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ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाला विधेयक संसद से पास

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से संबंधित संविधान (123वां संशोधन) विधेयक-2017 को सोमवार को संसद की मंजूरी मिल गयी. राज्यसभा ने इस विधेयक को 156 के मुकाबले शून्य मतों से पारित कर दिया. लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है. संविधान संशोधन होने के नाते विधेयक पर मत […]

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से संबंधित संविधान (123वां संशोधन) विधेयक-2017 को सोमवार को संसद की मंजूरी मिल गयी. राज्यसभा ने इस विधेयक को 156 के मुकाबले शून्य मतों से पारित कर दिया. लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है. संविधान संशोधन होने के नाते विधेयक पर मत विभाजन किया गया, जिसमें सभी 156 सदस्यों ने इसके पक्ष में मतदान किया.
विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि इस विधेयक के पारित होने के बाद राज्यों के अधिकारों के हनन होने के संबंध में कुछ सदस्यों ने जो आशंका व्यक्त की है, वह निर्मूल है.
उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की केंद्रीय और राज्य सूची एक समान होती है, लेकिन ओबीसी के मामले में यह अलग-अलग है. राज्य अपने लिए ओबीसी जातियों का निर्णय करने के बारे में स्वतंत्र हैं. इस विधेयक के कानून बनने के बाद यदि राज्य किसी जाति को ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल करना चाहते हैं, तो वे सीधे केंद्र या आयोग को भेज सकते हैं. मैं आश्वस्त करता हूं कि आयोग की सिफारिशें राज्य के लिए बाध्यकारी नहीं होंगी.
गहलोत ने कहा कि क्रीमी लेयर वाला प्रावधान वर्तमान सरकार ने नहीं, बल्कि पूर्ववर्ती सरकार ने बनाया था. सरकार ने उप वर्गीकरण के संबंध में एक आयोग बनाया है. उस आयोग की रिपोर्ट आने पर सरकार सकारात्मक कदम उठायेगी.
राज्य अपने लिए ओबीसी जातियों का निर्णय करने में होंगे स्वतंत्र : सरकार
ओबीसी मामलों की जांच और निगरानी का होगा अधिकार
आयोग में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन सदस्य होंगे. अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा शर्तें एवं पदावधि वही होगी, जो राष्ट्रपति तय करेंगे. आयोग को अपनी स्वयं की प्रक्रिया विनियमित करने की शक्ति होगी.
आयोग को संविधान के अधीन सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के मामलों की जांच और निगरानी करने का अधिकार भी होगा. इन सबके अलावा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग पिछड़े वर्गों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में भाग लेगा. साथ ही उन्हें सलाह भी देगा.
महिला सदस्य बनाने के लिए बनेंगे नियम
गहलोत ने कहा कि ओबीसी आयोग में महिला को सदस्य बनाये जाने का प्रावधान इस विधेयक के नियमों में शामिल किया जायेगा. सरकार ने मौजूदा विधेयक में उसी प्रक्रिया और प्रावधानों को अपनाया है, जो अनुसूचित जाति आयोग तथा अनुसूचित जनजाति आयोग के लिए अपनायी गयी हैं.
आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से समुदाय के लोगों की विभिन्न जरूरतें पूरी होंगी और कई ऐसी समस्याओं का भी समाधान हो पायेगा, जिनका हल अभी तक नहीं हो सका है. इससे पहले, कांग्रेस, सपा, राजद, टीएमसी समेत अन्य दलों के सदस्यों ने चर्चा में हिस्सा लिया.
एससी-एसटी अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक लोकसभा से पास
लोकसभा ने सोमवार को अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक-2018 को मंजूरी दे दी. सरकार ने जोर दिया कि भाजपा नीत सरकार हमेशा आरक्षण की पक्षधर रही है और कार्य योजना बनाकर दलितों के सशक्तीकरण के लिए काम कर रही है.
लोकसभा में करीब छह घंटे तक चली चर्चा के बाद सदन ने कुछ सदस्यों के संशोधनों को नकारते हुए ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी दे दी. इससे पहले, विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए समाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा कि हमने अनेक अवसरों पर स्पष्ट किया है, फिर स्पष्ट करना चाहते हैं कि हम आरक्षण के पक्षधर थे, पक्षधर हैं और आगे भी रहेंगे. चाहे हम राज्यों में सरकार में रहे हो, या केंद्र में अवसर मिला हो, हमने यह सुनिश्वित किया है. गहलोत ने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट से सरकार के पक्ष में फैसला आने के बाद कार्मिक मंत्रालय ने इस संबंध में कार्रवाई भी शुरू कर दी है. इस संबंध में राज्यों को परामर्श जारी किया गया है.
विधेयक के मुताबिक, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 41 से यह परिणाम निकलता है कि एक बार जब जांच अधिकारी के पास यह संदेह करने का कारण है कि कोई अपराध किया गया है, तो वह अभियुक्त को गिरफ्तार कर सकता है. उससे गिरफ्तार करने या गिरफ्तार न करने का यह निश्चय नहीं छीना जा सकता है.

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