केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी 2018 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल के मुताबिक भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है, जो स्वास्थ्य के मद में सकल घरेलू उत्पादन का करीब एक फीसदी हिस्सा खर्च करते हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में 11,082 लोगों पर औसतन एक एलोपैथिक डॉक्टर की उपलब्धता है. फिलहाल देश में 10.5 लाख एलोपैथिक, 7.75 आयुष और 2.5 लाख दंत चिकित्सक हैं. यदि इस आंकड़े के ग्रामीण और शहरी तथा राज्यवार वितरण को देखें, तो व्यापक विषमता नजर आती है.
हाल ही में आयी लैंसेट की रिपोर्ट में बताया गया था कि स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता के मामले में भारत 195 देशों में 145वें पायदान पर है. संतोष की बात है कि मातृ और शिशु मृत्यु दरों में सुधार वैश्विक लक्ष्य से अधिक गति से हो रहा है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल बीमारियों तथा स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर और वित्त का एक व्यापक दस्तावेज होता है और इसी के आधार पर नीतियां बनायी और लागू की जाती हैं. गैर-संक्रामक बीमारियां 55 फीसदी असमय मौतों का कारण बनती हैं. आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या भी बड़ी चिंता का कारण हैं.
साल 2000 से 2015 के बीच इनमें 23 फीसदी की बढ़त दर्ज की गयी है. ऐसी ज्यादातर मौतें 18 से 45 साल के आयु वर्ग में होती हैं. सामाजिक और आर्थिक कारणों के साथ मानसिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञों की कमी तथा सामुदायिक स्वास्थ्य सुविधाओं में अपर्याप्त निवेश जैसे कारकों पर त्वरित ध्यान देने की आवश्यकता है.
इस साल के बजट में स्वास्थ्य बीमा पर जोर दिया गया था, जिसका सकारात्मक असर दिखना शुरू हो गया है. लेकिन, इसके साथ यह तथ्य भी सामने आया है कि इलाज के खर्च में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. बीते कुछ सालों से स्वास्थ्य के सार्वजनिक खर्च में केंद्र का हिस्सा (2017-18 को छोड़कर) घटता जा रहा है. वर्ष 2015-16 में केंद्र और राज्य के खर्च का अनुपात 31:69 था. ध्यान रहे, इलाज के खर्च के बोझ से देश में हर साल साढ़े पांच करोड़ लोग गरीबी के चंगुल में फंस जाते हैं.
इस अध्ययन के साथ मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की 11वीं समीक्षा भी जारी की है. इसमें एक परेशान करनेवाली बात यह है कि पुरुष बंध्याकरण की संख्या बहुत कम है. वर्ष 2017-18 में कुल बंध्याकरण में महिलाओं के बंध्याकरण का आंकड़ा 93 फीसदी है.
इससे हमारे समाज में व्याप्त संकुचित मानसिकता का संकेत भी मिलता है. इस दस्तावेज के लिए 16 प्रदेशों का अध्ययन किया गया है. मंत्रालय ने भरोसा दिलाया है कि 2022 तक 1.5 लाख उप-स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना का लक्ष्य पूरा करने के लिए कार्य प्रगति पर है. कुल मिलाकर ये सर्वे स्वास्थ्य सेवाओं की चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं.
उम्मीद है कि इनके तथ्यों के अनुरूप केंद्र और राज्य सरकारें सक्षमता और समुचित निवेश के साथ नीतियों को कार्यान्वित करने का प्रयास करेंगी. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं विकास और समृद्धि के लिए अनिवार्य शर्त हैं.