कांग्रेस 2009 के प्रदर्शन पर चाहती है सीटों का बंटवारा
सपा बसपा गठबंधन में 10 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी कांग्रेस को
हरीश तिवारी@लखनऊ
लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के बीच बनने वाले महागठबंधन में कांग्रेस के कारण पेंच फंसा हुआ है. हालांकि नेताओं का दावा है कि जल्द ही यह मामला सुलझा लिया जायेगा और महागठबंधन की घोषणा जल्द हो जायेगी. ऐसा माना जा रहा है कि अगर कांग्रेस को गठबंधन में सम्मानजनक सीटें नहीं मिलती है तो वह अकेले ही चुनाव लड़ सकती है.
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए चुनावी तैयारियां शुरू हो गयी हैं. भाजपा ने संभावित गठबंधन को देखते हुए प्रदेश में पहले से ही चुनावी अभियान शुरू कर दिया है. जहां संगठन की तरफ से बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत किया जा रहा है. वहीं प्रधानमंत्री प्रदेश के लगातार दौरे पर हैं. भाजपा के खिलाफ सपा और बसपा महागठबंधन बनाने की बात कह रहे हैं. लेकिन अभी तक यह गठबंधन बन नहीं पाया. ऐसा माना जा रहा है कि इसमें सभी भाजपा विरोधी पार्टियों को शामिल किया जायेगा. लिहाजा अभी तक ना तो महागठबंधन की घोषणा हो पायी है और न ही सीटों के बंटवारे के बारे में कोई फैसला हुआ है. फिलहाल राज्य से दो सांसदों वाली कांग्रेस पार्टी इस गठबंधन में 20 सीटें चाहती हैं.
कांग्रेस का कहना है कि 2009 में उसकी राज्य में 19 सीटें थी. लिहाजा उसी आधार पर उसे सीटें मिलनी चाहिए. लेकिन सपा और बसपा के नेता कांग्रेस को दस सीटों से ज्यादा देने के पक्ष में नहीं हैं. उनका कहना है कि सीटों का बंटवारा 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मिले वोटों और सीटों के आधार पर किया जायेगा. लिहाजा कांग्रेस को दस से ज्यादा सीटें नहीं दी जा सकती हैं. 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 7.5 फीसदी वोट मिले थे जबकि सपा को 22 फीसदी और बसपा को 20 फीसदी वोट मिला था.
लोकसभा की 80 सीटों में अगर बसपा 40 सीटों पर दावा करती है और सपा 30 पर, तो कांग्रेस को 10 से भी ज्यादा सीटें नहीं मिलेगी. क्योंकि रालोद भी इस गठबंधन में शामिल होगा. इसके साथ ही कुछ छोटे दल मसलन पीस पार्टी, निषाद पार्टी समेत कई दल इस महागठबंधन में आना चाहते हैं. जो इसके लिए फायदेमंद होगा. लिहाजा अभी तक कांग्रेस के कारण इसमें पेंच फंसा हुआ है.
हालांकि कांग्रेस, सपा और बसपा के मैंनेजरों के बीच बातचीत का सिलसिला चल रहा है. कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी तो सपा की तरफ से अखिलेश और बसपा की तरफ से मायावती इस बारे में फैसला करेंगी. कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक अगर पार्टी को सम्मानजनक सीटें नहीं मिली तो वह अकेले चुनाव लड़ सकती है. क्योंकि कांग्रेस में टिकट चाहने वालों की लंबी कतार है. लिहाजा नेताओं की मांग को देखते हुए कांग्रेस अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला कर सकती है.