मयनागुड़ी : ट्रेन के धक्के से हाथी व अन्य वन्य जीवों की मौत की रोकथाम के लिए चापड़ामारी जंगल में प्रस्तावित अंडरपास का काम दो विभागों के खींचतान में फंस गया है. इस कार्य के लिए 100 करोड़ रुपए की लागत का अनुमान है. रेलवे व वन विभाग ने संयुक्त रूप से कार्य पर सहमति जतायी थी. लेकिन यह रुपए कौन सा विभाग देगा, इसी खींचतान में कार्य पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे है.
उत्तरपूर्व सीमांत रेलवे के अलीपुरद्वार डिविजन के डीआरएम चंद्रवीर रमन ने बताया कि संयुक्त समीक्षा का एक रिपोर्ट वन विभाग को भेजा जायेगा. रिपोर्ट देखने के बाद अगर अंडरपास व ओवरपास बनाने के लिए सहमती व वित्तीय सहायता का अनुमोदन मिले तो रेलवे की ओर से काम किया जायेगा. वहीं वन मंत्री विनय कृष्ण बर्मन ने कहा कि रेलवे की जमीन पर रेलवे अंडरपास बनायेगा. इसके लिए वन विभाग रुपए क्यों देगा. अंडरपास के लिए रुपए रेलवे को ही देना होगा. मंत्री ने आगे कहा कि रेलवे अंडरपास बनाना नहीं चाहता है. इसे लेकर रेलवे विभाग के साथ चर्चा की जायेगी.
रेलमार्ग के कारण वन्यजीवों खासकर हाथियों की लगातार आवाजाही होती रहती है
डुआर्स के जंगलों के बीचो-बीच गुजरने वाले रेलमार्ग के कारण वन्यजीवों खासकर हाथियों की लगातार आवाजाही होते रहती है. अलीपुरद्वार से सिलीगुड़ी जाने वाले रेलमार्ग प्रमुख रूप से जंगलों के बीच से गुजरता है. 2013 में इस रेलमार्ग पर ट्रेन के धक्के से एक साथ 7 हाथियों की मौत हो गयी थी. इस वर्ष पांच फरवरी को ट्रेन के धक्के से एक वयस्क हाथी मर गया था. आंकड़े बताते है कि इस रेलमार्ग पर छोटी-बड़ी 30 से 40 वन्यजीवों की मौत ट्रेन से कटकर हो जाती है.
लम्बे समय से पर्यावरणप्रेमी विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों ने वन्यजीवों की मौत के सिलसिले को रोकने के लिए रेलवे विभाग से विकल्प मार्ग तलाशने की अपील की थी. काफी विचार के बाद आखिरकार एक महीने पहले रेलमार्ग के जलढाका से मूर्ति ब्रिज के लगभग तीन किलोमीटर की दूरी तक चापरामारी जंगल में अंडरपास व ओवरपास बनाने पर सहमती बनी थी. रेलवे व वन विभाग ने संयुक्त रुप से इस इलाके का निरीक्षण करके समीक्षा किया था. प्राथमिक तौर पर अनुमान है कि इस कार्य में लगभग 100 करोड़ रुपये की लागत आयेगी.