नयी दिल्ली : सोमवार को सत्तापक्ष और विपक्ष की चर्चा के बाद अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक 2018 लोकसभा में पारित कर दिया है. सोमवार को लोकसभा में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक 2018 पर चर्चा के दौरान सरकार ने कहा कि यह विधेयक समाज के इस वर्ग को न्याय में हो रही देरी के निवारण के उद्देश्य से लाया गया है.
The Schedule Caste & The Schedule Tribes (Prevention of Atrocities) Amendment Bill, 2018 has been passed by Lok Sabha. pic.twitter.com/EBKNn3Z9U1
— ANI (@ANI) August 6, 2018
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विधेयक को चर्चा एवं पारित होने के लिए रखते हुए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा कि सरकार ने 1989 के मूल कानून में 25 और अपराधों को जोड़कर इसे मजबूत बनाया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बीते 20 मार्च को अपने फैसले में धारा 18 के संबंध में अंकुश लगाने वाले कुछ निर्णय लिये. उन्होंने कहा कि इससे कानून का कोई महत्व नहीं रह गया था. इसे महसूस करते हुए सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की, जो अभी विचाराधीन है.
गहलोत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका पर फैसले में विलंब को देखते हुए सरकार ने सोचा कि न्याय में देरी हो रही है और इसलिए कुछ दिन पहले कैबिनेट में विधेयक को मंजूरी दी गयी. गहलोत ने कहा कि ऐसे विषयों पर झूठे मामले दर्ज होने की भी बात सामने आयी. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार 10-12 फीसदी मामले झूठे होते हैं. यानी 88 फीसदी मामलों में न्याय मिलता है. इसलिए यह प्रावधान जरूरी है.
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि कई निर्णयों में दंड विधि शास्त्र के सिद्धांतों और दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 41 से यह परिणाम निकलता है कि एक बार जब जांच अधिकारी के पास यह संदेह करने का कारण है कि कोई अपराध किया गया है, तो वह अभियुक्त को गिरफ्तार कर सकता है. जांच अधिकारी से गिरफ्तार करने या गिरफ्तार न करने का यह विनिश्चय नहीं छीना जा सकता है. इस लिहाज से लोकहित में यह उपयुक्त है कि यथास्थिति किसी अपराध के किये जाने के संबंध में प्रथम इत्तिला रिपोर्ट के पंजीकरण या किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी की बाबत किसी प्रारंभिक जांच या किसी प्राधिकारी के अनुमोदन के बिना दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के उपबंध लागू किये जाएं.
हाल ही में एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्धारित किया था कि किसी अपराध के संबंध में प्रथम इत्तिला रिपोर्ट रजिस्टर करने में पहले पुलिस उप अधीक्षक द्वारा यह पता लगाया जाए कि क्या कोई मामला बनता है, तब एक प्रारंभिक रिपोर्ट दर्ज की जायेगी. ऐसे अपराध के संबंध में किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले किसी समुचित प्राधिकारी का अनुमोदन प्राप्त किया जायेगा.