- फिल्म : फन्ने खां
- निर्माता : राकेश ओम प्रकाश मेहरा
- निर्देशक : अतुल मांजरेकर
- कलाकार : अनिल कपूर, ऐश्वर्या राय बच्चन, राजकुमार राव, पीहू सांध, दिव्या दत्ता और अन्य
- रेटिंग : ढाई
उर्मिला कोरी
‘फन्ने खां’ बेल्जियन फिल्म ‘एवरीबडी इज फेमस’ की ऑफिशियल रीमेक है. फिल्म की कहानी प्रशांत उर्फ फन्ने खां (अनिल कपूर) की है, जो एक फैक्ट्री में काम करता है. उसका सपना मोहम्मद रफी बनने का होता है लेकिन जिंदगी के हालात उसे उसके मोहल्ले के फन्ने खां बना देता है. बेटी के जन्म के बाद वह उसे लता मंगेशकर बनाने का सपना देखता है. बेटी का नाम भी वह लता रखता है.
लता बड़ी होकर न सिर्फ एक अच्छी सिंगर बल्कि डांसर भी बनती है, लेकिन उसके वजन की वजह से लोग उसकी प्रतिभा पर ध्यान नहीं देते हैं. फन्ने खां अपनी बेटी के सपने को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक गुजरने का फैसला करता है. वह मशहूर सिंगर बेबी सिंह (ऐश्वर्या राय बच्चन) को किडनैप करता है.
क्या वह इससे अपनी बेटी के सपने को पूरा कर पायेगा, इसी के इर्द गिर्द आगे की कहानी है. फिल्म की कहानी की सोच अच्छी है लेकिन वह पर्दे पर उस तरह से आ नहीं पायी. फिल्म की थीम बाप बेटी के रिश्ते पर है, लेकिन बेटी की पिता से बेवजह नाराजगी फिल्म के इस थीम को कमतर कर जाती है.
फिल्म का फर्स्ट हाफ बहुत स्लो है, सेकंड हाफ में कहानी भटकती हुई दिखती है और सेकंड हाफ काफी लंबा भी हो गया. फिल्म की कहानी बेहद कमजोर है. कहानी जिंदगी की हकीकत को नजरअंदाज करता दिखता है. एक गरीब परिवार और बॉलीवुड की हकीकत को बस सरसरी अंदाज में ही यह कहानी दिखा पायी है. फिल्म बॉडी शेमिंग जैसे संवेदनशील मुद्दे को भी असरदार तरीके से दिखाने में चूक गयी है.
फिल्म की एकमात्र खासियत की बात करें, तो वह कलाकारों का अभिनय ही है. खासकर अभिनेता अनिल कपूर की बात करें, तो उन्होंने मजबूर बाप का किरदार बखूबी निभाया है. नवोदित पीहू ने अपनी भूमिका को पूरी संवेदनशीलता के साथ जिया है, तो वहीं दिव्या दत्ता ने अपनी स्क्रीन प्रेजेंस बखूबी दर्ज की है.
ऐश्वर्या राय बच्चन परदे पर खूबसूरत दिखी हैं लेकिन उनका किरदार अधूरा से लगता है. उनके किरदार को ठीक तरह से स्थापित नहीं किया गया है. राजकुमार राव हमेशा की तरह छाप छोड़ने में कामयाब रहे. बाकी के कलाकारों का काम ठीक ठाक है.
यह फिल्म एक म्यूजिकल ड्रामा फिल्म है, लेकिन कहानी के साथ साथ यह फिल्म अपने गीत संगीत में भी औसत रह गयी है. कोई भी साउंडट्रैक ऐसा नहीं बन पड़ा है, जो थिएटर से बाहर निकलने के बाद भी याद रह जाता हो. फिल्म के संवाद की बात करें, तो वन लाइनर अच्छे बन पड़े हैं. सिनेमेटोग्राफी अच्छी है.