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‘सामवेद’ का उर्दू व अंग्रेजी में जल्द होगा अनुवाद

पटना : मुगल शासन काल में शाहजहां के पुत्र के द्वारा पुराण के फारसी अनुवाद करने पर उस वक्त उसकी हत्या कर दी गयी थी. आज वर्तमान में मंदार क्षेत्र से बॉलीवुड की दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाले इकबाल दुर्रानी सामवेद का उर्दू और अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे हैं. इसकी जानकारी फिल्म डायरेक्टर […]

पटना : मुगल शासन काल में शाहजहां के पुत्र के द्वारा पुराण के फारसी अनुवाद करने पर उस वक्त उसकी हत्या कर दी गयी थी. आज वर्तमान में मंदार क्षेत्र से बॉलीवुड की दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाले इकबाल दुर्रानी सामवेद का उर्दू और अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे हैं. इसकी जानकारी फिल्म डायरेक्टर इकबाल दुर्रानी ने मंगलवार को अपने पैतृक गांव बलुआतरी में प्रेसवार्ता के दौरान कही.

उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि उस वक्त ऐसा करने पर एक अल्पसंख्यक की गर्दन काट दी गयी थी. जबकि आज उन्हें इसके लिए जगह-जगह सम्मान और फूलों का हार दिया जा रहा है. संगीत की ओर झुकाव के बारे में उन्होंने बताया कि साठ के दशक में उनके दादा जी शेख महमूद मोकामा के सीसीएमई हाई स्कूल में संस्कृत पढ़ा करते थे. उस वक्त वहां जाने पर हर कोई उन्हें पंडित का पोता समझता था. आज उन्हीं की प्रेरणा से सामवेद का उर्दू और अंग्रेजी में अनुवाद कर पा रहा हूं. उन्होंने कहा कि अगले माह से सामवेद की टाइपिंग आरंभ हो जायेगी. इसका संपादन और प्रकाशन वह खुद करेंगे और इसे प्रमोट करने के लिए बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों व अन्य लोगों से मिला भी जायेगा. सामवेद मेरे लिए एक महबूब की तरह है और अपने इस महबूब को खुद ही सजाना और सवारना है.

यह एक ऐसी चीज है जो दुनिया को प्रेम की भाषा सिखाती है. आज धर्म के नाम पर लोग बेवजह लड़ते हैं, इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हम दूसरे धर्म के बारे में नहीं जानते हैं और नफरत करने लग जाते हैं. लोगों को दूसरे धर्म के बारे में भी जानकारी रखनी चाहिए. मंदार को अपना आदर्श मानने वाले इकबाल खुद को मंदार पुत्र भी कहते हैं. उन्होंने कहा कि मंदार की प्रेरणा से ही उनका झुकाव धर्म और अध्यात्म की ओर हुआ है. फिल्म डायरेक्टर के साथ-साथ लेखक और एक अच्छे कवि के रूप में भी इन्होंने अपनी पहचान बनायी है.

कालचक्र फिल्म से अपनी पहचान बनाने वाले इकबाल ने बॉलीवुड की दुनिया में भी एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्में दी है. 1991 में फूल और कांटे बनाने के बाद अब पुनः अपने पुत्र मसाल दुर्रानी को लेकर फूल और कांटे 2 बनाने की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस फिल्म के रिलीज होने से पहले बाबाजानी फिल्म रिलीज होगी. पैतृक गांव आने के साथ ही इनके घर पर प्रतिदिन बच्चों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है बच्चों से इन्हें विशेष लगाव है. अपने गांव से गहरा लगाव रखने वाले इकबाल दुर्रानी का कहना है कि मेरी मिट्टी ही मेरी पहचान है.

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