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उदाहरण बना बिहार का ये सरकारी स्कूल, जहां कॉन्वेंट छोड़कर पढ़ने आते हैं बच्चे
प्रभात किरण हिमांशु छपरा : एक ओर जहां निजी स्कूलों में एडमिशन के लिए मारामारी होती है और हर अभिभावक अपने बच्चे को काॅन्वेंट में ही पढ़ाना चाहता है. लेकिन इसके विपरीत छपरा में एक सरकारी स्कूल ऐसा भी है, जो कॉन्वेंट को मात दे रहा है. यही कारण है कि कई निजी स्कूलों के […]
प्रभात किरण हिमांशु
छपरा : एक ओर जहां निजी स्कूलों में एडमिशन के लिए मारामारी होती है और हर अभिभावक अपने बच्चे को काॅन्वेंट में ही पढ़ाना चाहता है. लेकिन इसके विपरीत छपरा में एक सरकारी स्कूल ऐसा भी है, जो कॉन्वेंट को मात दे रहा है. यही कारण है कि कई निजी स्कूलों के बच्चे सरकारी स्कूल का रुख कर रहे हैं. विभागीय अधिकारी भी इससे उत्साहित हैं.
साथ ही वे अन्य सरकारी स्कूलों के लिए भी इसे उदाहरण बता रहे हैं. बात हो रही है सारण जिले के सदर प्रखंड स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय, माला पूर्वी की. यह स्कूल बिहार में शिक्षा की उस बदलती तस्वीर को बयां कर रहा है, जहां पर छात्र नयी तकनीक और उन्नत संसाधनों का लाभ उठा रहे हैं. यहां ब्लैक बोर्ड के साथ बच्चे प्रोजेक्टर से भी पढ़ाई करते हैं. यही नहीं, स्कूल की मॉनीटरिंग के लिए सभी वर्गों में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. यहां के बच्चों को पेयजल और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं से जूझना नहीं पड़ता. यहां बच्चे नल का जल पीते हैं.
वर्ष 2009 में प्राथमिक से मध्य विद्यालय में अपग्रेड हुआ यह स्कूल पिछले दो-तीन वर्षों में बुनियादी रूप से इतना सक्षम हो गया कि प्राइवेट स्कूलों में महंगी फीस देकर पढ़ने वाले बच्चे अब यहां नामांकन करा रहे हैं. इस स्कूल में इस वर्ष लगभग 40 ऐसे बच्चों ने दाखिल लिया, जो कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ा करते थे.
नियमित वर्ग संचालन, शिक्षकों की नियमित उपस्थिति, आधुनिक तकनीक से बच्चों की पढ़ाई आदि कई समानांतर व्यवस्थाओं ने सरकारी स्कूल के प्रति लोगों में बन रही विपरीत अवधारणा को बदला दिया है, जिससे अभिभावक बड़े सम्मान से अपने बच्चों को यहां पढ़ने भेजते हैं.
स्कूल के प्रभारी प्राचार्य अरविंद कुमार यादव बताते हैं कि स्कूल में बेहतर शिक्षा के माहौल होने से वर्तमान में स्कूल में कक्षा एक से आठ तक 600 बच्चे नामांकित हैं और नियमित उपस्थिति का आंकड़ा 95% के आसपास है. कुल 11 शिक्षक मिलकर बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हैं. स्कूल के सभी कमरों में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं. सदर प्रखंड का यह पहला स्कूल है, जहां प्रोजेक्टर से पढ़ाई होती है.
छात्राओं के लिए इस स्कूल में कॉमन रूम है. हर कमरे में पंखे लगे हुए हैं. शिक्षकों के लिए अलग शौचालय है, जबकि छात्र व छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय की व्यवस्था है. स्कूल परिसर में बोरिंग है और हर जगह पाइपलाइन से जलापूर्ति की जाती है. स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता है. इस स्कूल में हर 15 दिनों पर अभिभावकों के साथ मीटिंग कर व्यवस्थाओं को और बेहतर बनाये जाने पर विचार मांगा जाता है.
ग्रामीणों का मिलता है भरपूर सहयोग
विद्यालय के व्यवस्थित संचालन में आसपास के ग्रामीणों का पूरा सहयोग मिलता है. जब से स्कूल में व्यवस्था बदली है, अभिभावक भी जागरूक हुए हैं. पठन-पाठन को सुचारु बनाने में यदि कोई समस्या आती है तो पूरा गांव मिलकर समाधान निकाल लेता है. स्कूल में व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए कुछ ग्रामीणों ने अर्थदान भी किया है.
माला पूर्वी एक बड़ा गांव है. यहां बड़े किसान, डॉक्टर, इंजीनियर, व्यवसायी समेत हर वर्ग के लोग रहते हैं. इन परिवारों के बच्चे भी आज बड़े सम्मान से इस सरकारी स्कूल में पढ़ने आते हैं.
कॉन्वेंट छोड़कर यहां नामांकन कराने वाली अनामिका कुमारी ने कहा कि मैं पहले कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ती थी.कुछ लोगों ने स्कूल की व्यवस्थाओं के बारे में बताया और अभिभावकों ने यहां दाखिल कराया दिया. यहां की पढ़ाई किसी कॉन्वेंट स्कूल से कम नहीं है. वहीं रिचा कुमारी ने कहा कि सप्ताह में दो दिन हमें प्रोजेक्टर से पढ़ाया जाता है. स्कूल में हर जरूरी सुविधा उपलब्ध है. मन अब पढ़ने में लग गया है.
ऐसी ही छात्रा आयुषी ने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं सरकारी स्कूल में पढ़ती हूं. हर विषय को अच्छी तरह समझाया जाता है. यदि दो दिन स्कूल नहीं आती हूं तो सर घर पर फोन कर जानकारी लेते हैं.रिया कुमारी कहती है कि यहा सभी कमरों में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. पहले जिस प्राइवेट स्कूल में पढ़ती थी, वहां भी ऐसी व्यवस्था नहीं थी. इस साल मेरे क्लास में 15 लड़कियाें ने निजी स्कूल छोड़कर यहां दाखिला लिया है.
क्या कहते हैं जिला शिक्षा पदाधिकारी
मैं जब भी इस स्कूल में आता हूं, गर्व की अनुभूति होती है. यह स्कूल जिले के सभी सरकारी स्कूलों के लिए एक उदाहरण है. यदि मन में इच्छा शक्ति हो तो बदलाव संभव है.
राजकिशोर सिंह , डीईओ, सारण
ये सुविधाएं उत्क्रमित मध्य विद्यालय माला पूर्वी स्कूल को बनाती हैं खास
प्रोजेक्टर से पढ़ाया जाता है बच्चों को
सभी कमरों में लगे हैं सीसीटीवी कैमरे
शिक्षक, छात्र और छात्राओं के लिए हैं अलग-अलग शौचालय
पाइपलाइन से पेयजल आपूर्ति
हर 15 दिन पर अभिभावकों के साथ होती है बैठक
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