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हाॅस्टल फीस देने के बावजूद किराये के मकानों में रहने को मेडिकल छात्र मजबूर
गया : मेडिकल काॅलेज प्रशासन की ओर से हर एक समस्या को जल्द ठीक किये जाने से संबंधित आश्वासन से तंग आकर छात्र सोमवार को प्रमंडलीय आयुक्त जितेंद्र श्रीवास्तव के पास पहुंचे, लेकिन यहां भी छात्रों को निराशा ही हाथ लगी. मेडिकल के छात्रों के मुताबिक सुरक्षा, बिजली-पानी जैसे मुद्दे पर आयुक्त ने जल्द सुधार […]
गया : मेडिकल काॅलेज प्रशासन की ओर से हर एक समस्या को जल्द ठीक किये जाने से संबंधित आश्वासन से तंग आकर छात्र सोमवार को प्रमंडलीय आयुक्त जितेंद्र श्रीवास्तव के पास पहुंचे, लेकिन यहां भी छात्रों को निराशा ही हाथ लगी. मेडिकल के छात्रों के मुताबिक सुरक्षा, बिजली-पानी जैसे मुद्दे पर आयुक्त ने जल्द सुधार करा देने का आश्वासन दिया लेकिन हाॅस्टल के मामले पर मैनेज करने की नसीहत दी. छात्रों से कहा गया कि कुछ चीजों में समझौता करना पड़ता है.
मगध मेडिकल काॅलेज में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र बीते नौ महीने से कैंपस के बाहर किराये के मकानों में रह रहे हैं जबकि इन लोगों से काॅलेज प्रशासन ने नामांकन के वक्त ही हाॅस्टल चार्ज वसूला लिया गया है.बावजूद इसके उन्हें कैंपस में रहने के लिए अबतक जगह मुहैया नहीं करायी गयी है. प्रथम वर्ष के लगभग 54 छात्र शहर के किसी न किसी मुहल्ले में तीन- पांच हजार रुपये किराया दे कर रह रहे हैं. यह उन पर अतिरिक्त बोझ ही है. अब मुश्किल यह है कि उनकी इस समस्या का कोई समाधान करने को तैयार नहीं है.
समझौता ही करना है, तो शुल्क क्यों : छात्रों ने कहा कि प्राचार्य भी वही कहते हैं और अब आयुक्त भी वही राग अलाप रहे हैं. सवाल यह है कि जब समझौता करना ही है और किराये के मकानों में ही रहना है तो छात्रावास के नाम पर काॅलेज प्रबंधन फी क्यों लेता है. इसे छोड़ देना चाहिए. काॅलेज को इसे पहले ही स्पष्ट कर देने चाहिए था कि रहने की कोई व्यवस्था नहीं हो सकेगी. छात्रों ने कहा कि नामांकन लेने के बाद वह लोग महीनों शहर में कमरे भटकते रहे. मेडिकल काॅलेज के आस-पास ही रहना उनकी मजबूरी भी है. दूर रहेंगे तो आने-जाने की समस्या होगी.
हाॅस्टल पर है कुछ लड़कों का कब्जा
सूत्रों की मानें तो कैंपस के छात्रावासों पर कुछ विद्यार्थियों का कब्जा है. कब्जा करनेवाले छात्र यहां रह कर इंटर्नशिप कर रहे थे. इसके बाद बिना कमरा खाली किये ही चले गये. इसमें एक दूसरा पक्ष यह भी है कि यहां के छात्रावास में वर्चस्व की भी लड़ाई है. सूत्रों की मानें, तो यहां सीधा हिसाब है कि जिसकी संख्या जितनी उसे उतनी सुविधा. अब इस स्थिति में तो अराजकता होनी ही है.
संख्या का भी है मामला
मेडिकल काॅलेज का जो इन्फ्रास्ट्रक्चर है वह 50 छात्रों का है. शुरू से ही यह व्यवस्था रही और अब भी वही है. वक्त के साथ यहां एमबीबीएस की सीटें 50 से बढ़ कर 100 हो गयी. लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर में कोई बदलाव नहीं हो सका. छात्र जब आयुक्त से भी मिलने गये तो वहां भी इस विषय पर बात हुई. आयुक्त ने भी कहा कि मेडिकल काॅलेज को कैपिसिटी के मुताबिक ही नामांकन की अनुमति मिलनी चाहिए. प्राचार्य ने भी अपनी बातों में इसका उल्लेख किया है.
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