दुर्जय पासवान
गुमला : पुरोहितों के संरक्षक संत जोन मेरी वियानी का चार अगस्त को पर्व दिवस है. पूरे देश के चर्चो में चार अगस्त को पुरोहित अपने संरक्षक को याद करते हुए उनके पथों पर चलने का संकल्प लेंगे. संत वियानी की संघर्ष और सफलता कीबेमिसाल कहानी है. 24 में से 18 घंटे सिर्फ वे काम करते थे. जैसे मधुमक्खियां मधु जमा करने के लिए हर एक फूल पर मंडराती है और मधु लाकर छत्ते में भर देती है. उसी प्रकार का व्यक्तित्व हम जोन मेरी वियानी में देखते हैं. कौन जानता था कि आठ मई 1786 ईस्वी को एक साधारण परिवार में जन्मा बालक संत बनने वाला है. लेकिन यह हकीकत है. बुराई में जकड़े आर्स गांव (आर्स पल्ली) को बदलने का श्रेय जोन मेरी वियानी को जाता है. बुराई से लड़े. कभी किसी से नहीं डरे. इसलिए आगे चलकर जोन मेरी वियानी संत बनें. वह अपनी माता की प्रार्थनामय जीवन से प्रभावित होकर बड़ा हुआ. बचपन की जो प्रार्थना की किरणों उनमें उदित हुई. उसे उन्होंने अपने जीवन के अंत तक बनाये रखा. जिस भी कार्य को करने का उन्होंने संकल्प लिया.
उसे पूरा करके ही दम लिये. उनकी आत्मा इस प्रकार प्रभु में लीन हो गयी कि उन्होंने अपने जीवन को आर्स के एक छोटे से गांव में रहकर प्रभु के लिए समर्पित कर दिया. जिस प्रकार आर्स में बुराई चरम पर था. उन्होंने वहां सुधार लाये. उन्होंने देखा कि गांव में युवक-युवतियों, विवाहित जोड़ों और बच्चों के लिए धार्मिक शिक्षा व संस्कार ग्रहण करने का कोई अवसर नहीं था. इसपर उन्हें बहुत दुख हुआ. उन्होंने दृढ़ प्रतिज्ञा की कि वे इन सभी का उत्थान करेंगे. सेमिनरी की पढ़ाई में वे बहुत कमजोर थे. इस कारण उन्हें सेमिनरी से निकाल दिया गया था. लेकिन अपनी कड़ी मेहनत के बूते अपने लक्ष्य तक पहुंचे.
जोन मेरी वियानी ने देखा कि आर्स गांव में लोग संसारिक भोगा विलास का जीवन बिता रहे थे. लेकिन धार्मिक लोगों की मदद से उन्होंने पूरे आर्स के वातावरण को बदल दिये. पापमय जीवन बिताने वालों की आलोचना उन्होंने कड़े शब्दों में की. घर-घर में जाकर युवकों को शिक्षित किया. कई बार जोन मेरी वियानी को गांव छोड़ने के लिए विवश किया गया. लेकिन संत तेरेसा के कथनों ने उनके कठिन व कड़वे अनुभवों को मीठे अनुभवों में बदल दिया. जोन मेरी वियानी की पहल रंग लायी. ईश्वर में पूर्ण विश्वास व आस्था के फलस्वरूप दूसरे लोगों के प्रति प्रेम की भावना जागी और आर्स गांव शांति व प्रेम का स्थान बन गया.
ईसा का कहना है : भला गड़ेरिया मैं हूं, मैं अपनी भेड़ों के लिए अपने प्राण न्योछावर कर देता हूं और यही संत जोन मेरी वियानी के ह्रदय में रम गयी थी. अत: उन्होंने भले गड़ेरिया के समान आर्स गांव के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिये. विनम्रता की मूर्ति व आदर्श पुरोहित जोन मेरी वियानी की मृत्यु चार अगस्त 1859 ईस्वी में हुई. वे हमेशा कहा करते थे. अपने जीवन में जो कुछ हो सका, वही मैंने किया. आज हम अपने देश की दयनीय स्थिति से अवगत हैं. अत: इन परिस्थितियों पर विचार करना चाहिए. जहां हत्या एवं नरसंहार का तांडव मचा है. लोग मर रहे हैं. गरीबी व आर्थिक तंगी मौत के कारण बन रहे हैं. क्या इतना होने के बावजूद भी हम अपनी आंखें बंद किये बैठे रहेंगे. यदि हम येसु मसीह के कार्यकलाप पर नजर डालें तो देख सकते हैं कि उन्हें भी यहूदियों की ताकतों के विरुद्ध सामना करना पड़ा था. पिता ईश्वर ने जो कार्य उन्हें सौंपा था. उसे येसु मसीह ने पूरा किया. कभी डरे नहीं. पीछे हटे नहीं. हर दुख सहकर भी आगे बढ़ते रहे. इस प्रकार वे ईसाई समुदाय के मार्गदर्शन बनें. उसी प्रकार जोन मेरी वियानी आर्स गांव के लोगों के लिए मार्गदर्शक बनें. संत जोन मेरी वियानी ने खुद को ईश्वर के लिए समर्पित कर दिये.
संत जोन मेरी वियानी ने कहा है : पुरोहित का जीवन अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए है. पुरोहित की पहचान अपने लोगों के प्रति प्रेम, सदभावना, दयालुता एवं विनम्रता जैसे भावनाओं से प्रकट होती है. जोन मेरी वियानी के अदभुत कार्य के कारण ही संत पिता पियुस 11वें ने उन्हें संत घोषित किया. साथ ही संत पिता ने कहा था कि सभी देशों के पल्ली पुरोहित उनका अनुसरण करें. एक पल्ली पुरोहित पल्ली का केंद्र है. जिस प्रकार परिवार में बच्चों का चरित्र निर्माण करना माता-पिता पर निर्भर रहता है. उसी प्रकार पल्ली के आध्यात्मिक का केंद्र पल्ली पुरोहित है.