सिर पर छत होना बुनियादी जरूरत भी है और हर परिवार का सपना भी. मध्य और निम्न आयवर्ग के लोग घर खरीदने के लिए अपनी जमा-पूंजी के साथ मासिक आय का बड़ा हिस्सा भी निवेशित करते हैं. उन्हें बैंकों से कर्ज लेने में भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. लेकिन, आवासीय कॉलोनियां बनानेवाली कंपनियां अक्सर ही आवंटन में देरी कर देती हैं या फिर परियोजनाएं अधर में लटक जाती हैं.
ऐसे अनेक मामले हैं, जिनमें लोगों को न तो घर मिल रहा है और न ही उनकी पूंजी वापस हो पा रही है. इस मुश्किल से निजात दिलाने के लिए केंद्रीय कैबिनेट ने अहम फैसला लिया है. इसके तहत 2016 के दिवालिया कानून में संशोधन कर आवास निर्माताओं के दिवालिया होने की स्थिति में संपत्ति बेचकर ग्राहकों की भरपाई की व्यवस्था होगी. मौजूदा कानून में बैंकों और संस्थागत निवेशकों को यह अधिकार था, पर अब सामान्य ग्राहक भी उनके बराबर अधिकारसंपन्न हो जायेंगे. इस संशोधन से दिवालिया कानून और रियल इस्टेट में नियमन के कानून के बीच विरोधाभास भी समाप्त हो जायेगा. इस संशोधन से देश के लाखों ऐसे ग्राहकों को फायदा मिलने की उम्मीद है, जिनके पैसे बिल्डरों की कारगुजारियों के कारण फंसे पड़े थे.
एक आकलन के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ही करीब तीन लाख लोगों को राहत मिलेगी. ग्राहकों को बड़े निवेशकों के बराबर रखने के साथ ही दिवालिया कंपनी के खरीद-बिक्री की प्रक्रियाओं को भी सरल बनाया गया है, ताकि जल्दी फैसले लिये जा सकें. ऐसे में लंबित परियोजनाओं के पूरा होने की संभावना भी बढ़ जायेगी. शहरीकरण में तेजी से आवास की जरूरत भी बढ़ती जा रही है.
दस लाख से अधिक आबादी के शहरों में करीब 40 फीसदी परिवार झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं. सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद दो लाख से अधिक अपार्टमेंट खाली पड़े हैं. देश में 30 लाख लोग फुटपाथ पर गुजर करते हैं. साल 2011 में सरकारी आकलन था कि 1.87 करोड़ घरों की जरूरत है, पर पिछले साल इसमें संशोधन किया गया था और अब यह आंकड़ा एक करोड़ के आसपास है.
केंद्र सरकार विभिन्न योजनाओं के जरिये 2022 तक हर जरूरतमंद को आवास मुहैया कराने के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम पर काम कर रही है. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अन्य पहलों के साथ सरकार सस्ते आवास के लिए अपनी अधिशेष भूमि उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयास कर रही है. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत खरीदारों को अनुदान भी दिया जा रहा है.
चूंकि ज्यादातर आवासीय योजनाएं निजी कंपनियां सीधे स्वामित्व में या फिर सरकारों के साथ साझीदारी में चला रही हैं, ऐसे में निजी क्षेत्र की भूमिका बहुत अहम है. बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाएं सरल शर्तों पर कर्ज दें, बिल्डरों पर नियमन और निगरानी बेहतर हो तथा ग्राहकों के हितों की रक्षा सुनिश्चित की जाये, तो आवासीय सुविधा उपलब्ध होने में आसानी होगी.