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भारत की लाचार अर्थनीति

देश को आजाद हुए 70 साल हो गये, लेकिन नहीं बदली तो इसकी अर्थनीति. यह हमेशा विदेशों की मोहताज रही. यह विदेशियों के डोर से कठपुतलियों की तरह बंधी है. भारत की भोली-भाली जनता ने हमेशा अपने देश के उन लोगों पर भरोसा किया है, जिन्होंने विदेशों में वित्त की शिक्षा पायी, लेकिन सच्चाई सबके […]

देश को आजाद हुए 70 साल हो गये, लेकिन नहीं बदली तो इसकी अर्थनीति. यह हमेशा विदेशों की मोहताज रही. यह विदेशियों के डोर से कठपुतलियों की तरह बंधी है.
भारत की भोली-भाली जनता ने हमेशा अपने देश के उन लोगों पर भरोसा किया है, जिन्होंने विदेशों में वित्त की शिक्षा पायी, लेकिन सच्चाई सबके सामने है. भारत की अर्थव्यवस्था दीमक लगे हरे भरे खोखले पेड़ की तरह है, जो हवा के किसी भी झोंके से गिर सकता है. विदेशी वित्त संस्थान और बैंक के प्रभाव के कारण भारत की अर्थव्यवस्था क्षीण हो रही है.
भारत की आर्थिक नीति व्यवस्था नहीं, दुर्व्यवस्था का हिस्सा है. हम सब कुछ जानते हुए भी चुप रहते हैं. क्यों? क्या हम अपने पड़ोसी देशों की गिरती अर्थव्यवस्था को देखते कर सीख नहीं सकते? अपने पास असीम संभावनाएं है, सिर्फ इसे पहचानने की जरूरत है.
नयन तिवारी, गोड्डा

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