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#Karunanidhi : द्रविड़ योद्धा का सफर थमा

-हिंदी विरोधी प्रदर्शन के साथ शुरू हुआ राजनीतिक कैरियर-पांच बार मुख्यमंत्री, 13 बार विधायक, 61 साल तक सियासतचेन्नई : करुणानिधि के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1938 में तिरूवरुर में हिंदी विरोधी प्रदर्शन के साथ शुरू हुई. तब वह केवल 14 साल के थे. इसके बाद सफलता के सोपान चढ़ते हुए उन्होंने पांच बार राज्य की […]

-हिंदी विरोधी प्रदर्शन के साथ शुरू हुआ राजनीतिक कैरियर
-पांच बार मुख्यमंत्री, 13 बार विधायक, 61 साल तक सियासत
चेन्नई : करुणानिधि के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1938 में तिरूवरुर में हिंदी विरोधी प्रदर्शन के साथ शुरू हुई. तब वह केवल 14 साल के थे. इसके बाद सफलता के सोपान चढ़ते हुए उन्होंने पांच बार राज्य की बागडोर संभाली. ईवी रामसामी ‘पेरियार’ तथा द्रमुक संस्थापक सीएन अन्नादुरई की समानाधिकारवादी विचारधारा से बेहद प्रभावित करुणानिधि द्रविड़ आंदोलन के सबसे भरोसेमंद चेहरा बन गये. इस आंदोलन का मकसद दबे कुचले वर्ग और महिलाओं को समान अधिकार दिलाना था.

साथ ही यह आंदोलन ब्राह्मणवाद पर भी चोट करता था. फरवरी, 1969 में अन्नादुरई के निधन के बाद वीआर नेदुनचेझिएन को मात देकर करुणानिधि पहली बार मुख्यमंत्री बने. उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में एमजी रामचंद्रन ने अहम भूमिका निभायी थी. वर्षों बाद हालांकि दोनों अलग हो गये और एमजीआर ने अलग पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (अन्नाद्रमुक) की स्थापना की. करुणानिधि 1957 से छह दशक तक लगातार विधायक रहे. इस सफर की शुरुआत कुलीतलाई विधानसभा सीट पर जीत के साथ शुरू हुई तथा 2016 में तिरुवरूर सीट से जीतने तक जारी रही.

फिल्म राजकुमारी से मिली लोकप्रियता
करुणानिधि ने अपनी पहली फिल्म राजकुमारी से लोकप्रियता हासिल की. उनके द्वारा लिखी गयी पटकथाओं में राजकुमारी, अबिमन्यु, मंदिरी कुमारी, मरुद नाट्टू इलावरसी, मनामगन, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार, नाम, मनोहरा आदि शामिल हैं.

शोक में डूबे कलईनार के प्रशंसक
करुणानिधि की मौत की खबर के बाद पूरे तमिलनाडु में शोक की लहर दौड़ गयी. उनके प्रशंसकों का रो-रो कर बुरा हाल है. हाथों में करुणानिधि की फोटो लिये हजारों प्रशंसक चेन्नई के कावेरी अस्पताल के बाहर पिछले 11 दिनों से जुटे हैं. करुणानिधि को जब अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तभी से डीएमके कार्यकर्ता अपने प्रिय नेता के लिए दुआ मांग रहे थे. उन्हें उम्मीद थी कि कलाईनार मौत को मात देकर एक बार फिर उनके बीच होंगे, लेकिन वे अब इस दुनिया में नहीं रहें.

सफरनामा

1938 14 साल की उम्र में जस्टिस पार्टी ज्वाइन की. हिंदी विरोधी प्रदर्शन में हिस्सा लिया.

1957 कुलीतलाई विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने.

1962 विस में विपक्ष के उपनेता बने.

1967 पहली बार मंत्री बने.

1969 द्रमुक के अध्यक्ष बने और अंतिम सांस लेने तक इस पद रहे.

1969 तमिलनाडु के सीएम बने. इसके बाद वह 1971, 1989, 1996 तथा 2006 में सीएम बने.

2017 अक्तूबर में आखिरी बार सार्वजनिक तौर पर नजर आये थे.

राष्ट्रीय राजनीति में कई बार बने गेम चेंजर

वीपी सिंह को पीएम बनाने में अहम रोल
1989 के लोकसभा चुनाव में द्रमुक को एक भी सीट नहीं मिली थी, लेकिन करुणानिधि ने वीपी सिंह को पीएम बनाने में चौधरी देवीलाल के साथ मिलकर भूमिका निभायी थी. संसदीय दल की बैठक में देवीलाल को नेता चुना गया था, लेकिन देवीलाल ने पीएम पद को अस्वीकार करके वीपी सिंह को नेता बनाने का प्रस्ताव पेश कर दिया था, जिसका करुणानिधि ने समर्थन किया था.

एचडी देवेगौड़ा को भी बनाया प्रधानमंत्री
1996 के लोकसभा चुनाव में डीएमके को 17 और उसकी सहयोगी तमिल मनीला कांग्रेस को 20 सीटें मिलीं. एम करुणानिधि चाहते थे कि वीपी सिंह फिर प्रधानमंत्री बनें, लेकिन वीपी सिंह दिल्ली की रिंग रोड पर चक्कर काटते रहें. वीपी सिंह फिर प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते थे. अंतत: एम करुणानिधि के सुझाव पर एचडी देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया गया.

गुजराल की सरकार में भी अगुवा था द्रमुक
1996 के चुनाव के बाद जनता दल, सपा, डीएमके, टीडीपी, एजीपी, आईएनसी सहित अन्य पार्टियों यूनाईटेड फ्रंट बनाया. कांग्रेस के समर्थन से गुजराल को अप्रैल 1997 को प्रधानमंत्री बनाया गया. इस बीच, मिलाप चंद जैन आयोग की अंतरिम रिपोर्ट में डीएमके पर तमिल संगठन एलटीटीई की मदद करने का संकेत मिला. इसके बाद कांग्रेस ने सर्मथन वापस ले लिया.

अटल सरकार के साथ भी रहे व विरोध भी किया
1998 में अन्नाद्रमुक के समर्थन वापस लेने से अटल बिहारी वाजेपयी की सरकार गिर गयी. फिर 1999 के लोस में डीएमके एनडीए का हिस्सा बनी. 2004 के लोस चुनाव से पहले डीएमके ने एनडीए को छोड़ दिया. 09 प्रधानमंत्रियों के साथ करुणानिधि ने काम किया है और दो प्रधानमंत्री उनकी पार्टी के सहयोग से बने. यूपीए और एनडीए की सरकार में द्रमुक के कई मंत्री रहे.

जेल भी गये

1938 में करुणानिधि ने कालाकुडी रेलवे स्टेशन का नाम एक कारोबारी के नाम पर डिलमियापुरम करने का विरोध किया. इस प्रदर्शन के दौरान उन पर 35 रुपये का जुर्माना लगा और पांच माह की जेल हुई.

1972 में एमजीआर ने करुणानिधि पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया. एमजीआर को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. एमजीआर ने अन्नाद्रमुक पार्टी बनायी.

सरकारिया कमीशन द्वारा वीरानम प्रोजेक्ट के लिए निविदाएं आवंटित करने में भ्रष्टाचार का आरोप लगा. इस मामले में 2001 में उन्हें गिरफ्तार किया गया था. सबूत नहीं मिलने पर मामला खत्म हो गया.

दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार: करुणानिधि का परिवार संभवत: मुलायम सिंह कुनबे के बाद देश का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार माना जाता है. करुणानिधि ने तीन शादियां कीं. पहली शादी पद्मावती से की, जिनसे जन्मे बेटे मुथु ने फिल्मों में काम किया, लेकिन अब मां-बेटे दुनिया में नहीं हैं. करुणानिधि की दूसरी पत्नी दयालु अम्माल हैं. उनके तीन बेटे- अलागिरी, एमके स्टालिन और तमिझरासु हैं. अलागिरी और स्टालिन राजनीति में हैं. दोनों में करुणानिधि के सियासी उत्तराधिकार की जंग चली और अलागिरी हाशिये पर चले गये. सबसे छोटे बेटे तमिझरासु फिल्म ड्रिस्ट्रब्यूशन और रियल एस्टेट के बिजनेस में हैं. दयालु अम्माल से करुणानिधि की एक बेटी भी हैं- सेल्वी. सेल्वी बेंगलुरु में रहती हैं और उनके पति सेल्वम तमाम बिजनेस चलाते हैं. करुणानिधि ने रजतीअम्माल से तीसरी शादी की, जिनसे उन्हें एक बेटी कनिमोझी हैं. कनिमोझी भी राजनीति में हैं और फिलहाल राज्यसभा सांसद हैं.

जताया शोक

एम करुणानिधि के निधन के बारे में सुनकर दुख हुआ. कलईनार के नाम से लोकप्रिय वह एक सुदृढ़ विरासत छोड़ कर जा रहे हैं, जिसकी बराबरी सार्वजनिक जीवन में कम मिलती है. उनके परिवार और लाखों चाहने वालों के प्रति मैं अपनी शोक संवेदना व्यक्त करता हूं.
रामनाथ कोविंद,राष्ट्रपति

हमने जमीन से जुड़े एक ऐसे जननेता, राजनीतिक विचारक, अनुभवी लेखक और राजनेता को खोया है, जिनका जीवन गरीबों और वंचित लोगों के कल्याण को समर्पित है.
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

करुणानिधि ने क्षेत्रीय पार्टियों को रास्ता दिखाया. यह उनको प्यार करने वाले लोगों के लिए दुखद समय है. वह एक परिपक्व नेता थे. भगवान उनकी आत्मा को शांति दें.
एचडी देवगौड़ा, पूर्व पीएम

कलईनार तमिल राजनीति के मंच पर सवार एक महान हस्ती थे. भारत ने आज अपना महान सपूत खो दिया. मेरी संवेदना परिवार और उनके लाखों समर्थकों के साथ है. भारत ने अपने नेता को हमेशा के लिए खो दिया.
राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष

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