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संपादक से उपसभापति तक
आशुतोष चतुर्वेदी हम सब प्रभात खबर के पूर्व प्रधान संपादक हरिवंश को एक पत्रकार के रूप में भलीभांति जानते हैं. उन्होंने पत्रकारिता को नयी दिशा दी और प्रभात खबर को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया. लेकिन, अब वह एक नयी भूमिका में राज्यसभा के उपसभापति के रूप में नजर आयेंगे. उनका लंबा सार्वजनिक जीवन रहा है. […]
आशुतोष चतुर्वेदी
हम सब प्रभात खबर के पूर्व प्रधान संपादक हरिवंश को एक पत्रकार के रूप में भलीभांति जानते हैं. उन्होंने पत्रकारिता को नयी दिशा दी और प्रभात खबर को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया. लेकिन, अब वह एक नयी भूमिका में राज्यसभा के उपसभापति के रूप में नजर आयेंगे. उनका लंबा सार्वजनिक जीवन रहा है. हमेशा जनपक्षीय पत्रकारिता की है. समाज को देखने का एक अलग नजरिया रहा है. यही वजह है कि प्रभात खबर हमेशा दलितों, शोषितों और वंचितों की आवाज बनकर उभरा है.
उन्हें विषयों और मुद्दों की गहरी समझ है. पत्रकार के रूप में उनसे जो अपेक्षाएं थीं, वैसी ही उपसभापति के रूप में भी हैं. हम सब चाहते हैं कि संसद में जनपक्षीय विमर्श को बढ़ावा मिले और वह केवल अभिजात्य वर्ग की मुद्दों की चर्चा का मंच न बने.
मेरा हरिवंश जी से पुराना परिचय है. जब उदयन शर्मा के नेतृत्व में संडे ऑब्जर्वर की शुरुआत हो रही थी, उस दौरान मैंने इंडिया टुडे से संडे ऑब्जर्वर ज्वाइन किया था. उस समय पूरी नयी टीम तैयार हो रही थी और शुरुआत में सूचना यही थी कि हरिवंश जी के पास महत्वपूर्ण दायित्व है.
हरिवंश जी रविवार में भी उदयन जी की टीम के सबसे महत्वपूर्ण कड़ी थे और उनसे संडे ऑब्जर्वर में भी अहम दायित्व संभालने का अनुरोध किया गया था. संडे ऑब्जर्वर के प्रमोटर अंबानी थे और उस दौर के लिहाज से पत्रकारों को काफी अच्छे वेतन की पेशकश की जा रही थी.
लेकिन, हरिवंश जी के दिल में जनपक्षीय पत्रकारिता करने का जुनून था, सो उन्होंने मोटी तनख्वाह के प्रस्ताव को ठुकरा कर प्रभात खबर को रिलॉन्च करने का फैसला किया. उस दौरान प्रभात खबर की स्थिति अच्छी नहीं थी. अगले माह वेतन मिलेगा भी कि नहीं, इसका पता नहीं था. फिर भी उन्होंने जनसरोकार की पत्रकारिता करने का फैसला किया और दिल्ली जाने के बजाय कोलकाता से रांची आ गये. उसके बाद की कहानी हम सब जानते हैं.
हरिवंश जी अब एक नयी चुनौती से रूबरू होंगे और हमें पूरी उम्मीद हैं कि वह उपसभापति के रूप में भी वह अपने कौशल का परिचय देंगे और राज्यसभा को सार्थक चर्चा का मंच बनाने में कामयाब होंगे. हम सब जानते हैं कि संसद लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार स्तंभ है. संविधान निर्माताओं ने ऐसी परिकल्पना की थी कि संसद के माध्यम से कानून बनेंगे और उनके द्वारा जनता की अपेक्षाओं को पूरा किया जायेगा.
सदन सार्थक चर्चा और जनता की समस्याओं के निराकरण का मंच भी है. संसद में गर्मा-गर्मी होना एक सामान्य प्रक्रिया है. विभिन्न विचारधाराओं और राजनीतिक दलों के नेताओं का किसी मुद्दे पर नजरिया अलग हो सकता है. इसकी वजह से थोड़े समय के लिए संसद की कार्यवाही बाधित हो सकती है. यह तो समझ में आता है. लेकिन, पिछले कुछ समय से संसद के दोनों सदनों – खासकर राज्यसभा की कार्यवाही हंगामे के कारण ठप पड़ जाती है और सार्थक बहस नहीं हो पाती है.
यह हम सबके लिए चिंता का विषय है. देश की सबसे बड़ी पंचायत में देश हित से जुड़े मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं हो पाती है. यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है. हम सब हरिवंश जी के कौशल से परिचित हैं और ऐसी उम्मीद करते हैं कि वह सभी पक्षों को संतुष्ट करने में सफल होंगे, ताकि सत्तापक्ष और विपक्ष का गतिरोध टूटे और राज्यसभा में विभिन्न विषयों पर सार्थक बहस हो.
पिछले दो सत्रों में संसद में काफी कम कामकाज हो पाया है. मॉनसून सत्र के पहले हिस्से में राज्यसभा में महज साढ़े आठ घंटे काम हो पाया था. विधेयकों के लंबे समय तक लटके रहने से देश की निर्णय व्यवस्था प्रभावित होती है. कई विधेयक तो कई-कई सत्रों तक संसद में लटके रहते हैं.
अक्सर देखने में आया है कि व्यवधान के बाद जब कार्यवाही शुरू होती है, तो विधेयकों को समयाभाव के कारण बिना चर्चा के जस का तस पारित कर दिया जाता है. यह और चिंताजनक बात है. विधेयक पर चर्चा हो, उन पर कोई आपत्तियां हों, उन्हें दर्ज किया जाये. यह जान लीजिए कि संसद की कार्यवाही हमारे आपके द्वारा जमा किये टैक्स से चलती है. इसको चलाने में जो लंबा-चौड़ा खर्चा आता है, उसकी पूर्ति हमारे आपके टैक्स के भुगतान से की जाती है. कार्यवाही न चलने की स्थिति में यह खर्च पानी में चला जाता है.
राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को उपसभापति के रूप में हरिवंश जी जैसा योग्य साथी मिला है. वेंकैया नायडू राज्यसभा में लगातार कामकाज न होने के कारण अप्रसन्न रहते हैं. कुछ समय पहले तो उन्होंने सांसदों का भोज स्थगित कर अपनी अप्रसन्नता जाहिर की थी. इसके पहले एक अवसर पर वेंकैया नायडू ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा था कि संसद और विधानसभाओं में चंद सदस्यों द्वारा कार्यवाही बाधित करने के कारण जनता की नजरों में विधायिका का सम्मान कम हुआ है. उन्होंने कहा था कि संसद की अच्छी बहस सरकार को हिला सकती है.
सदनों की कार्यवाही सुचारु रूप से चले और विधायी कार्य हों, यह स्वस्थ लोकतंत्र और हम सबके लिए जरूरी है. हमें उम्मीद है कि हरिवंश जी उपसभापति के रूप में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच एक सेतु बनेंगे, ताकि राज्यसभा के अंदर संवैधानिक आभा में देश के विमर्श का नया इतिहास लिखा जा सके.
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