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मजबूत रिश्ते ने राजहंस परिवार को दी तरक्की

देवघर : आधुनिकता के इस दौर में परिवारों का टूटना रोज की बात हो गयी है. संयुक्त परिवार बिखरते जा रहे हैं. लोग क्षणिक सुख के लिए परिवार से अलग होकर अपना घर बसा लेते हैं. ऐसे दौर में मधुपुर के बुढ़ई पंचायत का राजहंस परिवार संयुक्त परिवार का अच्छा उदाहरण बना हुआ है. इस […]

देवघर : आधुनिकता के इस दौर में परिवारों का टूटना रोज की बात हो गयी है. संयुक्त परिवार बिखरते जा रहे हैं. लोग क्षणिक सुख के लिए परिवार से अलग होकर अपना घर बसा लेते हैं. ऐसे दौर में मधुपुर के बुढ़ई पंचायत का राजहंस परिवार संयुक्त परिवार का अच्छा उदाहरण बना हुआ है. इस परिवार में 24 सदस्य एक साथ एक ही छत के नीचे रह रहे हैं.

बुढ़ई पंचायत के मुखिया अशोक राजहंस के परिवार में कुल पांच भाई सहित बहन, भंजा आदि एक साथ रहते हैं. इस घर में हर दिन एक हंडी में पांच किलो चावल व शाम में पांच किलो आटा की रोटी बनती है. मुखिया अशोक राजहंस अपने पूरे परिवार को सबसे बड़ी पूंजी मानते हैं. उनका कहना है कि जितनी आकांक्षाएं संयुक्त परिवार में पूर्ण हो सकता है, उतनी अलग रहकर नहीं. लोग अलग रहकर पैसे कमा सकते हैं. लेकिन चैन नहीं. इस परिवार की सबसे बुजुर्ग सदस्य उनकी मां 75 वर्षीय कुसुम देवी हैं, जबकि बहन बीजू राजहंस व भांजा शिवानंद झा सबके चहेते हैं.

पूरा परिवार रात में एक साथ खाता है खाना
परिवार में कुल 24 लोग हैं, जिसमें घर की मुखिया मां कुसुम देवी, बड़ा बेटा अशोक राजहंस, दूसरा हृदय राजहंस, तीसरा किशोर राजहंस, चौथा मनोज राजहंस व पांचवां रंजीत राजहंस है. इसके पांचों की पत्नी मीना देवी, सुलेखा देवी, शोभा राजहंस, रीना राजहंस व सीमा तथा बहन बीजू राजहंस व नयी बहु जुही झा व बच्चे राहुल, गौतम सिद्धार्थ, यशवंत, अभिषेक अभिनव, ज्योति, गौरव, काजल, सौरव हैं. परिवार की खास बात है कि सभी लोग रात में खाना एक साथ खाते हैं. अशोक राजहंस ने बताया कि मुखिया बनने के बाद कई जगहों पर जाना होता है, लेकिन रात में खाने के समय परिवार के साथ रहना व सबके बारे में पूछना अब भी इस घर की परंपरा में शामिल है. वहीं बच्चों को पढ़ाई के लिए देवघर में रखा गया है.
हमारा परिवार ही हमारी पूंजी : कुसुम देवी
घर की मुखिया कुसुम देवी बताती हैं कि छह दिसंबर 1990 को जमीन विवाद में पति डोमन राजहंस की हत्या कर दी गयी, तो परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. केस लड़ने में सभी जमीन बिक गयी. उस समय हमने अपने परिवार को पूंजी मानते हुए इसे कभी टूटने नहीं दिया. दामाद की मौत हुई तो बेटी को बेटा का दर्जा देते हुए नाती जिसका उम्र उस समय करीब दो माह था, उसे साथ में रखा. सभी बेटों ने जान से बढ़कर बहन व भांजे की परवरिश की. करीब 15 वर्ष बाद जमीन का केस जीते और दिन बदलता चला गया. मेरे बेटों की मेहनत व पंचायत के लोगों के स्नेह की वजह से बड़ा बेटा मुखिया बना. अन्य बेटे अलग-अलग बिजनेस कर रहे हैं. बेटी घर में खाने की जिम्मेदारी देखती है. सभी पुत्रवधू मिल कर घर में खाना बनाते हैं. दो पुत्रवधू आंगनबाड़ी में सेविका व एक सहायिका है. आज मेरे घर में भगवान की कृपा से सबकुछ है, अगर परिवार बिखर गया होता तो कुछ नहीं होता. संयुक्त परिवार में लोग लगातार आगे बढ़ते हैं.

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