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पटना : अल्पावास गृह का दो जुलाई को कॉन्ट्रैक्ट खत्म, चार अगस्त को प्राथमिकी

प्राथमिकी दर्ज होने के तीन दिन बाद भी पुलिस को नहीं है संचालक के संबंध में जानकारी पटना : पाटलिपुत्र इलाके के 224 डी स्थित अलका आवास में चल रहे अल्पावास गृह का कॉन्ट्रैक्ट 25 मई को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टिस) की रिपोर्ट आने के बाद दो जुलाई को खत्म किया कर दिया […]

प्राथमिकी दर्ज होने के तीन दिन बाद भी पुलिस को नहीं है संचालक के संबंध में जानकारी
पटना : पाटलिपुत्र इलाके के 224 डी स्थित अलका आवास में चल रहे अल्पावास गृह का कॉन्ट्रैक्ट 25 मई को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टिस) की रिपोर्ट आने के बाद दो जुलाई को खत्म किया कर दिया गया था.
इसी बीच 20 जुलाई को अल्पावास का संचालक कमरा खाली कर सामान के साथ फरार हो गया. संचालक के भागने के बाद संबंधित विभाग के पदाधिकारियों की नींद खुली और चार अगस्त को प्राथमिकी दर्ज हुई. टिस की रिपोर्ट में उक्त अल्पावास में महिलाओं से दुर्व्यवहार व अन्य इंतजाम ठीक नहीं होने की जानकारी दी गयी थी.
पुलिस सत्यापन करने में ही लगी है संचालक के नाम : पाटलिपुत्र थाने में प्राथमिकी दर्ज हुए तीन दिन हो गये. लेकिन, पुलिस अभी तक संचालक के नाम व पता की ठीक से जानकारी नहीं ले पायी है. केवल संस्था के संचालक के कार्यालय की जानकारी मिली है, जिसका पता सारण जिले के सरैया थाने के संग्रामपुर का है.
संस्था के समन्वयक का पता छपरा टाउन थाने के प्रभुनाथ नगर का दिया गया है. संस्था जिस मकान में संचालित हो रहा था उसके मकान मालिक से नरेंद्र सिंह का नाम मिला है, लेकिन वह संस्था का मालिक है या नहीं यह सत्यापित नहीं हो पाया है.
छपरा के नरेंद्र ने कराया था एग्रीमेंट
संस्था ने अपने कार्यालय को रातों रात खाली कर दिया. मकान मालिक अल्का कुमारी को भी इसकी जानकारी नहीं दी गयी. किरायेदार चंद्रसेन से हैदराबाद में रहनेवाली मकान मालिक अल्का कुमारी को जानकारी हुई कि संस्था ने अचानक ही घर को खाली कर दिया है और सभी सामान भी साथ में ले गये हैं.
इसके बाद 29 जुलाई को अल्का हैदराबाद से पटना आयीं. उन्होंने बताया कि इकार्ड संस्था के सचिव नरेंद्र सिंह ने एग्रीमेंट कराया था और 2015 जुलाई से उनके घर में अल्पावास चल रहा था. 20 जुलाई को ही उनका घर खाली कर संस्था से जुड़े लोग चले गये. इस दौरान किसी ने उन्हें मकान खाली करने की जानकारी नहीं दी.
क्या है मामला
पाटलिपुत्र इलाके के अल्पावास गृह इकार्ड के खिलाफ जिला परियोजना प्रबंधक भारती प्रियंवदा ने चार अगस्त को प्राथमिकी दर्ज करायी थी. प्राथमिकी में एनजीओ कर्मियों पर वहां रहनेवाली महिलाओं के साथ गाली-गलौज, दुर्व्यवहार व मारपीट करने का आरोप लगाया गया है. इसके साथ ही टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टिस) की रिपोर्ट का भी जिक्र किया गया है.
पांच कमरों में रहती थीं 30 से 35 महिलाएं
महिला अल्पावास में पांच कमरे और एक छोटा सा ड्राइंग हॉल था, जिसमें कार्यालय के साथ ही महिलाओं के रहने के लिए बेड थे. एक कमरे में छह से सात बेड थे और उसमें सात से आठ महिलाएं एक साथ रहती थीं. एक शौचालय और एक बाथरूम था.
– डब्ल्यूडीसी की वेबसाइट पर अपडेट नहीं हैं आरटीओ के नाम व नंबर : सरकारी वेबसाइट की सूची में पाटलिपुत्र स्थित अल्पावास का जिक्र किया गया है. लेकिन, उसके सामने आरटीओ का नाम व मोबाइल नंबर अंकित नहीं है. इसी प्रकार सीवान, सुपौल व किशनगंज के अल्पावास के सामने भी आरटीओ का नाम व मोबाइल नंबर अंकित नहीं है.
मई में लगा था सीसीटीवी कैमरा
अल्पावास में गेट पर सीसीटीवी कैमरा भी नहीं लगा हुआ था, जबकि गेट के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगाना
अनिवार्य है. मकान मालिक अल्का व किरायेदार चित्रसेन ने बताया कि काफी प्रयास के बाद मई माह में वहां कैमरा लगाया गया था.
किरायेदार ने की मारपीट की पुष्टि
अल्पावास में हंगामा हमेशा होते रहता था. इस बात की पुष्टि खुद मकान मालिक अल्का कुमारी व किरायेदार चित्रसेन ने भी की. अल्का कुमारी ने बताया कि उन्हें मार्च में ही जानकारी मिली थी कि अल्पावास में देर रात हंगामा व मारपीट की आवाज आती रहती है.
इसकी सूचना के बाद अप्रैल में नोटिस देकर मकान खाली करने को कहा गया था. हालांकि उन लोगों ने घर खाली नहीं किया था. अल्का ने बताया कि अल्पावास में रानी कुमारी 24 घंटे रहती थी. उसके अलावा प्रिया, अर्चना व सुषमा महिलाओं की देखभाल के लिए रहती थी.
उठ रहे सवाल
– जब संस्था द्वारा महिलाओं से अमर्यादित व्यवहार किया जाता था, तो टिस की रिपोर्ट मई में आने के बाद ही तत्काल कार्रवाई क्यों नहीं की गयी?
– जब संस्था के कार्यकलाप को देखने के लिए विभागीय पदाधिकारी की तैनाती थी, तो महिलाओं के साथ मारपीट की घटना की जानकारी अधिकारियों तक क्यों नहीं पहुंचायी गयी?
– अगर वहां महिलाओं को रखने की समुचित व्यवस्था नहीं थी, तो इस बात की जानकारी भी क्यों नहीं उच्च अधिकारियों तक पहुंचायी गयी और कॉन्ट्रैक्ट को खत्म करने की अनुशंसा क्यों नहीं की गयी?
– दो जुलाई को कॉन्ट्रैक्ट
खत्म करने के बाद भी चार अगस्त को प्राथमिकी क्यों दर्ज करायी गयी?
– टिस की रिपोर्ट आने के पहले पाटलिपुत्र अल्पावास में सब कुछ सामान्य कैसे था?
आईजीआईएमएस
मरीज को देखने पहुंचे मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मंगलवार को आईजीआईएमएस में भर्ती सुरेश सिंह को देखने पहुंचे और काफी देर तक रुके और मरीज के बारे में डॉक्टर व परिजनों से बातचीत की.
आईजीआईएमएस के चिकित्सा अधिकारी डॉ मनीष मंडल ने बताया कि मुंगेर के रहनेवाले सुरेश सिंह को बायें पैर लकवा की शिकायत हो गयी थी. निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था. रविवार को उनको वेंटिलेटर पर आईजीआईएमएस लाया गया था. अभी इमरजेंसी आइसीयू में हैं.

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