14वीं लोकसभा के लिए ही भागलपुर के उपचुनाव में जब मैं मैदान में उतरा, तो फिर उन्होंने शुभकामनाओं की चिट्ठी मेरे लिए लिखी.
भागलपुर के अखबारों में तब वह चिट्ठी प्रकाशित हुई थी और लोगों ने खूब सराहना की थी. अटलजी के आशीर्वाद से और भागलपुर के लोगों के प्यार से मैं भागलपुर से 14वीं लोकसभा का उपचुनाव जीता और फिर 15वीं लोकसभा में भी चुनकर संसद पहुंचा.
उनका हृदय विशाल था, उनकी शख्सियत बहुत बड़ी थी. मैं खुशनसीब महसूस करता हूं कि मुझे अटलजी जैसे अभिभावक मिले. अटलजी की एक कविता मेरे दिल के बेहद करीब है… छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता. एक महान जननायक, कवि, लेखक, वक्ता और भारत रत्न श्री अटलजी को विनम्र श्रद्धांजलि.
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