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गंगा, गंडक और कोसी के दियारे चमगादड़ के पनाहगार

राजदेव पांडेय पटना : बिहार क्लाइमेट चेंजिंग से सबसे ज्यादा प्रभावित जोन है. चूंकि निपाह वायरस क्लाइमेट चेंजिंग (जलवायुविक उठापटक) से उत्पन्न हुआ है. इसलिए बिहार के लिए निपाह वायरस का खतरा दूर की बात नहीं है. निपाह के सबसे सुरक्षित वाहक माने जा रहे चमगादड़ों की संख्या अपेक्षाकृत दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार […]

राजदेव पांडेय
पटना : बिहार क्लाइमेट चेंजिंग से सबसे ज्यादा प्रभावित जोन है. चूंकि निपाह वायरस क्लाइमेट चेंजिंग (जलवायुविक उठापटक) से उत्पन्न हुआ है. इसलिए बिहार के लिए निपाह वायरस का खतरा दूर की बात नहीं है. निपाह के सबसे सुरक्षित वाहक माने जा रहे चमगादड़ों की संख्या अपेक्षाकृत दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार में कुछ ज्यादा ही है.
गंगा, गंडक और कोसी के दियारे खास हैं. बाढ़ के विनाश के चलते ये इलाके बेहद सुनसान हैं. ऐसी जगहों पर चमगादड़ आसानी से अपना बसेरा बना लेते हैं. दरअसल चमगादड़ निपाह वायरस के लिए सबसे उपयुक्त कैरियर है. इसकी दो खास वजहें हैं. पहला कि यह वायरस किसी भी जीव के साथ रात में सबसे ज्यादा सक्रिय रहता है. जाहिर है चमगादड़ उसका सुरक्षित और उपयुक्त कैरियर है. दूसरा, चमगादड़ों के पंख इस वायरस के रहने के लिए सुरक्षित स्थान हैं. इन्हीं सब वजहों से बिहार पर भी इसका खतरा मंडरा रहा है.
तेज गर्मी को भी झेल सकता है
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस वायरस में गर्म मौसम को झेलने की जबर्दस्त सहन शक्ति होती है. इसलिए आगामी एक दो माह वायरस के माइग्रेशन के लिए उपयुक्त समय होगा़ जानकारों के मुताबिक अत्यधिक तापमान या ऊष्णता के चलते म्यूटा जीन्स अचानक बढ़ जाते हैं. गर्मी में इस वायरस में प्रगुणन यानी इसकी संख्या में असीमित विस्तार होता है.
निपाह वायरस का क्लाइमेट चेंजिग से सीधा संबंध है. चमगादड़ इस वायरस के नेचर के हिसाब से उपयुक्त साबित हो रहा है.
डाॅ जेबी चांद, जूलॉजी एक्सपर्ट

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