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सुविधा में दुविधा

कविता विकास लेखिका मेरे एक परिचित शादी समारोह से लौटे. मैंने मजाक में पूछा कि क्या-क्या खाये वहां. उन्होंने बड़ी मायूसी से जवाब दिया, ‘अरे इतनी चीजें थीं खाने को कि समझ में ही नहीं आया क्या खाऊं, क्या न खाऊं, कशमकश में रोज वाली सब्जी-चपाती ले ली.’ यह समस्या आज कमोबेश सबके साथ है. […]

कविता विकास
लेखिका
मेरे एक परिचित शादी समारोह से लौटे. मैंने मजाक में पूछा कि क्या-क्या खाये वहां. उन्होंने बड़ी मायूसी से जवाब दिया, ‘अरे इतनी चीजें थीं खाने को कि समझ में ही नहीं आया क्या खाऊं, क्या न खाऊं, कशमकश में रोज वाली सब्जी-चपाती ले ली.’ यह समस्या आज कमोबेश सबके साथ है.
आज हर एक क्षेत्र में चीजों के इतने विकल्प हैं कि अगर आप निश्चित न हों, तो भटकाव लाजमी है. दसवीं पास एक छात्र से जब मैंने पूछा कि आगे कौन सा स्ट्रीम लेकर पढ़ोगे, तो लापवाही से उसने जवाब दिया, ‘कितने रास्ते तो खुले हैं आजकल, जिसमें दाखिला मिल जायेगा, ले लेंगे.’ यानी पढ़ाई, नौकरी, घर-गृहस्थी, फैशन, हर जगह ढेरों विकल्प हैं.
सुविधाओं से लैस इस समाज में ही हम ज्यादा धोखा खा रहे हैं. जो सामान हमारे काम के नहीं होते हैं, उसे ही घर ले आते हैं. दूसरों की देखा-देखी, अपनी जरूरत की उपेक्षा करके हम निरुद्देश्य कुछ कर जाते हैं, जिसमें वक्त और पैसा दोनों जाया होते हैं. सुविधा यानि विधा को सुव्यवस्थित करना. सुविधाएं हमारा जीवन आसान बनाने के लिए होती हैं.
लेकिन, सुविधा जब दुविधा में तब्दील हो जाये, तो इसका मतलब है हमें खुद अपनी आवश्यकताओं का भान नहीं है. जब हमारे लक्ष्य निश्चित होते हैं, तभी हम द्वंद्व की स्थिति से उबर सकते हैं. विकल्पों का चुनाव तभी सही होता है.
आजकल बच्चे माता-पिता या दोस्तों के दबाव में उन विषयों को ले लेते हैं, जो उनके पसंद के नहीं होते. शुरुआत में तो ठीक-ठाक रहता है, पर धीरे-धीरे वे बोझिल होते जाते हैं.
फिर आरंभ होता है डिप्रेशन का दौर. सो अपनी योग्यता का आकलन करना चाहिए. गणित नहीं रास आता हो, तो उन विषयों का चुनाव करें, जिनमें मन लगता हो. खाना और कपड़ों पर विकल्प आजमाया जा सकता है, पर कैरियर में खिलवाड़ ठीक नहीं है.
अपनी आदतों को सुविधा के अनुसार नहीं ढालना चाहिए, बल्कि सुविधाओं को अपनी आवश्यकता के अनुसार ढालना चाहिए. सुविधा अपने विस्तृत परिवेश में अनुशासन से जुड़ा हुआ है. हम लेट-नाइट पार्टी करने को स्वतंत्र हैं, लेकिन कानफोड़ू संगीत पड़ोसियों की नींद में व्यवधान डाले, तो यह धृष्टता है.
आत्मानुशासन से सुविधाओं का सीधा संबंध इसलिए ही है कि एक आदमी की सुविधा दूसरे के लिए बाधा हो सकती है. प्रचार और विज्ञापन के बहकावे में अक्सर दुविधा की स्थिति पैदा हो जाती है.
जिस विकल्प से जीवन आसान लगे, सार्थक और सुव्यवस्थित लगे, वही सुविधा का पर्याय है. पर जब सुविधा में दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो जाये, तब बड़ों और अनुभवी लोगों की सलाह अवश्य लेनी चाहिए. जैसे बहुत सारे रसोइये खाना बिगाड़ देते हैं, उसी तरह बहुत सारी सुविधाएं भी दुविधा पैदा कर सकती हैं. अतः इस भ्रामक संसार में अपनी बुद्धि और विवेक का सही इस्तेमाल करना चाहिए.

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