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शिक्षा या भिक्षा का पात्र

शिक्षा मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा और मकान के बाद सबसे प्रमुख है. शास्त्रों में कहा गया है- शिक्षा बिना न शोभन्ते निर्गन्धा: इव किंशुका: अर्थात अनपढ़ मनुष्य सुगंधहीन किंशुक फूल के समान होता है. आज लोग साक्षर तो हो रहे हैं, मैट्रिक, इंटर, स्नातक तथा अन्य ऊंची डिग्रियां प्राप्त कर लें रहे हैं, […]

शिक्षा मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा और मकान के बाद सबसे प्रमुख है. शास्त्रों में कहा गया है- शिक्षा बिना न शोभन्ते निर्गन्धा: इव किंशुका: अर्थात अनपढ़ मनुष्य सुगंधहीन किंशुक फूल के समान होता है.
आज लोग साक्षर तो हो रहे हैं, मैट्रिक, इंटर, स्नातक तथा अन्य ऊंची डिग्रियां प्राप्त कर लें रहे हैं, परंतु यह शिक्षा रोजगारोन्मुखी न होकर साक्षरता प्रतिशत बढ़ाने का एक माध्यम बन गयी है.
आज की शिक्षा प्रणाली खासकर झारखंड की, काफी दोषपूर्ण है. मैट्रिक एवं इंटर का परिणाम बेहतर हो, सरकार का नाम हो, इसके लिए सिलेबस को छोटा किया जा रहा है. प्रैक्टिकल के अंकों को प्रत्येक विषय में जोड़कर रिजल्ट बेहतर करने का एक तरीका अपनाया जा रहा है.
आज ज्ञान के लिए नहीं, परीक्षा पास करने के लिए विद्यार्थियों को पढ़ाया जा रहा है. स्कूली एवं माध्यमिक शिक्षा में टेक्नोलॉजी के समावेशन की लंबी-लंबी डींगे हांकी जाती हैं, परंतु विद्यालयों में कंप्यूटर शिक्षक तक बहाल नहीं हैं. सिर्फ डिग्रियां एवं सर्टिफिकेट्स बांट देने से शिक्षा एवं नौजवानों का कतई भला नहीं हो सकता.
प्रो भावेश कुमार, साईं नाथ यूनिवर्सिटी, रांची

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