बीते शुक्रवार डॉक्टर अब्दुल ग़नी को शाम क़रीब सवा चार बजे अस्पताल लौटने के लिए फ़ोन आया.
तब उन्होंने सोचा भी नहीं था कि उनका अपना बेटा अस्पताल में मृत पड़ा है और उन्हें ही उसे मृत घोषित करना पड़ेगा.
भारत प्रशासित कश्मीर के पुलवामा ज़िले के राजपुरा अस्पताल में पांच घायलों को भर्ती किया गया था.
इन घायलों में डॉक्टर ग़नी का बेटा भी था जिसे गोली लगी थी.
जब डॉक्टर ग़नी वापस अस्पताल लौटे तो वहां उन्होंने अपने बेटे की लाश देखी.
उनके पंद्रह साल के बेटे फ़ैज़ान को पुलवामा में भारतीय सेना और चरमपंथियों के बीच हुई मुठभेड़ में गोली लगी थी.
शुक्रवार को जब सेना और चरमपंथियों के बीच मुठभेड़ हो रही थी तब सैकड़ों पत्थरबाज़ सेना पर पत्थर फेंक रहे थे. इनमें फ़ैज़ान भी शामिल था.
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जवाब में सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारियों पर पेलेट और गोली चलाई. इसमें कई प्रदर्शनकारी घायल हुए.
‘आपका बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा’
इस बारे में पुलिस का कहना है कि पांच आम नागरिकों को मुठभेड़ के दौरान क्रास फ़ायरिंग में गोली लगी जिसमें एक की मौत हो गई.
शनिवार को फ़ैज़ान को गोस्वानपोरा में दफ़ना दिया गया. डॉक्टर ग़नी का आरोप है कि फ़ैज़ान के दिल में गोली मारी गई.
वो बताते हैं, "मेरे बेटे फ़ैज़ान को पहले पास के ही दूसरे अस्पताल ले जाया गया. पांच बजे के आसपास उसे मेरे अस्पताल लाया गया. जब मुझे फ़ोन कॉल आया तो मैं रास्ते में ही था, घर नहीं पहुंचा था. मुझसे तुरंत अस्पताल आने के लिए कहा गया. जब मैं अस्पताल पहुंचा तो मैंने तीन घायलों को देखकर उन्हें श्रीनगर के लिए रेफ़र कर दिया. दो घायलों को पेलेट लगे थे."
डॉक्टर ग़नी बताते हैं, "अस्पातल के मेरे साथी मुझे दिलासा देने लगे. जब मैंने पूछा कि क्या हुआ तो उन्होंने बताया कि आपका बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा. बेटे की लाश देखकर मैं टूट गया, लेकिन हौसला तो रखना पड़ता है."
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डॉक्टर ग़नी ने अपने बेटे की लाश को सफ़ेद चादर में लपेटा और घर की ओर रवाना हो गए. वो कहते हैं, ‘मैंने ये कभी नहीं सोचा था कि अपने ही अस्पताल में अपने बेटे की लाश देखूंगा. मेरे बेटे के दिल में गोली मारी गई. ये टारगेट किलिंग होगी. अगर टांग में या कहीं ओर गोली लगी होती तो मैं उसे बचा लेता, लेकिन उसकी तो मौत घटनास्थल पर ही हो गई थी."
दिन के घटनाक्रम को याद करते हुए डॉक्टर ग़नी कहते हैं, "मैंने सुबह बेटे से पूछा था कि स्कूल जाओगे या नहीं तो उसने कहा था कि आज जुमा है, आज आधे दिन की छुट्टी रहेगी इसलिए मैं नहीं जाऊंगा. मैंने उससे कहा कि बारिश हो रही है, आप घर पर ही आराम करो, मैं काम पर जा रहा हूं. ये मेरी अपने बेटे से आख़िरी बात थी."
डॉक्टर ग़नी कहते हैं कि उन्हें अंदेशा था कि कहीं फ़ैज़ान जुमे की नमाज़ के बाद प्रदर्शनों में शामिल न हो जाए. वो कहते हैं, ‘भीतर से मेरा दिल परेशान हो रहा था. मैं दिन भर यही इंतज़ार कर रहा था कि घर जाऊं और अपने बेटे और घरवालों के साथ खाना खाऊं.’
15 साल का फ़ैज़ान किशोरावस्था से युवावस्था में क़दम रख रहा था. डॉक्टर ग़नी कहते हैं कि हाल के महीनों में वो कश्मीर के मुद्दे को लेकर काफ़ी गंभीर रहने लगा था. उम्र के साथ ही उसकी राजनीतिक और सामाजिक समझ भी पैदा हो रही थी.
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‘बढ़ते चरमपंथ को लेकर बेचैनी’
वो कहते हैं कि उनका बेटा बीते छह महीनों से कश्मीर की आज़ादी के मुद्दे से जुड़ाव महसूस कर रहा था. फ़ैज़ान कश्मीर में बढ़ रहे चरमपंथ और हिंसा को लेकर भी बेचैन रहता था.
डॉक्टर अब्दुल गनी के मुताबिक, ‘वो सेना की कार्रवाइयों पर अपनी राय रखता था और सवाल करता था कि कश्मीर में आम लोगों पर, बेग़ुनाह लोगों पर पेलेट चलाए जाते हैं, जिनके हाथ में बंदूक नहीं होती उन्हें भी गोली मार दी जाती है, लेकिन कोई इस मुद्दे पर बात तक नहीं करता.’
हाल के सालों में कश्मीर में हिंसा का जो दौर शुरू हुआ है, पंद्रह साल का छात्र फ़ैज़ान भी उसमें मारा गया है.
अब उसके घर से रोने की आवाज़ें आती हैं. मां उसे याद करते-करते बेसुध हो गई हैं.
भारत प्रशासित कश्मीर में सैन्यबलों की गोली में किसी आम नागरिक का मारा जाना कोई नई बात नहीं है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में चरमपंथियों के साथ मुठभेड़ों के दौरान 78 प्रदर्शनकारी सुरक्षाबलों की गोली से मारे गए.
साल 2018 में भी ये सिलसिला जारी है और अब तक दर्जनों लोग ऐसी घटनाओं में मारे जा चुके हैं.
कश्मीर में इस समय राज्यपाल का शासन है और अस्थिर राजनीतिक हालातों ने माहौल को और अशांत कर दिया है.
भारतीय सेना ने रमज़ान के महीने में एकतरफ़ा संघर्षविराम किया था जो ईद के बाद ख़त्म हो गया है. बीते पंद्रह दिनों में सेना के साथ मुठभेड़ में लगभग एक दर्जन चरमपंथी कश्मीर में मारे जा चुके हैं.
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