बेंगलुरु : बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक के किंग बन कर उभरे हैं. वे दस साल बाद दोबार 17 मई को मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की कमान संभालने को तैयार हैं. उनका पिछला कार्यकाल साइकिल से चलने वाले एक नायक के रूप में शुरू हुआ था, जिसका कैरियर क्लर्क के रूप में शुरू हुआ और जिसने दक्षिण में मेहनत से पार्टी की जड़ें जमायी. लेकिन, अंत पार्टी की अंदरूनी कलह, रेड्डी बंधुओं से टकराव व भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ हुआ. ऐसे में येदियुरप्पा को पिछले अनुभवों से सीखते हुए इस बार अधिक सतर्क रहना होगा. उन्हें रेड्डी बंधुओं से न सिर्फ निबटना होगा, बल्कि उन्हें नियंत्रित भी रखना होगा, जिनका भाजपा की जीत में कुछ हद तक योगदान तो है ही.
पिछली बार येदियुरप्पा ने लोकायुक्त की रिपोर्ट के आधार पर बेल्लारी के अफसरों का ट्रांसफर किया था, जिसके बाद रेड्डी बंधुओं ने उनके खिलाफ बगावत की थी और समर्थक विधायकों को रिजार्ट में ले गये थे और येदियुरप्पा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. इस टकराव में येदियुरप्पा को ही समझौता करना पड़ा था और उनकी करीबी मंत्री शाोभ करंडलाजे के इस्तीफा देना पड़ा था, जबकि रेड्डी बंधु अहम मंत्रालय में बने रहे.
इस बार भी दो दर्जन सीटों पर प्रभाव रखने वाले रेड्डी कुनबे के आधा दर्जन लोगों को भाजपा से टिकट मिला है अौर यह देखना दिलचस्प होगा कि उन्हें येदियुरप्पा सरकार में जगह मिलती है या नहीं. पार्टी बहुत सामान्य बहुमत के करीब पहुंचती दिख रही है, ऐसे में येदियुरप्पा बहुत कठिन शर्त हाइकमान के पास नहीं रख सकते हैं, उल्टे उन्हें समझौते करने पड़ सकते हैं. हां, हाइकमान जरूर इस मामले में उनके लिए संरक्षक का काम कर सकता है.
येदियुरप्पा के लिए भाजपा ने बदले नियम?
बीएस येदियुरप्पा के लिए नियमों पर डटी रहने वाली पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने अपने कई नियम बदले. आमतौर पर 75 साल की उम्र में भाजपा किसी को नेतृत्व नहीं सौंपती है, लेकिनपार्टीने 1943 में जन्मे येदियुरप्पा को कर्नाटक में अपना नेतृत्व सौंपा. पहले उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और फिर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार. पार्टी छोड़ गये लोगों भाजपा में वापसी करने पर भी अपनी जड़ें जमा नहीं पाते, बस उनकी मौजूदगी मात्र रहती है. कल्याण सिंह, उमा भारती सहित कई दूसरे नेता इसके उदाहरण हैं. लेकिन, इस पैमाने पर भी भाजपा ने अपने नियम बदले.
येदियुरप्पा को भाजपा ने अपने जड़ें जमाने का खूब मौका दिया, जबकि प्रदेश से आने वाले पार्टी के बड़े केंद्रीय नेता अनंत कुमार इस दावेदारी के लिए मौजूद थे. इसके पीछे बड़ी वजह बीएस येदियुरप्पा की व्यक्तिगत योग्यतासेअधिक उनकी जाति है. वे कर्नाटक के सबसे प्रभावी वर्ग लिंगायत से आते हैं, जिनकी अनदेखी वहां की राजनीति में कोई नहीं कर सकता.
कर्नाटक का जातीय समीकरण उत्तरप्रदेश व बिहार से अधिक उलझा हुआ है. बिहार-झारखंड में सबसे बड़े जातीय वर्ग यादव के समर्थन के बिना सरकार बनाने का फार्मूला साबित हो चुका है, लेकिन कर्नाटक में ऐसा अबतक नहीं हुआ है. यही वह वजह थी कि सिद्धारमैया ने आचार संहिता लगने से ठीक पहले लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने का एलान कर दिया था.