II डॉ अश्विनी महाजन II
एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू
ashwanimahajan@rediffmail.com
बीते 4 जुलाई, 2018 को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने चीन के सबसे बड़े बैंक ‘बैंक ऑफ चाइना’ को लाइसेंस जारी कर भारत में व्यवसाय करने की अनुमति दे दी है. बताया जा रहा है कि बैंक ऑफ चाइना को यह लाइसेंस हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ बैठक में हुए फैसले के अनुसार दिया गया है. यह दूसरा चीनी बैंक है, जिसे भारत में व्यवसाय करने का अधिकार मिला है. इससे पहले इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना लिमिटेड को भारत में बैंकिंग का लाइसेंस मिला हुआ है.
बैंक ऑफ चाइना चीन का एक सरकारी बैंक होने के साथ-साथ चीन का दूसरा बड़ा बैंक भी है. 1942 से पहले इस बैंक को करेंसी जारी करने का भी अधिकार था. इस बैंक की परिसंपत्तियां 158.6 बिलियन डॉलर की हैं. इसकी कई ग्राहक कंपनियां पहले से ही भारत में काम कर रही हैं, इसके कारण इस बैंक का भारत के प्रति आकर्षण स्वाभाविक ही था.
बैंक ऑफ चाइना ने जुलाई 2016 में लाइसेंस के लिए आवेदन किया था. इसके लिए पहले सैद्धांतिक रूप से गृह मंत्रालय ने हामी भर दी थी, लेकिन बाद में (शायद चीन की आक्रामक नीति के कारण) उस अनुमति को वापस ले लिया गया था.
अब जबकि भारत और चीन के रिश्ताें में सकारात्मक बदलाव आया है, आवेदन को स्वीकार कर भारत सरकार ने इस बैंक की भारत में शाखाएं खोलने की अनुमति दी है. इस बैंक के शेयर शंघाई और हांगकांग शेयर बाजारों में खरीदे-बेचे जाते हैं.
हालांकि, डोकलाम विवाद के थमने के बाद चीन के साथ टकराव का कोई नया मामला सामने नहीं आया है, लेकिन भारत और चीन के बीच तल्ख रिश्ते किसी से छुपे हुए नहीं है. चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के लिए पहले से ही विश्वभर में चर्चा का केंद्र रहा है.
भारत ने चीन की विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ानेवाली महत्वाकांक्षी बीआरआई (बेल्ट रोड इनीशिएटिव) परियोजना का कड़ा विरोध पहले ही किया हुआ है. भारत का मानना है कि वह चीन की विस्तारवादी नीति ही है, जो पाकिस्तान के कब्जे में भारत की भूमि पर वह अपनी बेल्ट रोड बना रहा है. भारत ने न केवल इस परियोजना से अपने आप को अलग रखा है, बल्कि कई मंचों पर इसका विरोध भी किया है.
इधर भारत में चीनी कंपनियां अपना वर्चस्व बनाने में लगी हुई हैं. कई इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में भी चीनी भागीदारी भारी मात्रा में है. उधर चीन से आ रहे आयातों के कारण हमारे देश के उद्योग-धंधे नष्ट हो रहे हैं और बेरोजगारी बढ़ रही है. कुल मिलाकर चीन द्वारा सस्ते माल को डंप करने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो रहा है.
दूसरी ओर चीन से भारत को भयंकर सामरिक खतरा भी है. भारत के पड़ोसी देशों- पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, वर्मा और श्रीलंका समेत कई देशों में वह अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है.
पाकिस्तान के साथ तो उसके रिश्ते भारत के प्रति पाकिस्तान की नफरत को फैलाने में सहयोग तक दे रहे हैं. श्रीलंका में एक बंदरगाह को बनाने के लिए पहले चीन द्वारा भारी ऋण दिया जाना और बाद में चीनी सरकार द्वारा उस पर कब्जा जमा लिया जाना, और एेसे अनेक मामले यह इंगित कर रहे हैं कि चीन का इरादा इस महाद्वीप में अपना सामरिक प्रभुत्व जमाने का है.
बैंकिंग आज के युग में अर्थव्यवस्था की रीढ़ के समान है. यह सही है कि आज विश्व के सभी देशों के बैंक एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. उसी क्रम में भारत और चीन के बैंक भी जुड़े हुए हैं, लेकिन अभी तक चीनी बैंकों की भारत में उपस्थिति नाम मात्र ही थी. लेकिन, बैंक ऑफ चाइना के भारत में आगमन के बाद यह उपस्थिति काफी बढ़ जायेगी.
भारत सरकार कई प्रकार से चीन से भारत में माल की डंपिंग को रोकने और चीनी कंपनियों की भारत में सामरिक दृष्ट से महत्वपूर्ण परियोजनाओं में आने से रोकने का भरसक प्रयास कर रही है, ताकि चीन से भारत का व्यापार घाटा कम हो सके.
इस दृष्ट से सौ से ज्यादा चीनी उत्पादों के आयात पर एंटीडंपिंग ड्यूटी लगायी गयी है, चीन से आनेवाले आयातों पर तकनीकी प्रतिबंध लगाये जा रहे हैं.
इसके अतिरक्त उन क्षेत्रों में चीनी कंपनियों को प्रतिबंधित करने का प्रयास भी हुआ है, जहां चीन अपने देश में भारतीय कंपनियों को आने की इजाजत नहीं देता.
लेकिन, भारत सरकार के चीन से व्यापार घाटे को कम करने के तमाम प्रयासों को बैंक ऑफ चाइना प्रभावित कर सकता है. चीनी आयातकाें को सुविधाएं देना, चीनी कंपनियों को भारत में काम करने हेतु वित्त उपलब्ध कराना, भारत में चीनी आयातों को और बढ़ावा देने का काम भी कर सकता है.
याद रखना होगा कि ‘बैंक ऑफ चाइना’ चीनी सरकार के स्वामित्व में है. यदि चीन की सरकार चाहे, तो बैंक ऑफ चाइना के माध्यम से रुपये की विनिमय दर में भी उथल-पुथल ला सकती है और भारतीय अर्थव्यवस्था को भीषण नुकसान पहुंचा सकती है.
इन खतरों के मद्देनजर बैंक ऑफ चाइना को दी गयी अनुमति पर पुनर्विचार, चीनी बैंकिंग गतिविधियाें पर नियंत्रण समेत सभी विकल्पों पर सरकार को विचार करना चाहिए. कम-से-कम से चीनी बैंकों की गतिविधियों पर नजर रखने का न्यूनतम काम तो आरबीआई को करना ही चाहिए. याद रखना होगा कि चीनी सरकार, चीनी कंपनियाें और चीनी वित्तीय क्षेत्र की गतिविधियाें में पारदर्शिता का पूर्ण अभाव होता है. इन तमाम कारणों से चीन के साथ व्यवहार में हमारा सजग रहना बहुत जरूरी है.