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न बदले एमएसएमई की परिभाषा

डॉ अश्विनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू ashwanimahajan@rediffmail.com संसद के माॅनसून सत्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्री द्वारा एक विधेयक पेश किया गया है, जिसके अनुसार सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम दर्जे के उद्यमों की परिभाषा को बदलकर वर्तमान में प्लांट एवं मशीनरी आधार की बजाय टर्न ओवर आधार पर किया जा रहा है. […]

डॉ अश्विनी महाजन
एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू
ashwanimahajan@rediffmail.com
संसद के माॅनसून सत्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्री द्वारा एक विधेयक पेश किया गया है, जिसके अनुसार सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम दर्जे के उद्यमों की परिभाषा को बदलकर वर्तमान में प्लांट एवं मशीनरी आधार की बजाय टर्न ओवर आधार पर किया जा रहा है.
वर्तमान परिभाषा के अनुसार, सूक्ष्म उद्यम वे हैं, जिनमें प्लांट एंड मशीनरी की कुल लागत 25 लाख रुपये या उससे कम है, लघु उद्यमों के लिए यह परिभाषा पांच करोड़ और मध्यम दर्जे के उद्यमों के लिए यह परिभाषा 10 करोड़ रुपये की है. नयी परिभाषा में माइक्रो उद्यम वे होंगे, जिनकी टर्न ओवर पांच करोड़ या उससे कम हैं, लघु उद्यमों के लिए यह सीमा 75 करोड़ है और मध्यम उद्यमों के लिए यह सीमा 250 करोड़ है.
वर्तमान में देश में एमएसएमई के अंतर्गत आनेवाले 98 प्रतिशत ऐसे उद्यम हैं, जिनकी टर्न ओवर 15 करोड़ रुपये से भी कम है. यानी जिस प्रकार से एमएसएमई की परिभाषा में टर्न ओवर को क्रमशः 75 करोड़ और 250 करोड़ रुपये किया जा रहा है, तो यह सारी कवायद उन दो प्रतिशत अपेक्षाकृत बड़े उद्यमों के लिए की जा रही है, ताकि वे एमएसएमई की परिभाषा में आ सके.
इससे पहले भी कई बार लघु उद्यमों की परिभाषा को बदलने के प्रयास होते रहे हैं. साल 1999 में एनडीए की सरकार बनने से पहले इंद्र कुमार गुजराल के प्रधानमंत्री काल में लघु उद्योगों की परिभाषा में बड़ा बदलाव किया गया था.
अटल सरकार के अंतर्गत लघु उद्योगों के लिए एक अलग मंत्रालय भी बनाया गया था, ताकि लघु उद्योगों की समस्याओं का निराकरण किया जा सके और उनके विकास के लिए ठीक नीतियां बन सकें. बाद में चुपके से लघु उद्योगों की बजाय लघु उद्यम शब्द का उपयोग किया जाने लगा. इसका मतलब था कि इस परिभाषा में केवल लघु उद्योग नहीं आयेंगे, बल्कि उसके साथ सेवा उद्यम भी आ जायेंगे. लघु उद्यम की परिभाषा में लघु उद्योगों के साथ-साथ व्यापारी यानी ट्रेडर और अन्य सेवा उपक्रम भी शामिल किये जाने लगे. उसके बाद तो ‘लघु उद्योग मंत्रालय’ की जगह ‘सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय’ बन गया. इसका भारी नुकसान लघु उद्योगों पर पड़ा.
सरकार द्वारा लघु उद्यमों के विकास हेतु सरकारी खरीद में प्राथमिकता, वित्त, मार्केटिंग एवं तकनीकी सहयोग समेत कई प्रकार की सुविधाएं दी जाती रही हैं. परंतु, अब सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों को इन सुविधाओं के लिए मध्यम दर्जे के उद्यमों के साथ भी संघर्ष करना पड़ता है.
कुछ समय पूर्व भारत सरकार द्वारा एमएसएमई के लिए राष्ट्रीय नीति संबंधी सुझावों के लिए पूर्व कैबिनेट सैक्रेटरी प्रभात कुमार की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था. इस कमेटी ने भी एमएसएमइ की परिभाषा को प्लांट एवं मशीनरी की लागत के आधार पर ही रखने की सिफारिश की थी, हालांकि अफसरों ने इसे बदलकर टर्न ओवर पर रखने का सुझाव दिया था, जिसको इस कमेटी ने खारिज कर दिया था.
इसके बावजूद इस परिभाषा को बदलने का निर्णय हितधारकों, खासतौर पर लघु उद्यमियों के सुझावों के ही विपरीत नहीं है, बल्कि यह एमएसएमई के लिए राष्ट्रीय नीति के लिए सुझाव देने हेतु बनी समिति की सिफारिशों के भी खिलाफ है. एमएसएमई की परिभाषा में यह बदलाव लघु उद्योगों के लिए अहितकारी है.
दुनिया में कहीं भी लघु उद्यमों की परिभाषा में मात्र टर्न ओवर आधार नहीं रहा है. भारत में ऐसी परिभाषा लाने से आशंका है कि लघु उद्यमी उद्योगों की बजाय अब ट्रेडिंग और असेंबलिंग के माध्यम से भी लघु उद्यमों के लिए उपलब्ध सरकारी रियायतों का पूरा लाभ उठा लेंगे. इसके कारण वास्तविक रूप से उद्योग चलानेवाले लोग ट्रेडर्स यानी व्यापारी बनने की ओर अग्रसर होंगे.
रोजगार निर्माण के लिए लघु उद्योगों का विकास जरूरी है. इसलिए इसकी आशंका है कि परिभाषा में यह बदलाव मेक इन इंडिया एवं रोजगार निर्माण के विरुद्ध काम करेगा. आज लघु उद्योग विरोधी आर्थिक नीतियों के कारण भारत के लघु उद्योग धीरे-धीरे विलुप्त हो गये हैं और देश के बाजारों में विदेशी सामान छाने लगे हैं. नयी परिभाषा के आधार पर अब बड़े उद्यम भी लघु उद्यम के नाते परिभाषित हो जायेंगे, जिसका खामियाजा देश के उस युवा को भुगतना पड़ेगा, जो लघु उद्योगों में रोजगार पा सकता है. खेद है कि उद्योग संघों के विरोध के बावजूद इस परिभाषा को बदलने हेतु संसद में विधेयक लाया जा रहा है.
साल 1991 से लागू नयी आर्थिक नीति के प्रभाव में सबसे पहले लघु उद्योगों के लिए उत्पाद आधारित आरक्षण समाप्त कर दिया गया. इसके साथ ही समय-समय पर लघु उद्योगों के लाभ के लिए सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की सुविधाओं की नीति को तिलांजली दी जाने लगी.
हमें समझना होगा कि भारत में लघु उद्योग जीडीपी ग्रोथ, रोजगार, निर्यात और विकेंद्रीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं. भूमंडलीकरण और खुले आयातों की नीति के कारण आ रही चीनी माल की बाढ़ के चलते असमान प्रतिस्पर्धा, कानूनों के जंजाल के कारण तमाम असुविधाओं और सरकारी सुविधाओं के धीरे-धीरे समाप्त होने के बावजूद लघु उद्यम किसी तरह अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
रोजगार को बचाने और ‘मेक इन इंडिया’ के सपने को पूरा करने के लिए जरूरी है कि मध्यम दर्जे के उद्यमों को बाहर रखते हुए वास्तविक रूप से छोटे उद्योगों को संरक्षण प्रदान किया जाये. इसलिए एमएसएमई की परिभाषा में प्रस्तावित बदलाव न हो तो अच्छा है.

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