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झारखंड : दूसरे राज्यों को रोशन करनेवाला खुद अंधेरे में, पावर प्लांटों को नहीं मिल रहा कोयला, बिजली संकट गहरायी
सुनील चौधरी रांची : झारखंड के पावर प्लांट इन दिनों कोयले की भारी कमी से जूझ रहे हैं. जबकि दिल्ली और पंजाब के पावर प्लांट को कोयले की कोई कमी नहीं है. देश के 40 प्रतिशत कोयले के भंडारवाले झारखंड के ही पावर प्लांट कोयला संकट झेल रहे हैं. इस कारण या तो प्लांट बंद […]
सुनील चौधरी
रांची : झारखंड के पावर प्लांट इन दिनों कोयले की भारी कमी से जूझ रहे हैं. जबकि दिल्ली और पंजाब के पावर प्लांट को कोयले की कोई कमी नहीं है. देश के 40 प्रतिशत कोयले के भंडारवाले झारखंड के ही पावर प्लांट कोयला संकट झेल रहे हैं. इस कारण या तो प्लांट बंद हैं या पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पा रहा है.
झारखंड सरकार की कंपनी टीवीएनएल की तेनुघाट थर्मल पावर प्लांट से उत्पादन बंद है. एक यूनिट 15 अप्रैल से ही बंद है. दूसरी यूनिट भी 31 जुलाई से बंद हो गयी. दूसरी ओर डीवीसी के बोकारो थर्मल पावर स्टेशन की एक यूनिट बंद है.
दूसरी यूनिट क्षमता से कम उत्पादन कर रही है. डीवीसी के ही एक हजार मेगावाट क्षमतावाले कोडरमा थर्मल पावर स्टेशन प्रबंधन ने हाथ खड़े कर दिये हैं. साफ कह दिया है कि एक – दो दिनों में उत्पादन बंद हो जायेगा. तीनों पावर प्लांटों पर यह संकट कोयले की कमी से आयी है.
जरूरत के मुताबिक, इन्हें कोयला नहीं मिल रहा है. ट्रांसपोर्टेशन को लेकर कोल कंपनियां और पावर प्लांट प्रबंधन में विवाद है. जहां कोल कंपनी ट्रांसपोर्टेशन सड़क मार्ग से कराने का सुझाव दे रही हैं, वहीं पावर प्लांट प्रबंधन रेलवे रैक से कोयला लेना चाहता है. स्थिति यह है कि सभी पावर प्लांट को आवश्यकता से काफी कम कोयला मिल रहा है. इन तीनों पावर प्लांटों को सीसीएल से कोयला मिलता है. कोडरमा थर्मल पावर प्लांट को कुछ कोयला बीसीसीएल से भी मिलता है.
क्या कहता है सीसीएल
सीसीएल प्रबंधन का कहना है कि झारखंड की बिजली कंपनियों को कोयला देने में कोई दिक्कत नहीं है. रेलवे का रैक नहीं मिल पाने के कारण कंपनियों को कोयला नहीं मिल पाता है. रैक लगाने का काम कंपनियों का है. पूरे मामले की निगरानी सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी करता है. वहीं से तय होता है कि रैक किस कंपनी को मिलना है. कोडरमा स्थित डीवीसी के प्लांट को सीसीएल ने 19 जुलाई को पांच, 24 जुलाई को तीन, 26 को तीन, 27 जुलाई को तीन, 30 जुलाई को एक तथा एक अगस्त को दो रैक कोयला भेजा है.
डीवीसी के प्लांट को जरूरत से अधिक कोयला दिया जा रहा है. डीवीसी के बोकारो प्लांट को सड़क मार्ग से कोयला भेजा जाता है. कोयले की कमी सीसीएल के पास नहीं है. कोयला ले जाने की जिम्मेदारी संबंधित कंपनियों की है. इसी तरह टीवीएनएल को नियमित रूप से कोयला दिया जा रहा है. टीवीएनएल खुद रेलवे का रैक लगाती है. 25, 26, 29, 30 जुलाई व एक अगस्त को एक-एक रैक कोयला भेजा गया है. कंपनी बार-बार टीवीएनएल को कह रही है कि सड़क मार्ग से कोयले का उठाव करें. बार-बार आग्रह के बावजूद टीवीएनएल कोयले का उठाव नहीं कर रहा है.
तेनुघाट थर्मल पावर प्लांट बंद है
कोयले के अभाव में तेनुघाट थर्मल पावर स्टेशन (टीटीपीएस) की एक यूनिट 15 अप्रैल से बंद है. केवल एक ही यूनिट से उत्पादन हो रहा था. वह भी 31 जुलाई से बंद हो गया है.
जिसके कारण टीवीएनएल को लगभग 150 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है. टीवीएनएल के ललपनियां स्थित तेनुघाट थर्मल पावर स्टेशन(टीटीपीएस) में दो यूनिट है. दोनों यूनिट से 360 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है और सारी बिजली झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड(जेबीवीएनएल) को बेची जाती है.
टीवीएनएल में प्रतिदिन साढ़े सात हजार मिलियन टन कोयले की जरूरत पड़ती है.पर अप्रैल से सीसीएल द्वारा केवल दो हजार से ढाई हजार मिलियन टन कोयले की ही आपूर्ति की जाती है. टीटीपीएस के जीएम सनातन सिंह का कहना है कि कोयला कम मिलने की वजह से एक ही यूनिट को चलाना पड़ रहा था. अब दूसरी यूनिट भी 31 जुलाई से बंद है. 31 जुलाई के बाद से अब तक दो रैक कोयला मिला है. पर यह यूनिट को चालू करने में पर्याप्त नहीं है.
डीवीसी के केटीपीएस को चार की जगह मिल रहे हैं एक रैक
डीवीसी का कोडरमा थर्मल पावर प्लांट(केटीपीएस) झारखंड का सबसे बड़ा पावर प्लांट है.इसकी क्षमता 1000 मेगावाट की है. जहां 500 मेगावाट की दो यूनिट है. अप्रैल और मई में पूरे देश में सबसे बेहतर प्रदर्शन करनेवाला पावर प्लांट का एवार्ड केटीपीएस को मिल चुका है. केटीपीएस को हर दिन 13500 टन कोयले की जरूरत है. यानी हर दिन चार रैक कोयले की जरूरत है. पर कभी एक तो कभी दो ही रैक मिल पा रहा है.
केटीपीएस के मुख्य अभियंता एमसी मिश्रा का कहना है कि इस पावर प्लांट से नेशनल ग्रिड जुड़ा हुआ है. मध्यप्रदेश, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा और एमपी को बिजली आपूर्ति की जाती है. झारखंड से भी 600 मेगावाट के लिए पीपीए होने जा रहा है. पर कोयले की जैसी कमी हो रही है, एक से दो दिनों में पावर प्लांट को बंद करना होगा. अभी क्षमता घटाकर 700 मेगावाट कर दिया गया है.
बीटीपीएस बंद होने पर रेल सेवा पर पड़ सकता है असर
डीवीसी के बोकारो थर्मल पावर प्लांट(बीटीपीएस) में एक यूनिट 500 मेगावाट की और दूसरी यूनिट 210 मेगावाट की है. डीवीसी को हर दिन 10 हजार टन कोयले की जरूरत है. यानी तीन रैक हर दिन चाहिए. पर अभी एक ही रैक कोयला मिल पा रहा है. इसके चलते 210 मेगावाट की एक यूनिट बंद कर दी गयी है.
500 मेगावाट की यूनिट की क्षमता घटाकर 250 मेगावाट उत्पादन हो रहा है. इससे रेलवे, बोकारो सिटी, सेल आदि को बिजली की आपूर्ति की जा रही है. बीटीपीएस के मुख्य अभियंता कहते हैं कि यदि जल्द ही कोयले का निदान नहीं हुआ तो यह यूनिट भी बंद हो जायेगी. रेल सेवा पर भी असर पड़ सकता है. मुख्य अभियंता कहते हैं कि सीसीएल प्रबंधन सड़क मार्ग से कोयला मंगाने के लिए कहता है. सड़क मार्ग से कोयला मंगाना संभव नहीं है. बीटीपीएस के समीप ही नो इंट्री रहता है. ऐसे में कोयले की ढुलाई सड़क मार्ग से नहीं हो पायेगी और कोयला समय पर नहीं मिल सकता.
बीसीसीएल का पक्ष
डीवीसी का जितना डिमांड है उतना कोयला बीसीसीएल दे रहा है. बीसीसीएल डीवीसी के सभी पावर प्लांट के लिए एकमुश्त कोयला ही देता है. अब यह डीवीसी यह करता है कि किस पावर प्लांट को कितना कोयला देना है. डीवीसी अब कोडरमा को देता है या मेजिया पावर प्लांट को इससे बीसीसीएल को कोई लेना-देना नहीं हैं. हां जरूरत के मुताबिक हर दिन कोयला बीसीसीएल दे रहा है.
देवन गंगोपाध्याय
निदेशक तकनीक(परिचालन)
बीसीसीएल धनबाद
देश के 40 फीसदी कोयले का भंडारवाला राज्य है झारखंड
डीवीसी के कोडरमा थर्मल पावर प्लांट ने उत्पादन घटाया, एक हजार मेगावाट की जगह 700 मेगावाट हो रहा है उत्पादन
डीवीसी के ही बोकारो थर्मल पावर प्लांट की एक यूनिट बंद, 700 मेगावाट की जगह 250 मेगावाट का हो रहा है उत्पादन
दिल्ली व पंजाब के प्लांटों को झारखंड से नियमित रूप से मिल रहा है कोयला
टीवीएनएल का पावर प्लांट 31 जुलाई से बंद, दूसरी यूनिट ढाई माह से बंद
पावर प्लांट उत्पादन क्षमता वर्तमान में उत्पादन कोयला की मिला
(मेगावाट में) (मेगावाट में) मांग प्रति दिन कितना
तेनुघाट थर्मल 420 000 7000 टन 3000 टन
कोडरमा थर्मल 1000 700 13500 टन 6000 टन
बोकारो थर्मल 710 210 10000 टन 3000 टन
कोल इंडिया का सर्कुलर बना वजह
बताया गया कि कोल इंडिया द्वारा पूर्व में एक सर्कुलर जारी कर कहा था कि जो भी पावर प्लांट कोलियरी क्षेत्र के 60 किमी की परिधि में है, उन्हें रेल रैक की जगह सड़क मार्ग से कोयले का परिवहन करना पड़ेगा. हालांकि पावर प्लांट प्रबंधन का कहना है कि सड़क मार्ग से कोयला मंगाना महंगा पड़ता है.
एक रैक में तीन हजार टन कोयला आता है. जबकि ट्रक से मंगाने पर एक ट्रक में 15 टन कोयला ही आता है. यानी एक यूनिट चलाने के लिए कम से कम 200 ट्रक कोयले की जरूरत पड़ेगी. ऐसे में परिवहन महंगा पड़ जायेगा और काफी समय भी लगेगा.
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