गुवाहाटी : तृणमूल कांग्रेस की असम इकाई के अध्यक्ष द्विपेन पाठक और दो अन्य नेताओं ने एनआरसी के अंतिम मसौदे के प्रति पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी के रूख के खिलाफ गुरुवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया.
तृणमूल कांग्रेस के रुख पर असम के कई दलों और संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. पाठक का इस्तीफा बंगाली बहुल बराक घाटी में सिलचर हवाई अड्डे पर तृणमूल कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल के पहुंचने और पुलिस द्वारा उसे बाहर निकलने से रोके जाने के कुछ ही घंटे के अंदर आया.
बनर्जी के निर्देश पर प्रतिनिधिमंडल असम गया था. इस्तीफा देने वाले तीन नेताओं में एक और गोलाघाट से पार्टी के नेता दिगंता सैकिया ने असमी विरोधी रुख अपनाने को लेकर बनर्जी के खिलाफ मामला दर्ज कराने की भी धमकी दी. असम में सत्तारुढ़ भाजपा और अन्य दलों ने कहा है कि बराक घाटी में तृणमूल का कोई अस्तित्व नहीं है.
पूर्व विधायक पाठक ने कहा कि राष्ट्रीय नागरिक पंजी के प्रकाशन के बाद उन्होंने पार्टी नेताओं को असम की जमीनी हकीकत से अवगत कराया था और बनर्जी से राज्य में प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजने की अपील की थी. 2011-2016 तक तृणमूल के विधायक रहे पाठक ने कहा, पार्टी ने मेरे सुझाव पर ध्यान नहीं दिया और यहां की जमीनी स्थिति समझने से इनकार कर दिया.
#WATCH: Dwipen Pathak after resigning from Assam TMC Chief's post says, "What Mamata Banerjee said about NRC, that it has been brought in Assam to drive out Bengalis, I don't agree with that. It might create disturbance here & the blame would be on me as a pres, so I've resigned" pic.twitter.com/JnxKy2gV0i
— ANI (@ANI) August 2, 2018
इस पृष्ठभूमि में मेरे लिए उस पार्टी में बने रहना संभव नहीं है जो असमी भावना को महत्व नहीं देती. उन्होंने कहा, असम में तृणमूल का कोई अस्तित्व नहीं है. पार्टी के दो नेताओं – प्रदीप पचानी और दिगंता सैकिया ने भी यह कहते हुए पार्टी छोड़ दी कि वे उस पार्टी में नहीं बने रहना चाहते हैं जो मूल असमी लोगों की पहचान से समझौता करना चाहती है.
ब्रह्मपुत्र घाटी के चारैदेव और सोनितपुर जिलों में छात्र संगठनों ने बनर्जी के पुतले फूंके. उन्होंने तृणमूल और पार्टी सुप्रीमो बनर्जी को असम के मामले में दखल नहीं देने की चेतावनी दी. इस बीच बराक घाटी के करीमगंज उत्तरी के विधायक कमलख्या डि पुरकायस्थ ने कहा, तृणमूल की एनआरसी के बारे में कई गलत धारणाएं हैं और उन्हें (प्रतिनिधिमंडल को) आने देना चाहिए था ताकि मसौदे के बारे में उनकी गलतफहमियां दूर होती.