बुधवार को आयी आंधी व बारिश ने जहां एक ओर राहत दी, वहीं दूसरी ओर 11 लोगों की जान वज्रपात से चली गयी. हर बार कहीं न कहीं से मौत की खबर आ रही है.
पहले के समय में बरगद, पीपल आदि कई तरह के विशाल वृक्ष हुआ करते थे, जिनकी ऊंचाई इतनी रहती थी कि जब ठनका गिरता था, तो वे इसे अपने सिर पर ले लेते थे. जबकि आज की स्थिति ऐसी नहीं है. पुराने वृक्ष खत्म हो चुके हैं. ग्लोबल वार्मिंग के कारण गर्म होती पृथ्वी पर ठंडा पानी गिरने से जलीय वाष्प वज्र को चुंबक की तरह आकर्षित कर लेती है. मोबाइल, टॉवर आदि वायरलेस उपकरण भी इसमें अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे हैं.
इसलिए वज्रपात को प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि मानव के कुकृत्य का परिणाम कहा जा सकता है. इसके बचाव के लिए सरकार की तरफ से प्रभावित इलाकों में जागरूकता बढ़ानी चाहिए और बचाव का प्रयास करना चाहिए.
देवकुमार सिंह, चाईबासा