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रांची : नहीं रहे साहित्यकार व पत्रकार शिशिर टुडू, आज जीइएल चर्च कब्रिस्तान में किया जायेगा अंतिम संस्कार

रांची : संताली अौर हिंदी के साहित्यकार, पत्रकार अौर डॉक्यूमेंटरी फिल्म मेकर शिशिर टुडू का निधन मंगलवार तड़के लखनऊ में हो गया. वे ब्लड कैंसर से पीड़ित थे और इलाज के लिए मात्र तीन दिन पहले ही लखनऊ गये थे. बुधवार को रांची में ही उनका अंतिम संस्कार जीइएल चर्च कब्रिस्तान में किया जायेगा, उनका […]

रांची : संताली अौर हिंदी के साहित्यकार, पत्रकार अौर डॉक्यूमेंटरी फिल्म मेकर शिशिर टुडू का निधन मंगलवार तड़के लखनऊ में हो गया. वे ब्लड कैंसर से पीड़ित थे और इलाज के लिए मात्र तीन दिन पहले ही लखनऊ गये थे. बुधवार को रांची में ही उनका अंतिम संस्कार जीइएल चर्च कब्रिस्तान में किया जायेगा, उनका पार्थिव शरीर लखनऊ से रांची लाया जा रहा है.
72 वर्षीय शिशिर टुडू ने 1970 के दशक से लिखना शुरू किया था. उन्होंने 400 से अधिक रेडियो कार्यक्रमों का निर्माण किया. 20 से अधिक डॉक्यूमेंटरी फिल्में बनायीं. आदिवासी व झारखंड से जुड़े मुद्दों पर कई पुस्तकें लिखीं.
उन्होंने आर कास्टेयर्स की पुस्तक हाड़मा विलेज का ‘ऐसे हुआ हूल’ के नाम से हिंदी अनुवाद किया.उनके लेख प्रभात खबर में भी खूब छपे. वे रांची से प्रकाशित सांध्य दैनिक झारखंड न्यूजलाइन के संपादक रहे. उन्होंने झारखंड में चल रहे विभिन्न जन आंदोलनों विशेषकर नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज, कोयलकारो परियोजना के खिलाफ तथा झारखंड आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभायी.
शोक की लहर
साहित्यकार महादेव टोप्पो ने कहा कि शिशिर दा का नहीं होना अपूरणीय क्षति है. वे पहले आदमी थे, जो चर्च के दायरे से बाहर आकर झारखंड की पत्रकारिता में गये. वे पहले ऐसे आदिवासी भी रहे, जो किसी दैनिक में संपादक के तौर पर काम किया. उन्होंने संताल हूल पर पुस्तक का अनुवाद किया. कविता और कहानी भी लिखी. लगभग पंद्रह दिनों पहले पता चला कि उनकी तबीयत खराब है अौर अस्पताल में भर्ती है.
साहित्यकार गिरिधारी राम गोंझू ने कहा कि वे झारखंड की पत्रकारिता में आये अौर निर्भीक होकर पत्रकारिता की. उनके लेख प्रमाणिक होते थे. उनका निधन कभी पूरा न हो सकनेवाली क्षति है. इस खबर से काफी दुखी हूं. उन्होंने नियोजन पदाधिकारी के काम को छोड़ कर पत्रकारिता चुनी थी. झारखंड के मुद्दों पर उन्होंने खूब लिखा.
साहित्यकार वंदना टेटे ने कहा कि शिशिर दा का लेखन वैसा ही था, जैसा उनका व्यक्तित्व. वे बहुत सरल व्यक्तित्व थे, साथ ही बहुमुखी प्रतिभा के भी धनी थे. उन्होंने जिन किताबों का अनुवाद किया, वे काफी महत्वपूर्ण हैं. इस समय झारखंड के समाज के समक्ष तरह-तरह की विपत्ति आ रही है, ऐसे में उनका चला जाना किसी मार्गदर्शक के चले जाने की तरह है. उन्होंने अपना काम खामोशी से किया अौर उसी तरह चले भी भी गये.
शिशिर दा ने हमेशा काम की गुणवत्ता पर बल दिया
रतन तिर्की
बात उन दिनों की है, जब मैंने यह जाना कि शिशिर टुडू नामक व्यक्ति सरकारी अफसर की नौकरी छोड़ कर मुंबई चला गया था. उस वक्त मैं भी प्रभात खबर में स्वतंत्र रूप से लिखता था. गांव-गांव घूमना मेरी आदत थी. विशेष कर जनआंदोलनों पर मैं जम कर लिखता था.
हरिवंश जी ने मुझे प्रभात खबर में जगह दी थी. इसी दरम्यान अचानक एक दिन सीधा, सरल और सौम्य चेहरा वाला व्यक्ति देखने से ही लगा कि ये संताल आदिवासी है, मेरा सामने खड़ा था. प्रभात खबर के गेट पर मुझसे मिलने. मैं थोड़ा आश्चर्यचकित हुआ कि मुझसे मिलने. मैं तो अदना सा रिपोर्टर. पूछा कि आप रतन तिर्की ‘जी’ हैं. मैंने कहा-हां. उन्होंने हाथ मिलाया और कहा कि आप ही से मिलने आया हूं. मैंने भी तपाक से कहा बोलिए. तब बात खुली कि वे भी ज्वलंत विषयों पर लिखना चाहते हैं. मैंने उन्हें हरिवंश जी से मिलाया. उन्होंने शिशिर दा को हामी भर दी. बाद में शिशिर दा ने कई स्तंभ लिखे, जो प्रमुखता सेप्रकाशित भी हुए. वे मुझसे कहते थे ‘कलम मत छोड़िएगा, शर्ट में खोंसे रखिएगा.’
बाद में मुझे मालूम हुआ कि शिशिर दा तो विलक्षण गुणों के भंडार हैं. फिल्मकार, स्क्रिप्ट राइटर और गीतकार भी हैं. उन्होंने मुझे बताया कि नौकरी छोड़ने के बाद वे ‘बांबे’ भाग कर चले गये. वहां कमाल अमरोही के स्टूडियो में काम सीखने लगे. ट्रोली ठेलना, लाइट ढोना, क्रेन पकड़ना, सामानों को समेटना आदि पूरी तकनीकी ज्ञान को शिशिर दा ने पकड़ लिया था.
वे बताते थे कि उन्होंने मीना कुमारी की पाकीजा फिल्म निर्माण में भी छोटो-मोटा काम किया था. ‘ऐरा कारा’ बांग्ला डॉक्यूमेंट्री उनकी बड़ी उपलब्धियों में शामिल है. सबसे बड़ी बात है कि शिशिर दा ने हमेशा काम की गुणवत्ता को बल दिया. कई पत्रकार, जैसे रजत दा, महेश्वर सिंह छोटू, किसलय जी, श्रीनिवास जी, मधुकर जी, विजय पाठक जी, बलवीर दत्त जी और प्राय: उस वक्त के सभी छायाकारों के बहुत करीबी थे.
कैमरा का तो अथाह ज्ञान था उनके पास. उनके द्वारा किये गये कामों की लंबी फेहरिस्त है. हड़बड़ी में जो लिख पाया, पर जो भी लिखा हूं वह शिशिर दा के महत्वपूर्ण पलों को जमा कर उनकी स्मृति में समर्पित. अलविदा शिशिर दा.

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