7.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पीने वालों से अधिक बेचने-बेचवाने वालों पर कड़ी नजर रखे शासन

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कठोर शराबबंदी कानून में कुछ संशोधन का कल संकेत दिया है. याद रहे कि दो नवंबर 2016 को भी मुख्यमंत्री ने कहा था कि इस कानून को कुछ लोग तालीबानी कानून तो जरूर कहते हैं, पर मांगने पर भी वे इसमें ऐसे किसी संशोधन के लिए कोई […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कठोर शराबबंदी कानून में कुछ संशोधन का कल संकेत दिया है. याद रहे कि दो नवंबर 2016 को भी मुख्यमंत्री ने कहा था कि इस कानून को कुछ लोग तालीबानी कानून तो जरूर कहते हैं, पर मांगने पर भी वे इसमें ऐसे किसी संशोधन के लिए कोई सुझाव नहीं देते, ताकि इसे कारगर भी बनाये रखा जाये और इससे किसी को नाहक परेशान भी नहीं होना पड़े.
दरअसल, अब ऐसे किसी संशोधन से पहले राज्य सरकार को इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार है. उससे पहले इस कानून के क्रियान्वयन में आ रही समस्याओं को लेकर राज्य सरकार खुद भी विचार-मंथन करती रही है.
किसी भी अच्छी मंशा वाली सरकार को ऐसा करना ही चाहिए. शराबबंदी अच्छी मंशा से उठाया गया एक सही कदम है. इसके लाभ अधिक हैं.
इस कानून का कुछ लोगों द्वारा दुरुपयोग भी हो रहा है. पर, इससे पीछे नहीं जाया जा सकता है. स्वाभाविक ही है कि कुछ भ्रष्ट अधिकारी व कर्मचारी ऐसे कठोर कानून का स्वार्थवश दुरुपयोग करें. अनुभवों से सीख कर राज्य सरकार उस कानून में संशोधन करना चाहती है तो उसका स्वागत होना चाहिए. कुछ संशोधनों से इस कानून का सार्थकता बढ़ सकती है. पहला काम तो यह होना चाहिए कि यह कानून शराब विक्रेताओं की ओर अपेक्षाकृत अधिक मुखातिब हो.
फिर शासन के उन लोगों की ओर जो लोग विक्रेताओं की मदद कर रहे हैं. शराबियों पर भी कार्रवाई हो, पर अधिक ध्यान उन दो लोगों पर रहे. वैसे भी यदि शराब को दुर्लभ वस्तु बना दिया जाये तो वह शराबियों तक कितनी पहुंच पायेगी? यह आम चर्चा है कि शराबबंदी के बाद अनेक पुलिसकर्मियों की आय बढ़ गयी है.
शराबबंदी हुई थी तो कुछ बातों का ध्यान नहीं रखा गया
एक खबर के अनुसार गुजरात में दवा के नाम पर 61 हजार
लोगों को शराब पीने का परमिट मिला हुआ है. बाहर से गुजरात जाने वालों को भी अस्थायी परमिट मिलता है. पर ऐसे परमिट की कुछ शर्तें हैं.
डाॅक्टर का प्रमाणपत्र चाहिए, जिसमें यह लिखा होता है कि इसकी शारीरिक-दिमागी हालत ऐसी है कि इनके लिए शराब पीना जरूरी है. सन 1977 में देश में शराबबंदी लागू हुई थी.
उस समय बिहार में भी हमने देखा था कि डाॅक्टरों की सिफारिश पर शासन परमिट जारी करता था. बिहार में 2016 में जब शराबबंदी लागू की गयी तो इन बातों का ध्यान नहीं रखा गया. यहां तक कि दवा के नाम पर भी कोई छूट नहीं रही जैसी मोरारजी-कर्पूरी ठाकुर के शासनकाल में भी थी. शराबबंदी के निर्णय को उलटना तो और भी नुकसानदेह होगा.
कुछ राहत देकर बनाया जा सकता है रास्ता
हालांकि, बहुत से लोग यही चाहते हैं. पर विभिन्न पक्षों के लोगों को कुछ राहत देकर इसे आसानी से लागू करने का रास्ता बनाया जा सकता है. अभी तो जो खबरें आ रही हैं, उनके अनुसार बिहार में शराबबंदी है भी और नहीं भी है. हां, पियक्कड़ों ने सड़कों पर हंगामा काफी कम कर दिया है.
पहले तो बरात जुलूस, सरस्वती विसर्जन, दुर्गा पूजा आदि अवसरों पर सड़कों पर निकलना कठिन था. हां, इस कानून से ऐसे लोगों को राहत देने की सख्त जरूरत है जिनके पास जमानत देकर छूटने का साधन तक नहीं. हां, आदतन शराबियोंं को, जो यदाकदा शराब पीकर सार्वजनिक स्थानों पर हंगामा करते हैं, परिजन को प्रताड़ित करते हैं, सजा स्वरूप कुछ सरकारी सुविधाओं से वंचित करने के बारे में विचार किया जा सकता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें