नयी दिल्ली : संविधान पीठ के हाल के फैसले के आलोक में उच्चतम न्यायालय विभिन्न अधिकारों के दायरे से संबंधित दिल्ली सरकार की अपीलों पर अगले सप्ताह सुनवाई के लिए मंगलवारको सहमत हो गया. संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि उपराज्यपाल को निर्णय लेने के लिए कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है.
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘इसे अगले सप्ताह में कभी सूचीबद्ध किया जायेगा.’ इस मामले का उल्लेख दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने पीठ के सामने कहा कि चार जुलाई के फैसले के बाद भी लोक सेवाओं के मुद्दे पर गतिरोध कायम है और इस पर उचित पीठ द्वारा गौर किये जाने की जरूरत है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षतावाली संविधान पीठ ने चार जुलाई को अपने फैसले में राष्ट्रीय राजधानी के शासन के लिए कुछ व्यापक मानदंड निर्धारित किये थे. दिल्ली में वर्ष 2014 में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से ही केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों को लेकर लंबे समय से रस्साकसी चल रही थी.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने दिल्ली सरकार के इस कथन पर विचार किया कि शीर्ष अदालत के फैसले के बाद भी सार्वजनिक सेवाओं के मुद्दे पर गतिरोध बना हुआ है और इस पर किसी उचित पीठ द्वारा विचार की आवश्यकता है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि के अलावा दिल्ली सरकार को अन्य विषयों पर कानून बनाने और शासन करने का अधिकार है. इसके साथ ही पीठ ने स्पष्ट किया था कि संविधान की योजना के मद्देनजर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता. संविधान पीठ ने दिल्ली की स्थिति और अधिकारों से संबंधित अनुच्छेद 239 ए ए की व्याख्या कर महत्वपूर्ण मुद्दों का जवाब दिया था. अब दिल्ली की स्थिति और अधिकारों के बारे में दो या तीन सदस्यीय पीठ विचार करेगी.
पीठ ने यह भी कहा था कि उपराज्यपाल को सोच-विचार के बगैर ही मंत्रिमंडल के सारे फैसलों को राष्ट्रपति के पास भेजने के लिए यांत्रिक तरीके से काम नहीं करना चाहिए. उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद को परस्पर विचार-विमर्श से किसी भी मतभेद को दूर करने का प्रयास करना चाहिए. दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों को लेकर चली रस्साकसी का मामला दिल्ली उच्च न्यायालय पहुंचा था. उच्च न्यायालय ने चार अगस्त, 2016 को अपने फैसले में कहा था कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया हैं. उच्च न्यायालय के इस निर्णय को केजरीवाल के नेतृत्ववाली दिल्ली सरकार ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी. इन अपीलों पर सुनवाई के दौरान ही अनुच्छेद 239 ए ए की व्याख्या का मुद्दा उठने पर न्यायाधीशों की पीठ ने इसे संविधान पीठ को सौंप दिया था.