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FILM REVIEW: फिर चूके हर्षवर्द्धन कपूर, ”भावेश जोशी” की कहानी बेअसर

उर्मिला कोरी फ़िल्म: भावेश जोशी सुपरहीरो निर्माता: फैंटम फिल्म्स निर्देशक: विक्रमादित्य मोटवाने कलाकार: हर्षवर्द्धन कपूर, प्रियांशु, आशीष वर्मा, निशिकांत कामत रेटिंग: दो हमारे आसपास के अन्याय और भ्रष्टाचार से हमें बचाने के लिए कोई सुपरहीरो नहीं आएगा बल्कि हमें खुद को सुपरहीरो बनाना पड़ेगा. सुपरहीरो पैदा नहीं होते हैं बल्कि बनते हैं. विक्रमादित्य मोटवानी की […]

उर्मिला कोरी

फ़िल्म: भावेश जोशी सुपरहीरो

निर्माता: फैंटम फिल्म्स

निर्देशक: विक्रमादित्य मोटवाने

कलाकार: हर्षवर्द्धन कपूर, प्रियांशु, आशीष वर्मा, निशिकांत कामत

रेटिंग: दो

हमारे आसपास के अन्याय और भ्रष्टाचार से हमें बचाने के लिए कोई सुपरहीरो नहीं आएगा बल्कि हमें खुद को सुपरहीरो बनाना पड़ेगा. सुपरहीरो पैदा नहीं होते हैं बल्कि बनते हैं. विक्रमादित्य मोटवानी की फ़िल्म ‘भावेश जोशी सुपरहीरो’ का सार यही है. अन्ना आंदोलन से कहानी की शुरुआत होती है. मुम्बई के तीन दोस्त भावेश जोशी (प्रियांशु), सिक्कू (हर्षवर्द्धन कपूर) और आशीष भी इस भ्र्ष्टाचार के आंदोलन में शामिल होते हैं.

आंदोलन दम तोड़ देता है लेकिन भावेश और सिक्कू के हौंसले नहीं वह एक यूट्यूब चैनल बनाते हैं द इंसाफ शो. जिसमें वह पेड़ों की कटाई, वाई फाई की चोरी और ट्रैफिक के नियमों को तोड़ते लोगों को सबक सीखाते हैं.

सिक्कू थोड़े वक़्त के बाद अपने कैरियर में मशरूफ हो जाता है. वह अब अमेरिका जाने वाला है लेकिन भावेश अभी भी इंसाफ के लिए लड़ रहा है. कल तक छोटी मोटी गलतियों को अपने इंसाफ शो में दिखाने वाले भावेश का सामना अब राजनीति और पुलिस में बैठे भ्रष्ट लोगों से होता है.

पानी के एक बड़े स्कैम के बारे में उसे मालूम पड़ता है. उसकी कीमत उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है लेकिन भ्रस्टाचार के खिलाफ लड़ाई खत्म नहीं होती है सिक्कू भावेश जोशी सुपरहीरो बन उनके खिलाफ लोहा लेता है क्या वो कामयाब होता है ये आगे की कहानी में है.

फ़िल्म के पीछे की सोच नेक है लेकिन एक अच्छी फिल्म नेक सोच से नहीं बल्कि सशक्त कहानी से बनती है और ये फ़िल्म इसमें पूरी तरह से चूक गयी है. जिस वजह से कहानी से कनेक्शन नहीं बन पाता है. फ़िल्म की कहानी ज़रूरत से ज़्यादा लंबी खिंच गयी है. 20 से 25 मिनट की एडिटिंग फ़िल्म की ज़रूरत थी. फ़िल्म देखते हुए यह आपको उंगली, गब्बर इज बैक जैसी फिल्मों की याद दिलाती है.

सिनेमैटिक लिबर्टीज के तहत बहुत सारी लिबर्टी ले ली गयी है. पुलिस और गुंडे मिलकर एक आदमी को मुम्बई की सड़कों से लेकर रेलवे स्टेशन में दौड़ा रहे हैं लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. मौजूदा दौर में जब सबके पास कैमरा है ऐसे में आम आदमी और मीडिया सब चुप हैं.

हर्षवर्धन का किरदार इंजीनियर है लेकिन साथ में ऑटोमोबाइल एक्सपर्ट से लेकर आईटी हैकर की भी खूबी उसके पास है. फ़िल्म में सिक्कू के किरदार की भावेश जोशी सुपरहीरो बनने की ट्रेनिंग ज़रूरत से ज़्यादा बार दर्शायी गयी है जिससे एक वक्त के बाद बोरियत होती है.

अभिनय की बात करें तो अनिल कपूर के बेटे हर्षवर्द्धन कपूर इस बार भी चूक गए हैं. वह निराश करते हैं. उन्हें खुद पर काम करने की ज़रूरत है. हां प्रियांशु अच्छे रहे हैं. फ़िल्म में उनका अभिनय ही अच्छा बन पड़ा है. आशीष वर्मा को करने लिए कुछ खास नहीं था. निशिकांत कामत का किरदार भी कमज़ोर है. फ़िल्म का गीत संगीत और संवाद कुछ खास नहीं है हां बैकग्राउंड म्यूजिक ज़रूर प्रभावी है. कुलमिलाकर यह सुपरहीरो पूरी तरह निराश करता है.

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