आनंद तिवारी
एक्सपायरी दवाएं बेच कर जान के साथ खिलवाड़
पटना : शहर में करीब एक साल के दरम्यान नकली रैपर लगा कर 210 टन से अधिक एक्सपायरी दवाएं बेच दी जाती हैं. नकली रैपर नामी कंपनियों के होते हैं. इन रैपरों में इन दवाआें को पूरी तरह सही बताया जाता है.
आगामी एक्सपायरी डेट भी दी जाती है. औषधि विभाग ने एक विशेष सर्वे के जरिये एक्सपायरी दवा कारोबार से जुड़ी यह जानकारी जुटायी है. हाल ही में शहर की कई दवा दुकानों पर छापेमारी की गयी थी, जिनमें एक्सपायरी दवाएं मिलने का खुलासा हुआ है. शहर में कई दवा विक्रेता खुलेआम एक्सपायरी व नकली दवाएं बेच रहे हैं.
इन्हें रोकने-टोकने वाला कोई नहीं है. ये दवाएं खुले बाजार में काफी बड़ी मात्रा में खप रही हैं. दवाओं के धंधे से जुड़े सूत्रों का दावा है कि अकेले पटना में रोजाना 10 से 12 लाख रुपये की नकली या एक्सपायरी दवाएं आराम से खपा दी जाती हैं. अधिकांश केमिस्ट अपने यहां नकली और असली, दोनों तरह की दवाएं रखते हैं, जिन्हें पहचानना पढ़े-लिखे ग्राहक के वश की बात नहीं होती. इस तरह का खुलासा औषधि विभाग की छापेमारी में भी हो चुका है.
पटना में खपा दी गयीं 210 टन एक्सपायरी दवाएं : दवा माफिया थोक दवा दुकानदार व दवाओं को नष्ट करने वाली कंपनियों से मिल कर इस गोरखधंधे को अंजाम देते हैं.
ऑपरेशन ड्रग माफिया के तहत चल रहे अभियान में पिछले एक साल में 14 ट्रक यानी करीब 210 टन एक्सपायरी व नकली दवाएं बेचे जाने का खुलासा औषधि विभाग ने किया है. विभाग ने छह जून को सगुना मोड़ स्थित मुस्तफा नगर में सेंट्रल फॉर पॉल्यूशन कंट्रोल नाम से संचालित हो रही एक फ्रेंचाइजी कंपनी के ठिकाने पर छापेमारी की तो मामला पकड़ में आया.
पूछताछ के दौरान पता चला कि एक्सपायरी दवाओं को नष्ट करने के नाम से संचालित सीपीपी फ्रेंचाइजी दवाओं को नष्ट करने के बजाय कबाड़ की दुकानों पर बेच रही थी, जहां से दवा माफिया किलो के भाव से दवाओं को खरीदते थे और नकली रैपर लगाकर बाजार में बेच रहे थे. औषधि विभाग का दावा है कि मार्केट में और भी एक्सपायरी दवाएं पहुंची हैं.
दवाओं के सैंपल की नहीं आती है रिपोर्ट
सूत्रों की मानें, तो केमिस्ट की दुकान से जांच के लिए दवाओं के जो सैंपल लेकर जाते हैं, वह बाद में रिश्वत देकर बदल दिये जाते हैं. इसमें कुछ ड्रग इंस्पेक्टरों को छोड़ बाकी मिले रहते हैं. नकली दवा के रैकेट को चलाने के लिए कई तरीके ढूंढ़ लिये गये हैं. गंभीर बात तो यह है कि दवाओं के जो सैंपल टेस्ट की खातिर लिये जाते हैं, उनकी रिपोर्ट भी नहीं आती है. सूत्रों की मानें, तो जिस दुकान से मिलीभगत होती है, उनकी दवाएं परीक्षण के लिए आगे भेजी ही नहीं जाती हैं.
बेफिक्र हैं दवा माफिया
सैंपल को टेस्ट के लिए पटना या कोलकाता लैब तब भेजा जाता है, जब उनकी एक्सपायरी डेट खत्म होने के कगार पर होती है, उसके बाद भी ये सैंपल वहां टेस्ट नहीं होने दिये जाते, जान बूझ कर उनकी बारी आने में देरी की जाती है.
जब तक उनका टेस्ट किया जाता है, तब तक उनकी एक्सपायरी डेट खत्म हो चुकी होती है और मामला खत्म कर दिया जाता है. किसी तरह जिन नमूनों के परीक्षण हो भी जाते हैं, उनकी रिपोर्ट आने में तीन साल का वक्त लग जाता है. इसलिए नकली दवा विक्रेता बेफिक्र रहते हैं.
ऑपरेशन दवा माफिया के तहत अब तक 14 ट्रक एक्सपायरी दवाएं पकड़ी जा चुकी हैं. साथ ही सात से अधिक माफियाओं पर कार्रवाई की गयी है. इनमें कुछ जेल भी गये हैं. दवाएं एक्सपायर हो जाने के बाद उन्हें नष्ट नहीं किया जाता है बल्कि कबाड़ में बेच दिया जाता है, जहां से नकली रैपर लगा कर उन्हें मार्केट में बेचा जाता है.