आजादी मिले 71 वर्ष से ज्यादा हो गये हैं, लेकिन मानसिक रूप से हम अब भी गुलाम हैं. राष्ट्रभाषा को वह गरिमा प्राप्त नहीं हो सकी है, जिसकी वह हकदार है. दूसरे विकसित देशों में हम पाते हैं कि उन्होंने अपनी राष्ट्रभाषा की गरिमा को बनाये रखा है. यह सही है कि उच्च शिक्षा के लिए हमें विदेशी भाषा की सहायता लेनी पड़ती है, पर इसको स्टेटस सिंबल बना लेना बिल्कुल नासमझी है. विदेशी भाषा सीखने में कोई बुराई नहीं, बल्कि वैज्ञानिकों ने इसे दिमाग के लिए अच्छा ही माना है, लेकिन किसी दूसरे देश की भाषा के आगे अपनी राष्ट्रभाषा को हीन दृष्टि से देखना उचित नहीं. अपनी राष्ट्रभाषा को गरिमा प्रदान करना हम सब की जिम्मेदारी है. सिर्फ हिंदी पखवारा मनाने से ठोस हल नहीं निकलेगा.
सीमा साही, बोकारो